सुप्रीम कोर्ट की दो-टूक, व्यभिचार मामलों में अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए सशस्त्र बल बनाएं व्यवस्था
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि सशस्त्र बलों के पास व्यभिचार के लिए अपने अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए किसी तरह की व्यवस्था होनी चाहिए। जानें सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में क्या बातें कही...
नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सशस्त्र बलों के पास व्यभिचार के लिए अपने अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए किसी तरह की व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि यह ऐसा आचरण है जो अधिकारियों के जीवन को हिला सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि व्यभिचार परिवार में पीड़ा पैदा करता है और इसे हल्के तरीके से नहीं लेना चाहिए।
वर्दीधारी सेवाओं में अनुशासन सर्वोपरि
जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस सीटी रविकुमार की संविधान पीठ ने कहा, 'वर्दीधारी सेवाओं में अनुशासन सर्वोपरि है। यह ऐसा आचरण है जो अधिकारियों के जीवन को हिला सकता है। हर कोई अंतत: समाज की एक इकाई के रूप में परिवार पर निर्भर है।
समाज की अखंडता वफादारी पर आधारित
समाज की अखंडता पति या पत्नी की दूसरे के प्रति वफादारी पर आधारित है। यह (व्यभिचार) सशस्त्र बलों में अनुशासन को हिला देगा। सशस्त्र बलों में इस तरह का भरोसा होना चाहिए कि वे कार्रवाई करेंगे। आप जोसेफ शाइन (निर्णय) का हवाला कैसे दे सकते हैं और कह सकते हैं कि यह नहीं हो सकता।'
पूर्व के फैसले का नहीं दिया जा सकता है हवाला
पीठ ने कहा कि दोषियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही रोकने के लिए शीर्ष अदालत के 2018 के उस फैसले का हवाला नहीं दिया जा सकता जिसमें उसने व्यभिचार पर दंडात्मक प्रविधान को असंवैधानिक घोषित किया था। पीठ ने ये टिप्पणियां तब कीं जब केंद्र की ओर से एडिशनल सालिसिटर जनरल माधवी दीवान ने 2018 के फैसले के स्पष्टीकरण की मांग करने वाली याचिका दायर की थी।
यह था मामला
रक्षा मंत्रालय ने यह कहते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था कि व्यभिचार के लिए कुछ सैन्यकर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी, लेकिन सशस्त्र बल न्यायाधिकरण ने जोसेफ शाइन फैसले का हवाला देते हुए कई मामलों में ऐसी कार्यवाही को रद कर दिया था।
यह भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट ने तृणमूल नेताओं की संपत्ति में वृद्धि मामले में ईडी को पक्षकार बनाने के हाईकोर्ट के आदेश को किया खारिज