भारतीय महिलाओं को आखिरकार मिला गर्भपात का अधिकार, अमेरिका व कई पश्चिमी देशों की महिलाएं अब भी लड़ रहीं लड़ाई
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ विवाहित महिलाओं को ही कानूनन गर्भपात का अधिकार होने की बात मान लेना इस रूढिवादी सोच को मानना होगा कि सिर्फ विवाहित महिलाएं ही यौन गतिविधियों में लिप्त होती हैं। कोर्ट ने यह बात एमटीपी नियम 3बीसी की व्याख्या करते हुए कही है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के बच्चों को जन्म देने और गर्भपात पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए देश की सभी महिलाओं को गर्भपात कराने का कानूनी अधिकार दे दिया है। कोर्ट ने गुरुवार को मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रिग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट के प्राविधानों की व्याख्या करते हुए कहा है कि विवाहित और अविवाहित सभी महिलाओं को कानून सम्मत तरीके से 24 सप्ताह तक गर्भपात कराने का अधिकार है।
दुष्कर्म की परिभाषा में वैवाहिक दुष्कर्म भी शामिल
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में साफ किया है कि एमटीपी एक्ट के तहत दुष्कर्म की परिभाषा में वैवाहिक दुष्कर्म भी शामिल है। कानून की प्रगतिवादी व्याख्या का दूरगामी परिणाम वाला यह फैसला न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, एएस बोपन्ना और जेबी पार्डीवाला की पीठ ने एक अविवाहित महिला की याचिका पर सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बड़े मायने हैं। यह फैसला महिलाओं के प्रजनन अधिकार की स्वायत्तता पर मुहर लगाता है। साथ ही कानून सम्मत तरीके से तय अवधि में गर्भपात का कानूनी अधिकार और स्वायत्तता देने में विवाहित, अविवाहित, सिगल वूमन सभी को बराबरी पर रखने वाला है जिसका गहराई तक सामाजिक असर होगा।
वैवाहिक दुष्कर्म का मामला सुप्रीम कोर्ट में अभी लंबित
यह पहला मौका है जब सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म की परिभाषा में वैवाहिक दुष्कर्म को भी शामिल किया है। हालांकि, यह स्पष्ट हो कि वैवाहिक दुष्कर्म का मामला सुप्रीम कोर्ट में अभी लंबित है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने भारतीय महिलाओं को जो अधिकार दिया है उसके लिए अमेरिका और कई पश्चिमी देशों की महिलाएं लड़ाई लड़ रही हैं।
कानून का लाभ सिर्फ विवाहित महिलाओं को नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि सिर्फ विवाहित महिलाओं को ही कानूनन गर्भपात का अधिकार होने की बात मान लेना इस रूढिवादी सोच को मानना होगा कि सिर्फ विवाहित महिलाएं ही यौन गतिविधियों में लिप्त होती हैं। कोर्ट ने यह बात एमटीपी नियम 3बीसी की व्याख्या करते हुए कही है।
विवाहित और अविवाहित महिलाओं को समान रूप से मिलेगा कानून का लाभ
कोर्ट ने कहा कि विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच यह कृत्रिम भेद संवैधानिक कसौटी पर टिक नहीं सकता। कानून का लाभ दोनों को समान रूप से मिलेगा। एमटीपी एक्ट में वैवाहिक दुष्कर्म को शामिल मानने की व्याख्या देते हुए कोर्ट ने फैसले में कहा है कि एमटीपी एक्ट के रूल 3 बी में दिये गए शब्द यौन हमले या दुष्कर्म के अर्थ में पति द्वारा पत्नी पर किया गया यौन हमला और दुष्कर्म शामिल है।
सिर्फ एमटीपी एक्ट, एमटीपी रूल और उसके तहत बनाए गए नियमों का होगा पालन
कोर्ट ने साफ किया है कि यहां दुष्कर्म और वैवाहिक दुष्कर्म का अर्थ सिर्फ एमटीपी एक्ट, एमटीपी रूल और उसके तहत बनाए गए नियमों के संदर्भ में समझा जाएगा। इसकी कोई भी और व्याख्या का प्रभाव एक महिला को उस साथी के बच्चे को जन्म देने और पालने को मजबूर करना होगा, जो उसे शारीरिक और मानसिक रूप से चोट पहुंचाता है।
फैसले में सुरक्षित गर्भपात कराने में आने वाली बाधाओं का भी जिक्र
कोर्ट ने कानून होने के बावजूद महिलाओं को कानून सम्मत सुरक्षित गर्भपात कराने में आने वाली बाधाओं का भी फैसले में जिक्र किया है और कहा है कि इन बाधाओं के चलते महिलाएं असुरक्षित गर्भपात को मजबूर होती हैं। कोर्ट ने गर्भपात के लिए पर्याप्त ढांचागत संसाधनों का अभाव, जानकारी का अभाव, सामाजिक कलंक और कुछ मामलों में गोपनीय तरीके से सुरक्षित देखभाल उपलब्ध न होने पर चिंता जताई।
रूढ़िवादी सोच से सिंगल वूमन सुरक्षित और कानूनी गर्भपात से वंचित
अविवाहित महिलाओं की यौन स्वायत्तता ना होने की रूढ़िवादी सोच को एक गंभीर बाधा बताया है और कहा कि इसकी वजह से सिंगल वूमन सुरक्षित और कानूनी गर्भपात से वंचित रह जाती हैं। इस वजह से महिलाओं की प्रजनन स्वायत्तता का अधिकार निष्फल होता है। पीठ ने कहा कि कानूनी पचड़े में फंसने का डाक्टरों का भय भी सुरक्षित गर्भपात के लिए एक बाधा है।
महिला की सहमति ही पर्याप्त
कोर्ट ने कहा है कि इस बारे में महिला की सहमति ही पर्याप्त है। कोर्ट ने कहा कि अगर महिला नाबालिग या मानसिक रूप से अस्वस्थ है तो उसके संरक्षक की सहमति चाहिए होती है। कोर्ट ने फैसले में कहा कि आरएमपी को गर्भपात के लिए महिला पर गैर कानूनी शर्तें लगाने से बचना चाहिए। उन्हें सिर्फ ये सुनिश्चित करना है कि एमटीपी एक्ट के प्राविधानों का पालन किया गया है।
क्या था मामला
इस मामले में एक 25 वर्षीय अविवाहित महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर 24 सप्ताह पूरे होने से पहले गर्भपात कराने की इजाजत मांगी ती। 15 जुलाई को 24 सप्ताह का समय पूरा हो रहा था। दिल्ली हाई कोर्ट ने इजाजत देने से यह कहते हुए मना कर दिया था कि एमटीपी कानून में उसे गर्भपात की इजाजत नहीं दी जा सकती क्योंकि गर्भ सहमति से संबंध बनाने के कारण हुआ था और याचिकाकर्ता अविवाहित है। हाई कोर्ट से राहत न मिलने पर महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जिसके बाद कोर्ट ने कानून की व्याख्या करते हुए यह फैसला दिया है।
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