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...तो इस तरह के प्रविधानों से भारत में गर्भपात को सुरक्षित बनाने में मिल सकती है मदद

भारत की बात करें तो यहां महिलाओं को गर्भपात कराने का कानूनी अधिकार दिया गया है। इसके लिए पहले मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 था। इसमें प्रविधान था कि अगर किसी महिला का गर्भ 12 सप्ताह का है तो वह एक डाक्टर की सलाह पर गर्भपात करवा सकती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 05 Jul 2022 01:31 PM (IST)Updated: Tue, 05 Jul 2022 01:31 PM (IST)
महिलाओं से जुड़े स्वास्थ्य के खतरे। file photo

करिश्मा शाह। अमेरिका के शीर्ष न्यायालय ने बीते दिनों गर्भपात को लेकर चौंकाने वाला निर्णय दिया है। इस निर्णय के तहत न्यायालय ने आधी सदी पुराने ‘रो बनाम वेड’ मामले में गर्भपात को लेकर दिए गए एक निर्णय को पलट दिया है। पूर्व के निर्णय में कहा गया था कि संविधान गर्भवती महिला को गर्भपात कराने का कानूनी हक प्रदान करता है, पर हालिया फैसले में कहा गया कि संविधान गर्भपात का अधिकार प्रदान नहीं करता है।

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उल्लेखनीय है कि ‘जेन रो’ ने 1969 में अबार्शन यानी गर्भपात को वैध कराने के लिए लड़ाई शुरू की थी। रो ने उस कानून को चुनौती दी जिसमें अबार्शन को अवैध माना गया था। वर्ष 1973 में कोर्ट ने गर्भपात को कानूनी करार दिया। इससे अमेरिकी महिलाओं को गर्भधारण के पहले तीन माह में गर्भपात कराने का कानूनी अधिकार मिल गया था। परंतु कई लोगों ने इस फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया। एक सर्वे के अनुसार अमेरिका में 37 प्रतिशत एंटी-अबार्शन वाले हैं, जो मानते हैं कि गर्भपात कराना सही नहीं है।

इसके अलावा ऐसी महिलाएं जो किसी कारणवश गर्भधारण नहीं चाहतीं या फिर किसी मेडिकल कारण से गर्भपात कराना चाहती हों तो वे अब ऐसा नहीं कर पाएंगी। अबार्शन का अधिकार छिन जाने के बाद लोग इसके लिए असुरक्षित तरीके अपनाएंगे। इससे जान पर बन आना तय है। इसका सबसे बुरा असर हाशिये पर रह रही महिलाओं पर पड़ेगा। आर्थिक रूप से संपन्न महिलाएं अपने राज्य से बाहर जाकर अबार्शन करा सकती हैं, परंतु गरीब महिलाओं के लिए यह स्थिति और दयनीय हो जाएगी। इससे लाखों औरतें स्वास्थ्य देखभाल की सुविधाओं से वंचित हो जाएंगी। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को अमली जामा पहनाए जाने के बाद इस बात की पूरी आशंका है कि महिलाओं को अपने शरीर और जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले लेने का अधिकार हमेशा के लिए छिन सकता है। हमेशा से नागरिक अधिकारों के हिमायती रहे अमेरिका में ही लोगों के निजी अधिकार, शरीर पर अधिकार, अपने जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार, सब हवा हो जाएंगे। ऐसे में महिलाओं की सारी उम्मीदें अब सरकार से होगी। हालांकि अमेरिका के राष्ट्रपति ने वादा किया है कि वह इसे सुनिश्चित करेंगे कि जो महिलाएं किसी अन्य राज्य में जाकर गर्भपात करवाना चाहती हैं, उनके लिए प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्था की जाए। भारत की बात करें तो यहां महिलाओं को 12-20 सप्ताह के लिए दो डाक्टरों की सलाह अनिवार्य था। लेकिन 20-24 सप्ताह के गर्भपात की अनुमति नहीं थी। वर्ष 2020 में इस एक्ट में संशोधन किया गया और ‘मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) एक्ट 2020’ लाया गया।

इसके जरिये गर्भपात कराने के लिए मान्य अवधि को 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया। इसमें यह भी प्रविधान किया गया है कि अगर किसी महिला का गर्भ 12-20 सप्ताह का है तो वह एक डाक्टर की सलाह पर गर्भपात करवा सकती है। यदि भ्रूण 20-24 सप्ताह का है, तो इसमें कुछ श्रेणी की महिलाओं को दो डाक्टरों की सलाह लेनी होगी और अगर भ्रूण 24 सप्ताह से अधिक समय का है, तो मेडिकल सलाह के बाद ही गर्भपात की इजाजत दी जाएगी। इस तरह के प्रविधानों से भारत में गर्भपात को काफी हद तक सुरक्षित बनाने में मदद मिल सकती है। वैसे इसके सफल होने के लिए स्वास्थ्य का आधारभूत ढांचा भी मजबूत होना चाहिए, तब जाकर ठोस बदलाव संभव है।

[सामाजिक मामलों की जानकार]


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