'तीन महीने के भीतर बिल पर फैसला लेना जरूरी', पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय की
सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय की है। SC ने कहा कि राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर फैसला लेना चाहिए। ये फैसला मंगलवार को तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा लंबित विधेयकों पर मुहर न लगने के फैसले को खारिज करते हुए आया है। कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को ऐतिहासिक बताया है।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक खास टिप्पणी करते हुए कहा कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा उनके विचारार्थ सुरक्षित रखे गए विधेयकों पर तीन महीने के अंदर फैसला लेना चाहिए। ये पहला मौका है जब सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा तय की है।
दरअसल, तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला शुक्रवार को ऑनलाइन अपलोड हो गया है। फैसले के अनुसार, पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने ये तय किया है कि राष्ट्रपति को राज्यपाल की तरफ से उनके विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेना चाहिए।
कोर्ट का फैसला वेबसाइट पर अपलोड
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि की तरफ से राष्ट्रपति के विचार के लिए रोके गए और आरक्षित किए गए 10 विधेयकों को मंजूरी देने और राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए सभी राज्यपालों के लिए समयसीमा निर्धारित की थी। इसके कुछ दिनों बाद 415 पन्नों का एक फैसला शुक्रवार रात को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया।
तीन महीने के भीतर लेना होगा निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हम गृह मंत्रालय द्वारा निर्धारित समय-सीमा को अपनाना उचित समझते हैं तथा निर्धारित करते हैं कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा उनके विचारार्थ सुरक्षित रखे गए विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेना आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस अवधि से अधिक देरी होने पर उचित कारण दर्ज करके संबंधित राज्य को सूचित करना होगा। राज्यों को भी सहयोगात्मक होना चाहिए और उठाए जाने वाले प्रश्नों के उत्तर देकर सहयोग करना चाहिए तथा केंद्र सरकार द्वारा दिए गए सुझावों पर शीघ्रता से विचार करना चाहिए।
- न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने 8 अप्रैल को राष्ट्रपति के विचार के लिए दूसरे दौर में 10 विधेयकों को आरक्षित करने के फैसले को अवैध और कानून में त्रुटिपूर्ण करार देते हुए खारिज कर दिया।
- न्यायालय ने प्रकरण में बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि जहां राज्यपाल राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को आरक्षित करता है और राष्ट्रपति उस पर अपनी सहमति नहीं देते हैं, तो राज्य सरकार के लिए इस न्यायालय के समक्ष ऐसी कार्रवाई करने का अधिकार होगा।
कोर्ट ने अनुच्छेद 200 का जिक्र भी किया
शीर्ष न्यायालय ने इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 200 का जिक्र करते हुए कहा कि विधानसभा से पास बिल को राज्यपाल अनिश्चित काल तक नहीं रोक सकते। सुप्रीम कोर्ट के पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 200 में विधेयक को मंजूरी देने की कोई समयसीमा तय नहीं है। हालांकि, इसका मतलब ये नहीं होता है कि राज्यपाल विधेयक को लंबे समय तक रोके रखें और राज्य की कानून बनाने वाली व्यवस्था में अवरोधक बन जाएं।
कांग्रेस ने बताया ऐतिहासिक
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कांग्रेस राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने खुशी जाहिर की है। उन्होंने इस फैसले को ऐतिहासिक करार दिया है। कांग्रेस राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है जो संघवाद के लिए अच्छा है क्योंकि यह राज्यपालों की भूमिका को परिभाषित करता है।
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