कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को गंभीरता से लिया जाए, कानूनों का न हो दुरुपयोग; सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न जैसे विषयों पर सख्ती दिखाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यस्थल पर किसी भी रूप में यौन उत्पीड़न को गंभीरता से लें। कोर्ट ने कहा कि यह ऐसा मुद्दा है जो दुनियाभर के लोगों को परेशान कर रखा है। कोर्ट ने कहा कि उत्पीड़न करने वाले को लोगों को कानून के चंगुल से बचने की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यस्थल पर किसी भी रूप में यौन उत्पीड़न को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। उत्पीड़न करने वाले को कानून के चंगुल से बचने की अनुमति कतई नहीं दी जानी चाहिए।
इसी के साथ शीर्ष कोर्ट ने गौहाटी हाई कोर्ट के उस फैसले को रद कर दिया है जिसमें सर्विस सलेक्शन बोर्ड के एक पूर्व अधिकारी दिलीप पाल की 50 प्रतिशत पेंशन रोकने के जुर्माने के आदेश को रद कर दिया गया था। उस पर एक महिला अधीनस्थ कर्मी के यौन उत्पीड़न का आरोप था।
यौन उत्पीड़न से दुनिया भर के लोग परेशानः सुप्रीम कोर्ट
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यौन उत्पीड़न एक ऐसा मुद्दा है जिसने दुनियाभर के समाजों को त्रस्त कर दिया है। यह व्यापक स्तर पर और गहरी जड़ें जमा चुका है। भारत में भी यह गंभीर चिंता का विषय रहा है। यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए बनाए गए नए कानून इस समस्या के समाधान के प्रति देश की प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है।
आरोपों की जांच करें, सही है या गलतः सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने कहा कि जब झूठा आरोप लगाने की दलील दी जाती है तो ये कोर्ट का कर्तव्य है कि वह सुबूतों की गहनता से जांच करें और देखे कि आरोप सही हैं या नहीं। उसी के आधार पर फैसला करें। शिकायत की वास्तविकता की जांच इस प्रकार की जाए कि समाज के उत्थान और लोगों के समान अधिकारों के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग न हो।
बता दें कि संबंधित अधिकारी सितंबर 2006 से मई 2012 के बीच असम के रंगिया में क्षेत्र संयोजक के रूप में कार्यरत था। यौन उत्पीड़न के आरोपों पर शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही के संबंध में दिलीप पाल की 50 प्रतिशत पेंशन को हमेशा के लिए रोकने का आदेश दिया गया था। इसे हाई कोर्ट ने रद कर दिया था। पाल पर अपनी अधीन फील्ड असिस्टेंट के तौर पर काम करने वाली महिला कर्मचारी के यौन उत्पीड़न का आरोप था।
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