Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जीवनसाथी की प्रतिष्ठा और करियर को खराब करना मानसिक क्रूरता

    By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By:
    Updated: Sat, 27 Feb 2021 07:06 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के लिए मानसिक क्रूरता के आधार को स्वीकार करने पर कहा कि मानसिक क्रूरता इस हद तक होनी चाहिए कि जीवनसाथी का साथ रहना और वैवाहिक जीवन बिताना असंभव हो गया हो। हालांकि सहने की सीमा हर दंपती की अलग-अलग हो सकती है।

    Hero Image
    सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का आदेश किया निरस्त

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने एक अहम फैसले में कहा है कि उच्च शिक्षित व्यक्ति का अपने जीवनसाथी की प्रतिष्ठा और करियर को खराब करना, उसे अपूर्णनीय क्षति पहुंचाना मानसिक क्रूरता है। कोर्ट ने पत्नी के ऐसे व्यहार को मानसिक क्रूरता मानते हुए पति की तलाक की याचिका स्वीकार कर ली।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस दिनेश महेश्वरी और जस्टिस ऋषिकेश राय की पीठ ने पति की याचिका स्वीकार करते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट का फैसला निरस्त कर दिया और तलाक की डिक्री देने के फैमिली कोर्ट के फैसले को बहाल कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का टूटे रिश्ते को मध्यम वर्ग की शादीशुदा जिंदगी का हिस्सा कहना गलत है। यह मामला निश्चित तौर पर पत्नी द्वारा पति के प्रति की गई क्रूरता का है और पति इस आधार पर तलाक पाने का अधिकारी है।

    नहीं तय किया जा सकता समान स्टैंडर्ड: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के लिए मानसिक क्रूरता के आधार को स्वीकार करने पर कहा कि मानसिक क्रूरता इस हद तक होनी चाहिए कि जीवनसाथी का साथ रहना और वैवाहिक जीवन बिताना असंभव हो गया हो। हालांकि सहने की सीमा हर दंपती की अलग-अलग हो सकती है। पीठ ने कहा कि कोर्ट को मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक का मामला तय करते समय शिक्षा के स्तर और पक्षकारों के स्टेटस को ध्यान में रखना चाहिए। पीठ ने कहा कि समर घोष के पूर्व फैसले में कोर्ट ने मानसिक क्रूरता के उदाहरण दिए हैं हालांकि यह भी कहा था कि इस बारे में कोई समान स्टैंडर्ड तय नहीं किया जा सकता, यह हर केस के आधार पर तय होगा।

    पत्नी ने पति के खिलाफ की थी शिकायतें

    पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में पत्नी ने पति के खिलाफ सेना के बड़े अधिकारियों से कई बार अपमानजनक शिकायतें की थीं। जिसके लिए पति के खिलाफ सेना ने कोर्ट आफ इंक्वायरी की। इससे पति की प्रगति और करियर प्रभावित हुआ। इतना ही नहीं, पत्नी ने अन्य कई अथारिटीज को भी पति के खिलाफ शिकायत भेजी जैसे कि राज्य महिला आयोग में शिकायत की। अन्य प्लेटफार्म पर भी पति के खिलाफ अपमानजनक सामग्री पोस्ट की। इसका नतीजा यह हुआ कि याचिकाकर्ता पति की प्रतिष्ठा और करियर प्रभावित हुआ।

    पति के करियर और प्रतिष्ठा को पहुंची अपूर्णीय क्षति

    कोर्ट ने कहा कि जब पति ने पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों के कारण जिंदगी और करियर में बुरा असर झेला है तो पत्नी को उसके कानूनी नतीजे झेलने होंगे। वह सिर्फ इसलिए नहीं बच सकती कि किसी भी अदालत ने आरोपों को झूठा नहीं ठहराया है। हाई कोर्ट का मामले को देखने और तय करने का नजरिया सही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सिर्फ यह देखा जाएगा कि पत्नी का व्यवहार मानसिक क्रूरता में आता है अथवा नहीं। इस मामले में बहुत शिक्षित जीवनसाथी ने अपने साथी पर आरोप लगाए हैं जिससे उसके करियर और प्रतिष्ठा को अपूर्णीय क्षति पहुंची। जब किसी की अपने सहयोगियों, वरिष्ठों और समाज में प्रतिष्ठा खराब हुई हो तो उस प्रभावित व्यक्ति से इस आचरण को माफ करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। पत्नी का यह कहना न्यायोचित नहीं है कि उसने यह सब शिकायतें अपने वैवाहिक जीवन को बचाने के लिए की थीं। कोर्ट ने कहा कि गलत पक्ष वैवाहिक रिश्ता जारी रहने की अपेक्षा नहीं कर सकता। पति का उससे अलग रहने की मांग करना न्यायोचित है।

    यह था पूरा मामला

    इस मामले में पति एमटेक की डिग्री के साथ सैन्य अधिकारी था और पत्नी पीएचडी डिग्री के साथ गवर्नमेंट पीजी कालेज में पढ़ाती थी। दोनों की 2006 में शादी हुई। कुछ महीने वे साथ रहे फिर आपस में अनबन हो गई। शादी के एक साल बाद से ही दोनों अलग रह रहे हैं। इस मामले में पति ने फैमिली कोर्ट में अर्जी देकर तलाक मांगा। पति ने कहा कि उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ बहुत सी शिकायतें कीं, उस पर आरोप लगाए जिससे उसकी प्रतिष्ठा और करियर को नुकसान पहुंचा। पत्नी का यह व्यवहार मानसिक क्रूरता है इसलिए उसे तलाक दिया जाए। जबकि पत्नी ने याचिका दाखिल कर कोर्ट से दाम्पत्य संबंधों की पुनस्र्थापना की मांग की। फैमिली कोर्ट ने मामले के तथ्य और सुबूतों को देखते हुए पति की तलाक अर्जी मंजूर कर ली थी। लेकिन हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट का तलाक देने का फैसला पलट दिया था और पत्नी की दाम्पत्य संबंधों की पुनस्र्थापना की मांग स्वीकार कर ली थी।