'किसी संपत्ति के समझौता डिक्री के लिए स्टाम्प ड्यूटी की जरूरत नहीं', सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
Supreme Court on compromise decree registration समझौता डिक्री के पंजीकरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति के पास पहले से ही किसी संपत्ति का अधिकार है और वह समझौता डिक्री के माध्यम से इसे हासिल करता है तो उसे पंजीकरण की जरूरत नहीं है और न ही उसे स्टाम्प ड्यूटी की आवश्यकता है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। Supreme Court on compromise decree registration संपत्ति विवादों को सुलझाने वाले सिद्धांतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ किया कि किसी व्यक्ति को संपत्ति पर पहले से ही मौजूद अधिकारों की पुष्टि करने वाला समझौता डिक्री के लिए पंजीकरण अधिनियम 1908 के तहत पंजीकृत करना आवश्यक नहीं है।
कोर्ट ने यह भी साफ किया कि इस तरह के मामले में भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 के तहत कोई स्टाम्प ड्यूटी नहीं लगाई जाएगी, क्योंकि यह कोई नया अधिकार नहीं बनाती है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला मुकेश बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य (केस नंबर 14808/2024) के मामले में दिया है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ एमपी हाई कोर्ट की इंदौर बेंच के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।
हाईकोर्ट के फैसले में कलेक्टर ऑफ स्टैंम्प्स के फैसले को बरकरार रखा गया था, जिसमें अपीलकर्ता द्वारा समझौता कार्यवाही (compromise decree registration compulsory) में संपत्ति को हासिल करने के लिए 6 लाख 67 हजार 500 रुपये की स्टाम्प शुल्क निर्धारित की गई थी। इसमें व्यक्ति के पास पहले से मौजूद अधिकार थे।
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अपीलकर्ता ने क्या की मांग?
- यह मामला मध्य प्रदेश के धार जिले के खेड़ा गांव में एक जमीन के टुकड़े के लिए स्टाम्प ड्यूटी के भुगतान से जुड़ा है।
- अपीलकर्ता मुकेश ने जमीन को एक सिविल मुकदमे में समझौता डिक्री के माध्यम से अधिग्रहित किया था। 2013 में अपीलकर्ता ने इसके बाद एक सिविल कोर्ट में जमीन पर स्थायी निषेधाज्ञा की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया। राष्ट्रीय लोक अदालत ने समझौता डिक्री के माध्यम से मुकदमे का समाधान किया।
कलेक्टर ने स्टाम्प ड्यूटी देने का दिया आदेश
हालांकि, तहसीलदार ने मामले को म्यूटेशन के लिए स्टाम्प कलेक्टर के पास भेज दिया। कलेक्टर ने समझौता डिक्री को भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 के अनुच्छेद 22 के तहत एक हस्तांतरण के रूप में मानते हुए 6 लाख 67 हजार 500 रुपये की स्टाम्प शुल्क निर्धारित की।
राजस्व बोर्ड और हाईकोर्ट ने भी समझौता डिक्री पर स्टाम्प ड्यूटी लगाने के फैसले को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया हाई कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट में जब मामला पहुंचा तो पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
हाईकोर्ट ने समझौता डिक्री के माध्यम से अर्जित संपत्ति पर स्टाम्प शुल्क लगाने के कलेक्टर ऑफ स्टैम्प्स के निर्णय का समर्थन करने में गलती की है, क्योंकि डिक्री ने केवल पहले से मौजूद अधिकारों की पुष्टि की है और संपत्ति में कोई नया अधिकार नहीं बनाया है।
किन मामलों में पंजीकरण की आवश्यकता नहीं?
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, यदि धारा 17(2)(vi) के तहत तीन शर्तें पूरी होती हैं, तो समझौता डिक्री के लिए पंजीकरण की जरूरत नहीं होगी। ये शर्ते हैं...
- बिना किसी मिलीभगत के समझौते की शर्तों के अनुसार समझौता डिक्री होनी चाहिए।
- समझौता डिक्री मुकदमे से शामिल संपत्ति से संबंधित होनी चाहिए।
- संपत्ति पर पहले से मौजूद अधिकार होना चाहिए और समझौता डिक्री से कोई नया अधिकार नहीं बनना चाहिए।
क्या बोले सुप्रीम कोर्ट के वकील?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील विराग गुप्ता ने कहा,
सम्पत्ति से जुड़े दीवानी मामलों में वादी को कोर्ट फीस का पेमेंट करना होता है। कानून के अनुसार समझौते के तहत अदालत से हासिल डिक्री सभी पक्षकारों पर बाध्यकारी होती है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ऐसी समझौता डिक्री से सम्पत्ति का अधिकार हासिल करने के लिए स्टाम्प एक्ट और रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत अलग से स्टाम्प ड्यूटी की कानूनी बाध्यता नहीं है।
समझौता डिक्री क्या है उदाहरण से समझें
जब मामला कोर्ट में होता है और सभी पक्ष समझौता कर मामला निपटाना चाहते हैं तो समझौता डिक्री (compromise decree meaning) का इस्तेमाल होता है। मान लीजिए कि दो पक्ष एक वैध समझौता करते हैं तो दोनों लिखित रूप में घोषित करेंगे कि वो केस छोड़ रहे हैं। इस मामले में कोर्ट समझौता डिक्री तैयार करेगा। कोर्ट आगे यह जांच करेगा कि पार्टी ने स्वेच्छा से प्रवेश किया है।
Source:
सुप्रीम कोर्ट में हुई मामले की पूरी सुनवाई और आदेश के आधार पर इस खबर को बनाया गया है। इस लिंक पर सुप्रीम कोर्ट का पूरा आदेश उपलब्ध है।
https://www.livelaw.in/pdf_upload/3835202115150658154judgement20-dec-2024-577884.pdf

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