Supreme Court की टिप्पणी, कहा- 'UP में जमानत से जुड़े कानून के उल्लंघन के अधिक मामले'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुनवाई अदालतों में जमानत के मामलों को लेकर उसके दिशा-निर्देशों और कानून के उल्लंघन का समर्थन नहीं किया जा सकता है। इससे संबंधित मजिस्ट्रेटों को न्यायिक कार्यों से मुक्त किया जा सकता है।

नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुनवाई अदालतों में जमानत के मामलों को लेकर उसके दिशा-निर्देशों और कानून के उल्लंघन का समर्थन नहीं किया जा सकता है। इससे संबंधित मजिस्ट्रेटों को न्यायिक कार्यों से मुक्त किया जा सकता है और उन्हें अपने कौशल में सुधार के लिए उन्हें शैक्षणिक कार्यों के लिए वापस भेजा जा सकता है।
'उत्तर प्रदेश में अधिक देखने को मिलते हैं मामले'
सुप्रीम कोर्ट ने खासकर उत्तर प्रदेश के संबंध में कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में ऐसे मामले अधिक देखने में आते हैं। जस्टिस एसके कौल के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने पाया कि उनके समक्ष पेश किए गए कुछ आदेशों को पारित करने में नियमों और सुप्रीम दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया गया है। ऐसा सिर्फ यह उदाहरण देने के लिए किया गया कि जमीनी स्तर पर पथभ्रष्टता के ऐसे कितने मामले हैं।
लोगों को भेजा जाता है हिरासत में
सर्वोच्च अदालत ने यह भी पाया कि ऐसा भी नहीं है कि उसके आदेशों का सार सुनवाई अदालतों तक पहुंचा नहीं है। फिर भी ऐसे आदेश पारित किए गए जिनके दो स्वरूप हो सकते हैं। इससे ऐसे लोगों को हिरासत में भेजा जाता है, जिन्हें भेजने की जरूरत नहीं और उनके खिलाफ आगे और आरोप गढ़े जाते हैं।
'हाईकोर्ट का कर्तव्य है कि कानूनों का पालन हो'
खंडपीठ में शामिल जस्टिस ए.अमानुल्लाह और जस्टिस अरविंद कुमार ने कहा कि हमारे विचार में यह ऐसे मामले हैं जिनका समर्थन नहीं किया जा सकता है। यह हाईकोर्ट का कर्तव्य है कि वह निचली अदालतों से अपनी निगरानी में देश के कानूनों का पालन कराए। अगर यह आदेश कुछ मजिस्ट्रेट पारित कर रहे हैं तो इनमें न्यायिक कार्य को पूरा करने की आवश्यकता होगी। ऐसे मजिस्ट्रेटों को कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए न्यायिक शैक्षणिक संस्थानों में वापस भेजा जाना चाहिए।
उत्तर प्रदेश राज्य से आते हैं ऐसे ज्यादातर आदेश- SC
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ऐसे ज्यादातर आदेश बड़ी तादाद में उत्तर प्रदेश राज्य से आते हैं। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ता को पेश होने को कहा ताकि इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में यह सारी बातें लाई जा सकें और उन्हें आवश्यक दिशा-निर्देश दिए जा सकें। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इस संबंध में मुकदमे के अभियोजन पक्ष के निदेशकों के जरिये सभी राज्यों को जागरूक करने की आवश्यकता है। अभियोजन पक्ष के वकीलों के प्रशिक्षण के लिए संगठित रूप से कार्यक्रमों के आयोजन की भी आवश्यकता है।
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