सुप्रीम कोर्ट ने कहा- चुनाव याचिका में भ्रष्ट आचरण के आरोप लगाने पर तथ्यपरक सामग्री देना जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि चुनाव याचिका में लगाए गए भ्रष्ट आचरण के आरोपों के संबंध में तथ्यात्मक सामग्री और विवरण देना जरूरी है। ऐसा न होना चुनाव याचिका के लिए घातक हो सकता है। फोटो- जागरण।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि चुनाव याचिका में लगाए गए भ्रष्ट आचरण के आरोपों के संबंध में तथ्यात्मक सामग्री और विवरण देना जरूरी है। ऐसा न होना चुनाव याचिका के लिए घातक हो सकता है।
तथ्यों को न बताने पर याचिका को कर दी जानी चाहिए खारिज- SC
कोर्ट ने कहा कि भ्रष्ट आचरण से संबंधित तथ्यों को न बताने पर याचिका को शुरुआत में ही खारिज कर दिया जाना चाहिए। यह फैसला न्यायमूर्ति अभय एस ओका और राजेश बिंदल की पीठ ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल अपील स्वीकार करते हुए 19 मई को दिया। यह मामला तमिलनाडु की अरावाकुरिची विधानसभा में नवंबर 2016 में हुए चुनाव से संबंधित था।
सेंथिल बालाजी ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती
मालूम हो कि इसमें चुनाव जीतने वाले सेंथिल बालाजी वी. ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। मद्रास हाई कोर्ट ने सेंथिल की याचिका को खारिज कर दिया था। इसमें सेंन्थिल ने चुनाव रद करने की मांग वाली चुनाव याचिका को खारिज करने की मांग की थी।
सेंथिल ने दी दलील
सुप्रीम कोर्ट में भी सेंथिल ने मुख्य रूप से यही दलील दी थी कि चुनाव याचिका में भष्ट आचरण के जो आरोप लगाए गए हैं, वे रद कर दिये जाएं, क्योंकि कानून के मुताबिक, याचिका में भष्ट आचरण के आरोपों से संबंधित तथ्यपरक सामग्री नहीं दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दिये फैसले में कहा है कि जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 83 की उपधारा (1) के खंड (ए) में कहा गया है कि भौतिक तथ्यों का संक्षिप्त विवरण चुनाव याचिका में जरूर शामिल होना चाहिए। जब आरोप भ्रष्ट आचरण के हों तो धारा 83 की उपधारा (1) के खंड (ए) का अनुपालन करते हुए भ्रष्ट आचरण का गठन करने वाले बुनियादी तथ्य जरूर बताए जाने चाहिए। जबकि इस मामले में वो तथ्य नहीं बताए गए हैं।
कोर्ट ने कहा कि बुनियादी तथ्यों के बारे में केवल यह कह कर दलील नहीं दी जा सकती कि जिन दस्तावेजों पर भरोसा किया गया है, उनमें वे तथ्य दिये गए हैं। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में प्रतिवादी ने चुनाव याचिका में केवल यह कहा है कि दिए गए ज्ञापन की सामग्री को याचिका के एक भाग के रूप में पढ़ा जाए।
कोर्ट ने कहा कि यह भौतिक तथ्यों के संक्षिप्त विवरण को याचिका में शामिल करने की आवश्यकता को पूरा नहीं करता। इसके अलावा जब आरोप भ्रष्ट आचरण का हो तो कार्यवाही वस्तुत: अर्ध-अपराधी बन जाती है। इसलिए, निर्वाचित उम्मीदवार को इस बात की पर्याप्त सूचना मिलनी चाहिए कि उसके खिलाफ क्या आरोप हैं।
कोर्ट ने कहा कि ऐसी याचिका का परिणाम बहुत गंभीर होता है। इसलिए, भ्रष्ट आचरण के बारे में भौतिक तथ्यों को बताने की आवश्यकता का पालन न करने पर याचिका को शुरुआत में ही खारिज कर दिया जाना चाहिए। पीठ ने इस संबंध में वीएस अच्युतानंद के मामले में तीन न्यायाधीशों की पीठ के पूर्व फैसले का हवाला देते हुए कहा कि न्यायिक राय में आम सहमति यही है कि भ्रष्ट आचरण के लगाए गए आरोपों के बारे में संबंधित भौतिक तथ्य न दिया जाना चुनाव याचिका के लिए घातक है यानी याचिका इस आधार पर खारिज हो सकती है।
कोर्ट ने कहा कि भौतिक तथ्य वे प्राथमिक तथ्य हैं, जिसे पक्षकार याचिका दाखिल करने का आधार बताते हुए ट्रायल के दौरान कोर्ट में साबित करता है। चुनाव याचिका दाखिल करने वाले प्रतिवादी की सिर्फ यही दलील है कि उसने भ्रष्ट आचरण के बारे में रिटर्निंग अधिकारी और अन्य अथरिटीज को ज्ञापन देकर शिकायत की थी।
कोर्ट ने कहा कि लेकिन क्या भष्ट आचरण था, उसका संक्षेप में भी जिक्र नहीं किया गया। इसलिए, भ्रष्ट आचरण के जो आरोप लगाए गए उनसे संबंधित तथ्यपरक सामग्री चुनाव याचिका में नहीं दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए मद्रास हाई कोर्ट का आदेश रद कर दिया है, जिसमें चुनाव याचिका में भ्रष्ट आचरण के लगाए गए आरोपों से संबंधित तथ्यात्मक सामग्री न होने पर याचिका खारिज करने की मांग ठुकरा दी गई थी।