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    'बेवफाई साबित करने का शार्टकट नहीं हो सकती नाबालिग बच्चे की डीएनए टेस्टिंग', सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे निजता के अधिकार में हस्तक्षेप हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी अदालत को साक्ष्यों से निष्कर्ष निकालना असंभव लगे या डीएनए टेस्ट के बिना विवाद का समाधान नहीं किया जा सकता हो तभी डीएनए टेस्ट का आदेश देना चाहिए।

    By AgencyEdited By: Mahen KhannaUpdated: Tue, 21 Feb 2023 05:42 AM (IST)
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    बच्चे की डीएनए टेस्टिंग को लेकर एससी की बड़ी टिप्पणी।

    नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि बेवफाई के आरोप वाले वैवाहिक विवादों में नाबालिग बच्चे की डीएनए टेस्टिंग को बेवफाई स्थापित करने के शार्टकट के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि इससे निजता के अधिकार में हस्तक्षेप हो सकता है और मानसिक आघात भी पहुंच सकता है।

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    डीएनए टेस्टिंग का आदेश देना न्यायोचित नहीं

    जस्टिस वी. रामासुब्रमणियन और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा, उस मामले में अदालत के लिए यांत्रिक रूप से बच्चे की डीएनए टेस्टिंग का आदेश देना न्यायोचित नहीं होगा जिसमें बच्चा प्रत्यक्ष रूप से मुद्दा नहीं है। पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि किसी एक पक्ष ने पितृत्व के तथ्य पर विवाद खड़ा किया है, अदालत को विवाद का समाधान करने के लिए डीएनए या किसी ऐसे अन्य टेस्ट का आदेश नहीं दे देना चाहिए। दोनों पक्षों को पितृत्व के तथ्य को साबित करने या खारिज करने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करने के निर्देश दिए जाने चाहिए।

    महिला की याचिका पर सुनवाई को राजी SC

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर अदालत को ऐसे साक्ष्यों से निष्कर्ष निकालना असंभव लगे या डीएनए टेस्ट के बिना विवाद का समाधान नहीं किया जा सकता हो, ऐसी स्थिति में अदालत डीएनए टेस्ट का आदेश दे सकती है। इसी के साथ शीर्ष अदालत ने बांबे हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एक महिला की याचिका को अनुमति प्रदान कर दी।

    परिवार अदालत ने दिया था डीएनए टेस्ट का आदेश 

    बता दें कि बांबे हाई कोर्ट ने परिवार अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा था जिसमें उसने तलाक के मामले में पति की याचिका पर उसके दो बच्चों के डीएनए टेस्ट का आदेश दिया था। पति ने पत्नी पर दूसरे व्यक्ति के साथ अवैध संबंधों का आरोप लगाया था