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    शीर्ष अदालत ने कहा- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के मामलों में कोर्ट उदार दृष्टिकोण अपनाएं

    By AgencyEdited By: Sonu Gupta
    Updated: Fri, 14 Apr 2023 02:56 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 एक सामाजिक लाभ आधारित कानून है और अदालतों को इस कानून के प्रविधानों की व्याख्या करते हुए एक रचनात्मक तथा उदार दृष्टिकोण अपनाना होगा।कोर्ट ने कहा कि अधिनियम का महत्व समाज के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए है।

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    उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के मामलों में कोर्ट उदार दृष्टिकोण अपनाएं: शीर्ष अदालत।

    नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 एक सामाजिक लाभ आधारित कानून है और अदालतों को इस कानून के प्रविधानों की व्याख्या करते हुए एक रचनात्मक तथा उदार दृष्टिकोण अपनाना होगा।

    समाज के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए है अधिनियम का महत्व

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिनियम का महत्व समाज के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए है। उपभोक्ता को बाजार अर्थव्यवस्था में सीधे भाग लेने में सक्षम बनाने के लिए है। जस्टिस अजय रस्तोगी और सी टी रविकुमार की पीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के दिसंबर 2004 के फैसले के खिलाफ एक बीमा कंपनी द्वारा दायर अपीलों पर अपना फैसला सुनाते हुए ये टिप्पणियां कीं।

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    जोखिम के लिए बीमा कराता है व्यक्ति- कोर्ट

    कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति व्यवसायिक उद्देश्य के लिए नहीं जोखिम के लिए बीमा कराता है। मामले के तथ्यों के बारे में विस्तार से बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक वाहन डीलर और एक फर्म ने एक बीमा कंपनी से अग्नि बीमा पालिसी ली थी और 28 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा दंगों के दौरान आग लगने से दोनों के सामान को नुकसान हुआ था।

    मामले का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि हमारा मानना है कि यहां बीमित प्रतिवादी द्वारा दायर शिकायत का लाभ पैदा करने वाली गतिविधि से कोई सीधा संबंध नहीं है और बीमा का दावा उस नुकसान की भरपाई के लिए है जो बीमाकर्ता को हुआ है। प्रतिवादी बीमित को नुकसान उठाना पड़ा था और आयोग ने सही माना है कि प्रतिवादी एक उपभोक्ता है।

    अपीलों को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि गुजरात राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग प्रतिवादियों की शिकायत पर कानून के अनुसार, उनकी योग्यता के आधार पर निर्णय ले सकता है और चूंकि यह एक पुराना मामला है, इसलिए इसे एक वर्ष के भीतर शीघ्रता से तय किया जाना चाहिए और अधिनियमन के प्रयास के उद्देश्य के विपरीत नहीं है।