Supreme Court: पूर्वप्रभावी तिथि से पर्यावरण मंजूरी पर रोक के पुनर्विचार पर फैसला सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्वप्रभावी तिथि से पर्यावरणीय मंजूरी पर रोक के मामले में दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया है। मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने विभिन्न अधिवक्ताओं की दलीलें सुनीं, जिसमें हरित नियमों का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को मंजूरी देने का विरोध किया गया। अदालत ने कहा कि अनुमति योग्य न होने पर परियोजना बंद होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित। फाइल फोटो
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण के लिए संवेदनशील परियोजनाओं को पूर्वप्रभावी तिथि से पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) पर लगाई रोक पर दायर 40 से ज्यादा पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया। बता दें कि इस साल 16 मई को तत्कालीन न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां ने केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के खिलाफ ये आदेश दिया था।
जस्टिस ओका ने कहा था कि प्रदूषण मुक्त माहौल में रहना लोगों का बुनियादी अधिकार है। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति भुइयां और के विनोद चंद्रन की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी और सालिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें सुनीं।
ये अधिवक्ता विभिन्न उद्योगों और आधारभूत इकाइयों के साथ-साथ सरकारी संस्थाओं की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा या सुधार के लिए पेश हुए थे। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन, संजय पारीख और आनंद ग्रोवर ने इस आदेश के पुनर्विचार के खिलाफ दलील रखी। उन्होंने कहा कि अदालत को अराजकता को बढ़ावा नहीं देना चाहिए।
हरित नियमों का उल्लंघन करनेवाली परियोजना को बाद में ईसी कैसे दी जा सकती है। चीफ जस्टिस ने कहा कि हमने सुप्रीम कोर्ट में वकीलों पर भरोसा न करने की आदत विकसित की है। क्योंकि वे संदर्भ से हटकर अपने मुताबिक व्याख्या करने लगते हैं। उन्होंने कहा कि हम केवल 16 मई के आदेश की गुण दोष के आधार पर समीक्षा कर रहे हैं।
सिब्बल ने तर्क दिया कि सरकार के आफिस मेमोरैंडम का उद्देश्य उल्लंघनों को माफ करना नहीं, बल्कि आनुपातिक दंड लगाना और पर्यावरण अनुपालन सुनिश्चित करना था। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर परियोजना अनुमति पाने योग्य नहीं है, तो उसे बंद होना चाहिए। अगर वह अनुमति पाने योग्य है, लेकिन पर्यावरण के आधार पर आगे बढ़ाने योग्य नहीं है, तब भी उसे बंद किया जाना चाहिए। यही आनुपातिक सिद्धांत है।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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