जिला न्यायाधीश पदों के लिए पात्रता संबंधी प्रश्न पर बहस पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को इस संवैधानिक प्रश्न पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि क्या वे न्यायिक अधिकारी बार के सदस्यों के लिए आरक्षित रिक्तियों पर जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए विचार किए जा सकते हैं जिन्होंने पीठ में शामिल होने से पहले अधिवक्ता के रूप में सात साल तक का अनुभव प्राप्त कर लिया है।

पीटीआई, नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को इस संवैधानिक प्रश्न पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि क्या वे न्यायिक अधिकारी बार के सदस्यों के लिए आरक्षित रिक्तियों पर जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए विचार किए जा सकते हैं जिन्होंने पीठ में शामिल होने से पहले अधिवक्ता के रूप में सात साल का अनुभव प्राप्त कर लिया है।
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार, न्यायमूर्ति एससी शर्मा और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने उन मुद्दों पर तीन दिनों तक 30 से अधिक याचिकाओं पर दलीलें सुनीं, जिनका देश भर में न्यायिक भर्ती पर व्यापक प्रभाव पड़ने की आशंका है।
पीठ ने न्यायिक अधिकारियों को बार कोटे के तहत जिला न्यायाधीशों के पदों के लिए अर्हता प्राप्त करने हेतु परीक्षा देने की अनुमति देने की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से कई वरिष्ठ वकीलों के तर्क सुने। इस मुद्दे का विरोध भी कई वकीलों ने किया।
पीठ संविधान के अनुच्छेद 233 की व्याख्या से संबंधित प्रश्नों की जांच कर रही है जो जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति को नियंत्रित करता है। उल्लेखनीय है कि 12 सितंबर को प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह जांच करने का निर्णय लिया कि क्या बार में प्रैक्टिस और उसके बाद न्यायिक सेवा के संयुक्त अनुभव को पात्रता में गिना जा सकता है।
हालांकि, प्रधान न्यायाधीश ने ऐसी व्याख्या के प्रति भी आगाह किया जिससे ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है कि केवल दो साल की प्रैक्टिस वाला व्यक्ति भी इसके लिए पात्र हो जाए। उसी दिन प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने इन सवालों को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेज दिया था।
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