Supreme Court: समलैंगिक विवाह पर दाखिल समीक्षा याचिकाएं खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी मान्यता देने से किया मना
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने से इनकार कर दिया। साथ ही शीर्ष अदालत ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग ठुकराने वाले फैसले के खिलाफ दाखिल सभी पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दीं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई की मांग भी ठुकरा दी।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विवाह की कानूनी मान्यता से इन्कार पर पुनर्विचार की उम्मीद लगाए बैठे समलैंगिक जोड़ों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी निराशा हाथ लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता की मांग ठुकराने वाले फैसले पर गुरुवार को एक फिर से मुहर लगा दी है।
सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 17 अक्टूबर 2023 के फैसले पर पुनर्विचार से इनकार करते हुए कहा कि उन्हें फैसले मे कोई भी कानूनी खामी नजर नहीं आती, इसलिए उस फैसले में दखल देने की कोई जरूरत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
शीर्ष अदालत ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग ठुकराने वाले फैसले के खिलाफ दाखिल सभी पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दीं। इसके साथ ही कोर्ट ने पुनर्विचार याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई की मांग भी ठुकरा दी।
ये फैसला गुरुवार को न्यायमूर्ति बीआर गवई, सूर्यकांत, बी.वी. नागरत्ना, पीएस नरसिम्हा और दीपांकर दत्ता की पीठ ने 2023 के फैसले के खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिकाएं खारिज करते हुए दिया। पीठ ने तय नियमों के मुताबिक पुनर्विचार याचिकाओं पर चैंबर में विचार किया। हालांकि याचिकाओं में खुली अदालत में सुनवाई का भी अनुरोध किया गया था, लेकिन कोर्ट ने इसे ठुकरा दिया।
अदालत सिर्फ कानून की व्याख्या कर सकती है
2023 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दिए फैसले में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग ठुकराते हुए कहा था कि अदालत कानून नहीं बना सकती। अदालत सिर्फ कानून की व्याख्या कर सकती है।
कानून बनाना विधायिका का काम है। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विवाह का मौलिक अधिकार नहीं है। हालांकि कोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों की रोजमर्रा की जिंदगी आसान और सुविधाजनक बनाने के लिए केंद्र सरकार को उच्च स्तरीय समिति गठित कर खाते में नामिनी, सेवानिवृत्ति लाभ आदि के मुद्दे पर विचार करने को कहा था।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि समलैंगिक लोगों को साथ रहने का अधिकार है और उन्हें प्रताडि़त नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने मौजूदा कानून, न्यायशास्त्र और व्यक्तिगत अधिकारों की व्याख्या करते हुए यह फैसला दिया था।
ड्रग्स ले जाने में प्रयुक्त वाहन मुकदमा पूरा होने के बाद जब्त हों : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि ड्रग्स लाने-ले जाने में इस्तेमाल वाहनों को केवल तभी जब्त किया जा सकता है जब मामले का फैसला हो जाए और आरोपित को दोषी ठहराया जाए या बरी कर दिया जाए।जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने यह फैसला सुनाया और कहा कि नार्कोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट के तहत जब्त वाहनों को अंतरिम तौर पर छोड़ने में कोई विशेष रोक नहीं है बशर्ते वाहन का मालिक अपराध में शामिल न हो।
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