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    भीलवाड़ा स्थित ढांचा हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, कहा- सुबूत के बिना किसी जगह को नमाज पढ़ने का स्थल नहीं कहा जा सकता

    By Amit SinghEdited By:
    Updated: Sat, 30 Apr 2022 05:28 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि उपयोग का सुबूत न होने पर किसी जर्जर दीवार या चबूतरे को नमाज के लिए धर्मस्थल नहीं माना जा सकता। यह फैसला जस्टिस हेमंत गुप्ता और वी. रामासुब्रमण्यम की पीठ ने सुनाया।

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    ढांचा हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी (फाइल फोटो)

    माला दीक्षित, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने एक फैसले में कहा कि सर्मपण और उपयोग का सुबूत न होने पर किसी जर्जर दीवार या चबूतरे को नमाज के लिए धर्मस्थल नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज करते हुए राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। हाई कोर्ट ने ढांचे को हटाने में किसी भी प्रतिवादी को दखल नहीं देने का आदेश दिया था। यह फैसला जस्टिस हेमंत गुप्ता और वी. रामासुब्रमण्यम की पीठ ने सुनाया।

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    राजस्थान वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज

    राजस्थान हाई कोर्ट ने 'जिंदल सा लिमिटेड' की खनन पट्टे वाली जमीन पर स्थित ढांचा हटाने की इजाजत मांगने वाली याचिका स्वीकार करते हुए वक्फ बोर्ड और अन्य पक्षकारों को निर्देश दिया था कि वे राजस्थान के भीलवाड़ा में पुर गांव के खसरा नंबर 6731 पर स्थित ढांचा हटाने में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे। राजस्थान वक्फ बोर्ड का दावा था कि जो जमीन 'जिंदल सा लिमिटेड' को खनन पट्टे पर दी गई है उसमें से भीलवाड़ा के पुर गांव के खसरा नंबर 6731 पर एक दीवार और चबूतरा है जो तिरंगा की कलंदरी मस्जिद है, वहां पुराने समय में मजदूर नमाज पढ़ा करते थे। वक्फ बोर्ड की मांग थी कि इस जगह को संरक्षित किया जाए।

    सुबूतों के आधार कोर्ट ने सुनाया फैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की ओर से पेश सुबूतों और विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट देखने और दलीलें सुनने के बाद अपने फैसले में कहा कि दस्तावेजों को देखने से पता चलता है कि तिरंगा हिल पर कलंदरी मस्जिद सर्वे संख्या 931 पर स्थित है। यह कहीं नहीं कहा गया है कि सर्वे संख्या 931 बदलकर सर्वे संख्या 6731 हो गई है। वास्तव में सर्वे संख्या 6731 पुराने सर्वे में सर्वे संख्या 9646 है या कुछ और होगी, लेकिन सर्वे संख्या 931 नहीं है। वक्फ बोर्ड जो दावा कर रहा है वह जमीन का दूसरा भाग है। यह वह हिस्सा नहीं है जिस पर खनन का पट्टा दिया गया है।

    वक्फ बोर्ड के दस्तावेजों में अंतर

    वक्फ बोर्ड ने जो दो दस्तावेज रजिस्टर और सेकेंड सर्वे रिपोर्ट पेश किए हैं, उनमें अंतर है। अंजुमन कमेटी का 17 अप्रैल, 2012 का पत्र सुनी सुनाई बातों पर आधारित है, इसलिए उसका बाध्यकारी महत्व नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात का भी कोई सुबूत पेश नहीं किया गया कि उस ढांचे का कभी मस्जिद की तरह उपयोग हुआ हो। इसका भी सुबूत नहीं है कि वह कभी समर्पण या उपयोग के आधार पर वक्फ को समर्पित हुई हो, जो वक्फ कानून की धारा तीन(आर) के तहत वक्फ की परिभाषा में आती हो।

    ऐतिहासिक महत्व का नहीं है ढांचा

    कोर्ट ने संबंधित ढांचे के बारे में विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर कहा कि उस रिपोर्ट का सिर्फ इतना महत्व है कि वह ढांचा पुरातात्विक या ऐतिहासिक महत्व का नहीं है।शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा कि राजस्थान सरकार अपनी इस दलील के समर्थन में कोई रिकार्ड पेश नहीं कर पाई कि खसरा नंबर 6731 को धार्मिक स्थल चिह्नित किया गया था। कोर्ट ने कहा कि पट्टादाता होने के लिहाज से राज्य सरकार के पास हमेशा यह अधिकार है। वह उचित आधार पर नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत लागू करके इस शक्ति का इस्तेमाल कर सकती है।

    यह था मामला

    'जिंदल सा लिमिटेड' को आठ दिसंबर, 2010 को राजस्थान में 1556.7817 हेक्टेयर जमीन पर सोना, चांदी, शीशा, जिंक, कापर, आयरन, कोबाल्ट, निकिल आदि के खनन का पट्टा मिला था। जमीन के एक हिस्से पर स्थित दीवार और चबूतरे को वक्फ बोर्ड तिरंगा कलंदरी मस्जिद होने का दावा करते हुए उस पर खनन रोकने की मांग कर रहा था। जिंदल कंपनी ने हाई कोर्ट में रिट दाखिल कर हस्तक्षेप पर रोक लगाने की मांग की। हाई कोर्ट ने वक्फ बोर्ड व अन्य पक्षों को निर्देश दिया था कि वे ढांचे को हटाने में दखलंदाजी नहीं करेंगे। आदेश को वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। बोर्ड की दलील थी कि संपत्ति वक्फ है कि नहीं, यह बात धारा-83 के तहत वक्फ ट्रिब्युनल तय करेगा। हाई कोर्ट अनुच्छेद 226 में दाखिल याचिका पर यह तय नहीं कर सकता।