अयोध्या राम जन्मभूमि फैसले में सिख धर्म से संबंधित संदर्भ हटाने की मांग सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराई
मंजीत सिंह रंधावा ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दाखिल कर अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में दिये गए फैसले के एडेन्डम में सिख धर्म से संबंधित कुछ संदर्भों को हटाने की मांग की थी।

नई दिल्ली, माला दीक्षित। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में 9 नवंबर 2019 को दिये गए फैसले में सिख धर्म से संबंधित कुछ संदर्भों को हटाने की मांग ठुकरा दी है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल रिट याचिका में फैसले के साथ लगे एडेन्डम (परिशिष्ट) में की गई कुछ टिप्पणियां हटाने की मांग की है। लेकिन अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल याचिका में की गई फैसले की टिप्पणियां हटाने की मांग सुनवाई योग्य नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि ये अदालत सभी धर्मों को समान समझती है और आदर करती है
कोर्ट ने यह भी कहा कि उस फैसले को इस तरह नहीं समझा जा सकता कि उसकी कोई टिप्पणीं याचिकाकर्ता की आस्था को चोट पहुंचाती हैं। कोर्ट ने कहा कि यह अदालत सभी धर्मों को समान समझती है और आदर करती है। इन टिप्पणियों के साथ प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और हिमा कोहली की पीठ ने याचिकाकर्ता मंजीत सिंह रंधावा की याचिका निपटा दी। मंजीत सिंह रंधावा ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दाखिल कर अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में दिये गए फैसले के एडेन्डम में सिख धर्म से संबंधित कुछ संदर्भों को हटाने की मांग की थी।
क्या कहा गया है याचिका
अयोध्या मामले में दिये फैसले में सिख धर्म के लिए 'कल्ट' (संप्रदाय) शब्द का इस्तेमाल किये जाने पर आपत्ति उठाई गई थी। याचिका में कहा गया था कि कल्ट शब्द का नकारात्मक अर्थ में इस्तेमाल होता है। सिख धर्म के लिए इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। सिख एक अलग धर्म है। यह मामला गत शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए लगा था। याचिकाकर्ता के वकील अनिर्बान भट्टाचार्या ने फैसले के एडेन्डम के पेज संख्या 992 से 994 तक सिख धर्म से संबंधित संदर्भ हटाने का अनुरोध किया।
मांग पर प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आप जिन संदर्भों की बात कर रहे हैं वह मुख्य फैसले का हिस्सा नहीं है जिसे पांच न्यायाधीशों ने हस्ताक्षरित किया है। याचिका में बताए गए संदर्भ मुख्य फैसले के साथ जुड़े परिशिष्ट का हिस्सा है जो एक न्यायाधीश की राय है और जिस पर किसी के हस्ताक्षर नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि फैसले के अंश हटाने की मांग अनुच्छेद 32 में दाखिल रिट याचिका में नहीं की जा सकती।
कोर्ट ने याचिका निपटाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता का दृष्टिकोण शायद फैसले की गलत समझ पर आधारित है। फैसले को याचिकाकर्ता की आस्था को चोट पहुंचाने वाला नहीं समझा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट सभी धर्मों को समान समझता है और आदर करता है यही संविधान के अनुच्छेद 25 का मूल तत्व है। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका निपटा दी। सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 9 नवंबर 2019 को अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सर्वसम्मति से दिये फैसले में विवादित भूमि के भगवान राम का जन्मस्थान होने के हिन्दू पक्ष और भगवान राम विराजमान के दावे को स्वीकार किया था।
आस्था और विश्वास के सवाल का जवाब
यह फैसला 929 पेज का था इसके बाद 116 पेज का एडेन्डा यानी परिशिष्ट भी जुड़ा था, जिसमें विवादित भूमि को भगवान राम का जन्मस्थान मानने की हिन्दुओं की आस्था और विश्वास के सवाल का जवाब दिया गया है। उसमें विभिन्न दस्तावेजों, पुस्तकों और गजेटियरों का संदर्भ दिया गया है। उसी में गुरु नानक देव जी के अयोध्या जाने और राम जन्मभूमि का दर्शन करने की बात कही गई है।
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