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    SC का अवैध निर्माण कर बनाई मस्जिद ढहाने के आदेश में दखल से इनकार, धर्मस्थलों को हटाने के पूर्व आदेशों का किया जिक्र

    By Agency Edited By: Amit Singh
    Updated: Wed, 28 Feb 2024 06:15 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद और मदरसे की संस्था की ओर से दाखिल याचिका खारिज करते हुए कहा कि निर्माण पूरी तरह अवैध था। साथ ही कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सार्व ...और पढ़ें

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    मद्रास हाई कोर्ट ने दिया था चेन्नई में मस्जिद ए हिदाय और मदरसे को ध्वस्त करने का आदेश।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करके चेन्नई में बनाई गई मस्जिद और मदरसे को ध्वस्त करने के हाई कोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद और मदरसे की संस्था की ओर से दाखिल याचिका खारिज करते हुए कहा कि निर्माण पूरी तरह अवैध था। साथ ही कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सार्वजनिक स्थानों या सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर बनाए गए धार्मिक स्थलों को हटाने के अपने पूर्व आदेश का भी हवाला दिया और कहा कि अथारिटीज की जिम्मेदारी है कि वे ऐसे अवैध निर्माण हटाएं।

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    मौखिक टिप्पणी में कोर्ट ने यह भी कहा कि अवैध रूप से बनाई गई इमारत धर्म की शिक्षा का स्थान नहीं हो सकती। ये टिप्पणियां और आदेश जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मस्जिद ए हिदाय और मदरसा की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करते हुए सोमवार को दिए। कोर्ट ने कहा कि उन्हें इस मामले में हाई कोर्ट के आदेश में दखल देने की जरूरत नहीं लगती। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता उस जमीन का स्वामी नहीं है। वह जमीन चेन्नई मैट्रोपोलिटन डेवलेपमेंट अथारिटी की है। याचिकाकर्ता संस्था उस जमीन पर अवैध कब्जेदार है। उसने कभी भी इमारत का प्लान मंजूर कराने के लिए आवेदन नहीं किया। निर्माण पूरी तरह अवैध है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अथारिटीज की ओर से नौ दिसंबर, 2020 को नोटिस दिए जाने के बावजूद निर्माण बेरोकटोक जारी रहा। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता हिदाय मुस्लिम वेलफेयर ट्रस्ट के वकील ने जब हाई कोर्ट के नवंबर, 2023 के निर्माण हटाने के आदेश का विरोध किया तो कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पूर्व में आदेश दे चुका है कि सार्वजनिक स्थान पर कोई अवैध निर्माण हो, तो चाहे वह मंदिर हो या मस्जिद या कुछ भी उसे ढहाया जाए। सारे हाई कोर्ट उस आदेश की निगरानी कर रहे हैं और राज्य सरकारें भी उस बारे में उचित निर्देश जारी करती हैं।

    संस्था के वकील ने कोर्ट से कहा कि मस्जिद के कारण वहां लोगों को कोई बाधा नहीं आ रही है। और यह भी कहा कि ट्रस्ट ने वह जमीन खरीद ली है। लेकिन कोर्ट ने नोट किया कि जमीन अभी भी चेन्नई मैट्रोपोलिटन डेवलेपमेंट अथारिटी (सीएमडीए) द्वारा अधिगृहित की हुई है और ट्रस्ट ने बिना कोई प्लान व मंजूरी के वहां निर्माण कर लिया है। हालांकि वकील ने बचाव करते हुए दलील दी कि वह जमीन बहुत लंबे समय से खाली पड़ी थी जिसका मतलब है कि सरकार को जनहित में उस जमीन की जरूरत नहीं थी। पीठ ने इस पर पलटकर कहा कि क्या इसका मतलब है कि आप जमीन पर अवैध कब्जा कर लेंगे। जमीन सरकार की है, वह उसे प्रयोग करे या न करे, लेकिन आपको उस पर कब्जे का कोई अधिकार नहीं है।

    पीठ ने कहा कि वह बिल्कुल स्पष्ट है कि चाहे मंदिर हो या मस्जिद, अवैध निर्माण नहीं हो सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। हालांकि मामले की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए कोर्ट ने बिल्डिंग हटाने के लिए याचिकाकर्ता को 31 मई तक का समय दे दिया है।

    मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के एक मामले में 2009 से 2018 के बीच सार्वजनिक स्थानों पर अवैध कब्जा कर बनाए गए धार्मिक स्थलों को हटाने के बारे में कई आदेश दिए थे। कोर्ट ने कहा था कि सार्वजनिक स्थानों पर कोई अवैध निर्माण नहीं होना चाहिए और जो निर्माण पुराना हो चुका है, उसे हर मामले के हिसाब से देखा जाए। इस मामले को जनवरी, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्टों को निगरानी के लिए भेज दिया था।