सार्वजनिक स्थानों पर संविधान की प्रस्तावना के प्रदर्शन की मांग पर सुप्रीम कोर्ट का विचार करने से इन्कार
देश की सर्वोच्च अदालत से केंद्र और राज्य सरकारों को संविधान की प्रस्तावना को सार्वजनिक स्थानों और सरकारी कार्यालयों में स्थानीय भाषाओं में प्रदर्शित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया।
नई दिल्ली, आइएएनएस। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को संविधान की प्रस्तावना को सार्वजनिक स्थानों और सरकारी कार्यालयों में स्थानीय भाषाओं में प्रदर्शित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने कहा कि कुछ चीजें हैं, जिन्हें सरकार पर छोड़ना होगा। पीठ ने कहा, 'कुछ लोग वास्तव में उद्यमी हैं। निर्वाचित हो जाइए और ऐसा कीजिए। इसके लिए यह जगह नहीं है।'
प्रस्तावना को कहां प्रदर्शित किया जाए यह देखना अदालत का काम नहीं
पीठ ने स्पष्ट किया कि यह देखना उसका काम नहीं है कि प्रस्तावना को कहां प्रदर्शित किया जाए। अदालत ने याचिकाकर्ता जे. अहमद पीरजादे के वकील से कहा कि या तो उन्हें याचिका वापस ले लेनी चाहिए या अदालत इसे खारिज कर देगी। वकील ने याचिका वापस लेने पर सहमति जताई।
संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न से कानून का उल्लंघन नहीं
इससे इतर एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत निर्माणाधीन नए संसद भवन के ऊपर स्थापित किए गए भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के प्रतिरूप पर सवाल उठाने वाली याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि उसमें भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न (अनुचित उपयोग निषेध) कानून का उल्लंघन नहीं होता।
राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के प्रतिरूप पर उठाए थे सवाल
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता दो वकीलों ने निर्माणाधीन संसद भवन के ऊपर स्थापित किए गए राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के प्रतिरूप पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इसमें शेर ज्यादा आक्रामक प्रतीत होते हैं।
खारिज की दलीलें
पीठ ने दलीलें खारिज करते हुए मौखिक टिप्पणी में कहा कि यह धारणा व्यक्ति के दिमाग पर निर्भर करती है। पीठ ने कहा कि मामले को सुनने और चीजों को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि इसमें भारत के राष्ट्रीय प्रतीक (अनुचित उपयोग निषेध) अधिनियम, 2005 का उल्लंघन होता है।
ये शेर मूल आकृति के बिल्कुल भी अलग नहीं
मालूम हो कि कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों की ओर से भी इसी तरह का आरोप लगाते हुए सरकार पर राजनीतिक हमला किया गया था। जबकि सरकार की ओर से स्पष्ट किया गया था कि ये शेर मूल आकृति के बिल्कुल भी अलग नहीं हैं। चूंकि संसद भवन पर बड़े आकार के स्मृति चिह्न लगाए गए हैं इसीलिए देखने में कुछ भ्रम हो सकता है।