'ग्राहक राजा होता है, उसे जानने का हक',कांवड़ मार्ग के होटलों पर QR कोड जरूरी; SC ने कहा- नियमों का करना होगा पालन
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा मार्ग पर भोजनालयों में क्यूआर कोड प्रदर्शित करने के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यात्रा समाप्त होने वाली है इसलिए इस मुद्दे पर विचार नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि ग्राहकों को यह जानने का अधिकार है कि रेस्टोरेंट में मांसाहारी भोजन परोसा जाता है या नहीं।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा मार्ग में सभी भोजनालयों और रेस्टोरेंटो में क्यूआर कोड प्रदर्शित करने के आदेश की वैधता पर विचार करने से इनकार कर दिया।
कोर्ट से क्यूआर कोड प्रदर्शित करने के निर्देशों पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा गया था कि इससे दुकानदार का नाम और ब्योरा लोगों को पता चलेगा जिससे कि भेदभाव बढ़ेगा। लेकिन कोर्ट ने कहा कि चूंकि यात्रा समाप्त होने वाली है इसलिए वे इसकी वैधता के मुद्दे पर विचार नहीं करेंगे।
कोर्ट ने नहीं जारी किया रोक आदेश
कोर्ट ने इस संबंध में कोई रोक आदेश जारी नहीं किया। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले सभी होटल और भोजनालयों को आदेश दिया है कि वे नियम कानून के मुताबिक अपना लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करेंगे। सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि ग्राहकों को ये जानने का अधिकार है कि क्या रेस्टोरेंट में पहले नॉन-वेज भोजन परोसा जाता था।
ग्राहकों को रेस्टोरेंट के बारे में जानने का अधिकार
मामले की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति एमएम सुंद्रेश और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने ग्राहकों के जानने के अधिकार पर जोर देते हुए कहा कि ग्राहक को यह जानने का अधिकार है कि रेस्टोरेंट सिर्फ शाकाहारी भोजन परोसता है या वहां शाकाहार व मांसाहार दोनों तरह का भोजन परोसा जाता है। या पहले मांसाहार और शाकाहार दोनों परोसा जाता था लेकिन यात्रा के दौरान सिर्फ शाकाहार परोसा जाता है। यह ग्राहक की पसंद का मुद्दा है।
'ग्राहक राजा होता है, पंदस उसी की चलेगी'
कोर्ट ने कहा कि अगर रेस्टोरेंट में पूरे वर्ष शाकाहारी भोजन परोसा जाता है तो कोई समस्या नहीं है लेकिन अगर पहले मांसाहार भोजन बेचा जाता था और अब यात्रा के दौरान शाकाहार बेच रहे हैं तो ग्राहक को मालूम होना चाहिए। पसंद ग्राहक की चलेगी। ग्राहक राजा होता है। कुछ वर्गीकरण होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि कुछ लोग शाकाहारी होते हैं और कुछ लोग तो लहसुन प्याज भी नहीं खाते। जो पूर्ण शाकाहारी होते हैं वे उन रेस्टोरेंट में भोजन नहीं करना चाहते जहां मांसाहार भी परोसा जाता है। ये लोगों के भोजन की पसंद है।
कोर्ट ने पूछा कि क्या लाइसेंस और प्रमाणपत्र में लिखा होता है कि ये रेस्टोरेंट शाकाहारी है या मांसाहारी या दोनों। पीठ ने कहा कि दुकानदार का नाम बताया जाए या न बताया जाए इसका फर्क नहीं पड़ता पर ग्राहक को मालूम होना चाहिए कि इस रेस्टोरेंट में शाकाहारी भोजन मिलता है या मांसाहारी।
कांवड़ यात्रा मार्ग पर भोजनालयों पर दुकानदारों और कर्मचारियों का नाम प्रदर्शित करने और क्यूआर कोड प्रदर्शित करने के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के आदेशों को चुनौती देने वाली अर्जियों पर बहस करते हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और हुजैफा अहमदी ने कहा कि इस आदेश से भेदभाव फैलेगा और अल्पसंख्यक वर्ग का बहिष्कार होगा।
याचिका में दिया गया ये तर्क
उन्होंने कहा कि यह आदेश रोजगार और जीवन के संवैधानिक अधिकार अनुच्छेद 19(1)(जी) और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है। सिंघवी ने कहा कि कांवड़ यात्र के दौरान उस मार्ग पर पड़ने वाले सभी भोजनालय सिर्फ शाकाहारी भोजन परोसते हैं जिसे भोजन के बारे में पता करना है वह मैन्यू कार्ड देख सकता है रेस्टोरेंट में जाकर पता कर सकता है लेकिन दुकानदार का नाम प्रदर्शित करने या क्यूआर कोड प्रदर्शित करने के आदेश के पीछे मंशा दुकानदार की पहचान का खुलासा करने की है। इससे अल्पसंख्यक वर्ग बहिष्कार के शिकार हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि उन्हें लाइसेंस नियमों के मुताबिक दुकान में प्रमुख स्थल पर लाइसेंस और प्रामण पत्र प्रदर्शित करने में कोई परेशानी नहीं है और वे ऐसा करते भी हैं। कोर्ट को नाम और क्यूआर कोड प्रदर्शित करने के आदेश पर रोक लगा देनी चाहिए। पिछले वर्ष कोर्ट ने अंतरिम आदेश दिया था कि किसी दुकानदार को नाम प्रदर्शित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। लेकिन दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अर्जियों का विरोध करते हुए कहा कि कांवड़ यात्रा 23 जुलाई को समाप्त हो रही है और पिछले साल के आदेश का अब कोई मतलब नहीं है।
कोर्ट को कोई आदेश नहीं देना चाहिए। उन्होंने दुकानदारों की पहचान उजागर करने के आदेश का समर्थन करते हुए कहा कि यहां मुद्दा लोगों की आस्था और विश्वास का है। ऐसी भी घटनाएं हुई हैं जिसमें दुकान का नाम कुछ और दुकानदार कोई और था। उन्होंने कहा कि आदेश फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथारिटी आफ इंडिया के नियमों के तहत जारी किये गए हैं। इस देश में ऐसे भी लोग हैं जो अगर भाई के घर मांसाहार बनता है तो वहां भोजन नहीं करते। रोहतगी ने कहा कि नियम कानून के मुताबिक फोटो परिचय पत्र प्रदर्शित करना होता है, तो फिर नाम दिखाने में क्या हर्ज है।
क्यूआर कोड की वैधानिकता के मुद्दे पर विचार करने से इनकार
कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि यात्रा समाप्त होने वाली है इसलिए वे फिलहाल क्यूआर कोड की वैधानिकता के मुद्दे पर विचार नहीं करेंगे। कोर्ट ने कहा कि वह अभी यही आदेश देंगे कि यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले सारे भोजनालय व होटल विधायी नियमों और कानूनों के मुताबिक लाइसेंस और प्रमाण-पत्र प्रदर्शित करेंगे। यह कहते हुए कोर्ट ने क्यूआर कोड प्रदर्शित करने पर रोक लगाने की मांग वाली सारी अर्जियां निपटा दीं।
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