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    'भ्रूण में कोई असामान्यता नहीं', सुप्रीम कोर्ट ने 32 सप्ताह गर्भवती महिला की गर्भपात याचिका की खारिज

    By Agency Edited By: Nidhi Avinash
    Updated: Wed, 31 Jan 2024 04:20 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 26 वर्षीय महिला को 32 हफ्ते से अधिक के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा यह 32 सप्ताह का भ्रूण है। इसे कैसे समाप्त किया जा सकता है? मेडिकल बोर्ड ने भी कहा है कि इसे समाप्त नहीं किया जा सकता है। आप चाहें तो इसे गोद लेने के लिए दे सकते हैं।

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    सुप्रीम कोर्ट ने 32 सप्ताह की गर्भवती महिला याचिका की खारिज (Image: ANI)

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 26 वर्षीय महिला को 32 हफ्ते से अधिक के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने माना है कि भ्रूण में कोई असामान्यता नहीं है।

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    बता दें कि महिला ने पिछले साल अक्टूबर में अपने पति को खो दिया था और 31 अक्टूबर को उसे अपनी गर्भावस्था के बारे में पता चला। महिला की ओर से पेश वकील अमित मिश्रा ने कहा कि अगर वह बच्चे को जन्म देगी तो यह उसकी इच्छा के खिलाफ होगा और उसे जीवन भर यह सदमा झेलना होगा।

    दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले सुनाया था फैसला

    जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना भालचंद्र वरले की पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के 23 जनवरी के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। दरअसल, 4 जनवरी के अपने पहले फैसले में कोर्ट ने महिला को 29 सप्ताह के भ्रूण को समाप्त करने की अनुमति दी थी।

    32 सप्ताह के भ्रूण को कैसे समाप्त किया जा सकता है?

    पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, 'यह 32 सप्ताह का भ्रूण है। इसे कैसे समाप्त किया जा सकता है? मेडिकल बोर्ड ने भी कहा है कि इसे समाप्त नहीं किया जा सकता है। यह दो सप्ताह का मामला है, फिर आप चाहें तो इसे गोद लेने के लिए दे सकते हैं।' पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने प्रत्येक बिंदु पर विचार किया है, जिसमें मेडिकल बोर्ड की राय भी शामिल है। न्यायाधीश त्रिवेदी ने कहा, मेडिकल बोर्ड ने राय दी है कि इसमें कोई असामान्यता नहीं है और यह एक सामान्य भ्रूण है। इसमें यह भी कहा गया है कि याचिकाकर्ता के लिए भी कोई खतरा नहीं है, अगर वह गर्भावस्था जारी रखती है।

    पति को खोने के बाद महिला तनाव में थी 

    महिला के वकील मिश्रा ने तर्क दिया कि महिला एक विधवा है और उसे जीवन भर आघात सहना होगा और अदालत को उसके हित पर विचार करना चाहिए। इस पर न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने उनसे पूछा, 'हमें केवल उनके हित पर ही विचार क्यों करना चाहिए? इसके बाद पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और याचिका खारिज कर दी।

    हाई कोर्ट ने कहा था कि महिला 32 सप्ताह के गर्भ में ही प्रसव के लिए एम्स या किसी अन्य केंद्रीय या राज्य सरकार के अस्पताल में जा सकती है और अगर वह बाद में नवजात को गोद देने के लिए इच्छुक है, तो केंद्र यह सुनिश्चित करेगा कि प्रक्रिया सुचारू रूप से और जल्द से जल्द हो। इसमें कहा गया है कि संबंधित सरकार प्रसव की प्रक्रिया में सभी चिकित्सा और आकस्मिक खर्च वहन करेगी।

    एम्स मेडिकल बोर्ड की राय पर दिया ध्यान

    4 जनवरी को, अदालत ने अवसाद से पीड़ित विधवा को अपने 29 सप्ताह के भ्रूण को समाप्त करने की अनुमति दी थी क्योंकि गर्भावस्था जारी रखने से उसके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता था। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में महिला की चिकित्सकीय जांच की गई थी। एम्स ने दावा किया कि मां और बच्चे के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए गर्भावस्था को अगले दो-तीन सप्ताह तक जारी रखना उचित है।

    अपने आदेश में, उच्च न्यायालय ने एम्स मेडिकल बोर्ड की राय पर ध्यान दिया था जिसमें कहा गया था कि महिला तनाव से पीड़ित थी, न कि किसी मानसिक लक्षण से और ऐसा कोई सुझाव नहीं था कि चल रही गर्भावस्था या प्रसव से उसके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा कि गर्भावस्था को समाप्त करना आवश्यक हो जाएगा। उच्च न्यायालय ने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने यह भी राय दी थी कि चूंकि भ्रूण में कोई असामान्यता नहीं दिखी, इसलिए भ्रूणहत्या न तो उचित है और न ही नैतिक।

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