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सड़क के गड्ढों में गिरने से मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को लगाई फटकार

2017 में 3597 लोगों की मौत गढ्डों के कारण सड़क दुर्घटना में हुई थी जबकि आतंकी हमलों में 803 लोगों की मौत हुई थी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 09:51 PM (IST)Updated: Tue, 18 Sep 2018 09:52 PM (IST)
सड़क के गड्ढों में गिरने से मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को लगाई फटकार
सड़क के गड्ढों में गिरने से मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को लगाई फटकार

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सड़क के गढ्डों के कारण गिरने से दुर्घटना में होने वाली मौतों पर चिंता जताते हुए इसे गंभीरता से न लेने पर राज्यों को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल 3597 लोगों की मौत सड़क के गड्ढों में गिरने से हुई, लेकिन ये दुर्भाग्य की बात है कि राज्य सरकारें इसे गंभीरता से लेने के बजाए आंकड़ों पर सवाल उठा रही हैं।

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पिछले साल 3597 लोगों की मौत सड़क में गढ्डों के कारण हुई थी

ये टिप्पणियां न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सड़क दुर्घटनाओं के मामले में सुनवाई के दौरान कीं। कोर्ट ने सड़क दुर्घटनाएं रोकने के बारे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी को इस बारे में रिपोर्ट दाखिल करने का समय देते हुए मामले की सुनवाई नवंबर के पहले सप्ताह तक के लिए टाल दी। इसके साथ ही पीठ ने कहा कि वह उम्मीद करती है कि राज्य सरकारें इस मसले को गंभीरता से लेंगी और सड़क के गढ्डों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं के मौतों के लिए मुआवजा तय करने पर भी विचार करेंगी।

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी गठित की थी जो सड़क दुर्घटनाएं रोकने पर विचार करती है और समय समय पर रिपोर्ट दाखिल कर इसे रोकने के उपाय बताती है।

मंगलवार को पीठ ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि राज्य सरकारें केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राज्य मार्ग मंत्रालय द्वारा दिये गए आंकड़ों पर सवाल उठा रही हैं जबकि उन्हीं ने ये आंकड़े मंत्रालय को दिये हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्य कह रहे हैं कि आंकड़ों को राज्यों के परिवहन विभाग से नहीं जांचा गया है। ये कैसी बात है।

कोर्ट ने आज अपने आदेश में पूर्व सुनवाई के दौरान की गई अपनी उन टिप्पणियों को भी दर्ज किया जिसमें कहा गया था कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं में आतंकवादी हमलों से ज्यादा लोगों की मौत होती है। स्थिति भयावह है। गत जुलाई में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आधिकारिक आंकड़ों पर संज्ञान लिया था जिसके मुताबिक 2017 में 3597 लोगों की मौत गढ्डों के कारण सड़क दुर्घटना में हुई थी जबकि उस वर्ष आतंकी हमलों में 803 लोगों की मौत हुई थी। तभी कोर्ट ने उपरोक्त टिप्पणी की थी।

मंगलवार को कोर्ट ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि सड़क दुर्घटनाओं के मामलों पर विचार कर रही कमेटी की बैठक में कुछ राज्यों ने कहा कि उन्हें सड़क की मरम्मत के लिए दिया गया पैसा पर्याप्त नहीं है। पीठ ने कहा कि राज्य ऐसा कैसे कह सकते हैं। जब राज्य सड़क बनाते हैं तो उसे ठीक रखने की जिम्मेदारी किसकी है। उन्हीं का तो दायित्व है कि वे उसे मेनटेन रखें। अगर उनके पास सड़क दुरुस्त रखने का पैसा नहीं है तो वे सड़क बनाने के लिए ठेकेदारों को पैसा क्यों देते हैं। राज्य कर क्या रहे हैं। कौन सड़कें दुरुस्त रखेगा क्या लोग खुद सड़कें दुरुस्त करेंगे।

मामले में न्यायमित्र वकील गौरव अग्रवाल ने कोर्ट में कहा कि अथारिटीज इन समस्याओं को नहीं देख रहीं है और बैठक में सड़क गढ्डों की मरम्मत को लेकर किसी नीति पर चर्चा नहीं हुई। उन्होंने कहा कि इसके अलावा उन ब्लाइंड स्पाट पर भी विचार होना चाहिए जहां ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं।

सड़क दुर्घनाओँ में होने वाली मौतों पर पांच लाख रुपये एकमुश्त मुआवजा दिये जाने पर भी विचार चल रहा है। इस पर पीठ ने सवाल किया कि क्या इसमें गड्ढों की दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों पर मुआवजे का भी मुद्दा है। अग्रवाल ने कहा कि उस पर विचार होगा।

पीठ ने कहा कि कमेटी अच्छा काम कर रही है, लेकिन राज्य इसे गंभीरता से नहीं ले रहे। इसी महीने हुई कमेटी की बैठक में केन्द्रीय मंत्रालय के अलावा आठ राज्यों ने हिस्सा लिया। कोर्ट ने गढ्डों में गिरने के कारण होने वाली सड़क दुर्घटनाओं पर कमेटी को रिपोर्ट देने का समय देते हुए मामले की सुनवाई स्थगित कर दी। 


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