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    'संघीय ढांचे का क्या होगा', सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु शराब घोटाले में ED को लगाई फटकार

    Updated: Tue, 14 Oct 2025 03:35 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु शराब घोटाले में ED की जांच पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने पूछा कि जब राज्य सरकार जांच कर रही है, तो ED को हस्तक्षेप का क्या अधिकार है? ED ने TASMAC में अनियमितताओं और नकदी का दावा किया है, जबकि राज्य सरकार ने इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताया है। कोर्ट ने ED को नोटिस जारी किया है।

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    ED ने दावा किया कि उसने TASMAC के संचालन में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं और 1,000 करोड़ रुपये की बिना हिसाब की नकदी का पता लगाया है।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु के कथित शराब घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच पर कड़े सवाल उठाए। तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड (TASMAC) से जुड़े इस मामले में कोर्ट ने ED से पूछा कि क्या वह राज्य सरकार के जांच के अधिकार को छीन नहीं रही।

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    मार्च में हुई छापेमारी और 'आपत्तिजनक सामग्री' मिलने के दावों पर कोर्ट ने ED को जवाब देने को कहा। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच ने सवाल उठाया, "जब राज्य पहले ही मामले की जांच कर रहा हो, तो क्या ED को खुद जांच करने का हक है?"

    ED ने दावा किया कि उसने TASMAC के संचालन में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं और 1,000 करोड़ रुपये की बिना हिसाब की नकदी का पता लगाया है। लेकिन तमिलनाडु की डीएमके सरकार और TASMAC ने ED की कार्रवाई को चुनौती दी, यह कहते हुए कि जब कोई प्राथमिकी TASMAC के खिलाफ नहीं है, तो ED को मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत कार्रवाई का अधिकार नहीं है।

    'संघीय ढांचे पर सवाल और गोपनीयता का हनन'

    सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी ने तमिलनाडु सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने सवाल उठाया कि जब राज्य ने पहले ही 47 प्राथमिकियां दर्ज कर जांच शुरू कर दी है, तो ED बीच में क्यों आ रही है?

    सिब्बल ने PMLA की धारा 66(2) का हवाला दिया, जो कहती है कि अगर ED को किसी अन्य कानून के उल्लंघन का सबूत मिलता है, तो उसे संबंधित प्राधिकरण के साथ जानकारी साझा करनी चाहिए। रोहतगी ने TASMAC कर्मचारियों की गोपनीयता के हनन पर सवाल उठाया, खासकर महिला कर्मचारियों के मोबाइल फोन जब्त करने और उन्हें हिरासत में रखने की कार्रवाई पर।

    मुख्य न्यायाधीश ने ED के वकील, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से पूछा, "संघीय ढांचे का क्या होता है? धारा 66(2) का क्या?" जवाब में राजू ने दावा किया कि राज्य में "बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार" है और ED केवल मनी लॉन्ड्रिंग के पहलू की जांच कर रही है। लेकिन कोर्ट ने ED की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह अपनी सीमा लांघ रही है।

    ED की कार्रवाई पर पहले भी सवाल

    यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने ED को इस मामले में फटकार लगाई। मई में भी कोर्ट ने ED से कड़े सवाल किए थे और जांच पर अस्थायी रोक लगाने का आदेश दिया था। उस समय कोर्ट ने कहा था, "आप व्यक्तियों के खिलाफ मामले दर्ज कर सकते हैं, लेकिन निगमों के खिलाफ? ED अपनी सारी हदें पार कर रही है!" डीएमके ने इस आदेश का स्वागत करते हुए कहा था कि यह बीजेपी की "राज्य सरकार को बदनाम करने की कोशिश" को झटका है।

    ED ने मार्च में छापेमारी के दौरान कॉरपोरेट पोस्टिंग, ट्रांसपोर्ट और बार लाइसेंस टेंडर में अनियमितताओं और कुछ डिस्टिलरीज को फायदा पहुंचाने के सबूत मिलने का दावा किया था। उसने यह भी कहा कि TASMAC आउटलेट्स में प्रति बोतल 10 से 30 रुपये का अतिरिक्त शुल्क लगाया गया, जिसमें TASMAC अधिकारियों की "मिलीभगत" थी।

    'राजनीतिक बदले की कार्रवाई' का आरोप

    तमिलनाडु के आबकारी मंत्री एस मुथुसामी ने ED पर राजनीतिक बदले की कार्रवाई का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि ED ने कोई ठोस सबूत नहीं पेश किया और यह कार्रवाई केवल डीएमके सरकार को निशाना बनाने के लिए की जा रही है। डीएमके ने दावा किया कि बीजेपी, उनकी लगातार चुनावी हार को पचा नहीं पा रही, इसलिए ED का दुरुपयोग कर रही है।

    TASMAC ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसने ED को कार्रवाई की अनुमति दी थी। याचिका में कहा गया कि TASMAC किसी भी मामले में आरोपी नहीं है, बल्कि कई मामलों में शिकायतकर्ता है। ऐसे में ED की कार्रवाई गैरकानूनी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ED को नोटिस जारी किया है और अगली सुनवाई का इंतजार है।

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