योगी सरकार को झटका... हाईकोर्ट के पूर्व जज देखेंगे बांके बिहारी मंदिर मामला, SC ने लगाई अध्यादेश पर अंतरिम रोक
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि वह बांके बिहारी मंदिर का अंतरिम प्रबंधन और प्रशासन देखने के लिए हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करेगा। इसमें प्रशासन और स्थानीय प्राधिकरण के अधिकारियों के अलावा मंदिर के सेवायत और गोस्वामी भी शामिल होंगे। ये कमेटी न सिर्फ मंदिर का प्रबंधन देखेगी बल्कि आसपास के विकास का काम भी देखेगी।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि वह बांके बिहारी मंदिर का अंतरिम प्रबंधन और प्रशासन देखने के लिए हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करेगा।
इसमें प्रशासन और स्थानीय प्राधिकरण के अधिकारियों के अलावा मंदिर के सेवायत और गोस्वामी भी शामिल होंगे। ये कमेटी न सिर्फ मंदिर का प्रबंधन देखेगी, बल्कि आसपास के विकास का काम भी देखेगी।
मंदिर के विकास के काम को देखेगी कमेटी
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि वह उत्तर प्रदेश सरकार के अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के मामले को इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजेगा। जब तक हाई कोर्ट मामले का फैसला नहीं कर लेता, तब तक अध्यादेश के तहत समिति के संचालन को स्थगित रखा जाएगा।
सेवानिवृत जज की अध्यक्षता में गठित करेगा कमेटी
सर्वोच्च अदालत ने अपने 15 मई के आदेश को भी वापस लेने के संकेत दिए जिसमें बांके बिहारी मंदिर कॉरीडोर के निर्माण में मंदिर का पैसा इस्तेमाल करने की उत्तर प्रदेश सरकार को इजाजत दी गई थी।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट जिस कमेटी का गठन करेगा, वह आसपास के विकास के लिए मंदिर का पैसा इस्तेमाल करने के बारे में निर्णय ले सकती है या खर्च कर सकती है।
जस्टिस सूर्यकांत और जोयमाल्या बाग्ची की पीठ ने शुक्रवार को इस तरह का आदेश पारित करने का संकेत देते हुए पक्षकारों से कहा कि आदेश संभवत: सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर शनिवार को अपलोड हो सकता है।
मंदिर और उसके आसपास के विकास कार्यों के लिए तत्काल राहत की आवश्यकता
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि जो अंतरिम समिति गठित की जाएगी, उसे कोर्ट अधिकार प्रदान करेगा ताकि समिति विभिन्न पहलुओं पर विचार कर सके।
कोर्ट ने कहा कि अगर मंदिर और उसके आसपास के विकास कार्यों के लिए तत्काल राहत की आवश्यकता होगी तो उसके लिए समिति को अधिकृत किया जाएगा। पक्षकार समिति के समक्ष अपनी बात रख सकते हैं।
शीर्ष अदालत मथुरा में ठाकुर श्री बांके बिहारी जी महाराज मंदिर की प्रबंधन समिति की ओर से अधिवक्ता तन्वी दुबे के माध्यम से दायर याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उस अध्यादेश को चुनौती दी गई है, जिसमें मंदिर के प्रशासन का नियंत्रण राज्य को सौंपा गया है।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने मंदिर का प्रबंधन अपने हाथ में लेने के लिए श्री बांके बिहारी मंदिर न्यास अध्यादेश, 2025 जारी करने में उत्तर प्रदेश सरकार की अत्यधिक जल्दबाजी पर सवाल उठाया था। उत्तर प्रदेश अध्यादेश, 2025 में मंदिर का प्रशासन एक वैधानिक 'श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास' को प्रदान करने की बात कही गई है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अध्यादेश के विरुद्ध कुछ आलोचनात्मक टिप्पणियां की
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल केएम नटराज ने बताया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल में आदेश पारित किया है और अध्यादेश के विरुद्ध कुछ आलोचनात्मक टिप्पणियां की हैं, जिन पर रोक लगाई जानी चाहिए।
इसके बाद शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट की एकल पीठ के 21 जुलाई और छह अगस्त के आदेशों को रद कर दिया और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से प्रभावी निर्णय के लिए एक खंडपीठ के समक्ष कानून को चुनौती देने वाले मामले को सूचीबद्ध करने को कहा।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था राज्य एक पाप कर रहा है
छह अगस्त को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अध्यादेश लाने के कदम की आलोचना की थी और कहा था कि राज्य एक पाप कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी पर कहा कि हाई कोर्ट किस तरह की असंयमित भाषा का प्रयोग कर रहा है? यह सब क्या है? क्या हाई कोर्ट को यह सूचित नहीं किया गया था कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विचार कर रहा है?''
वर्तमान मामले में एकल न्यायाधीश ने आदेश पारित कर दिया
जस्टिस कांत ने आगे कहा कि किसी भी कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं हमेशा खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध होती हैं, लेकिन वर्तमान मामले में एकल न्यायाधीश ने आदेश पारित कर दिया।
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