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    वर्दी पहनते ही पुलिस को धार्मिक पूर्वाग्रहों को त्याग देना देना चाहिए, अकोला दंगा मामले पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

    Updated: Thu, 11 Sep 2025 10:50 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पुलिस अधिकारियों को वर्दी पहनते समय अपने धार्मिक पूर्वाग्रहों को त्याग देना चाहिए। कोर्ट ने महाराष्ट्र के अकोला में 2023 के सांप्रदायिक दंगों में हुई हत्या की जांच के लिए एसआइटी का गठन किया है। अदालत ने प्राथमिकी दर्ज न करने के लिए महाराष्ट्र पुलिस की आलोचना की और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए।

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    अकोला दंगा मामले पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जब पुलिस अधिकारी वर्दी पहनते हैं तो उन्हें अपने व्यक्तिगत और धार्मिक पूर्वाग्रहों को त्याग देना चाहिए। कोर्ट ने महाराष्ट्र के अकोला में 2023 के सांप्रदायिक दंगों में हुई कथित हत्या की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआइटी) का गठन किया है।

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    जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज न करने और कर्तव्य में लापरवाही बरतने के लिए महाराष्ट्र पुलिस की कड़ी आलोचना की। पीठ ने राज्य के गृह विभाग के सचिव को निर्देश दिया कि वे हिंदू और मुस्लिम समुदायों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की एक एसआइटी गठित करें जो प्राथमिकी दर्ज करके जांच करे।

    वर्दी पहनते ही पुलिस को धार्मिक पूर्वाग्रहों को त्याग देना देना चाहिए- कोर्ट

    पीठ ने कहा, ''यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि जब पुलिस बल के सदस्य अपनी वर्दी पहनते हैं, तो उन्हें अपने व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों और प्रवृत्तियों को त्यागना पड़ता है, चाहे वे धार्मिक, नस्लीय, जातिवादी या अन्य हों। उन्हें अपने पद और वर्दी से जुड़े कर्तव्य के प्रति पूर्ण निष्ठा के साथ ईमानदार रहना चाहिए। दुर्भाग्य से, इस मामले में ऐसा नहीं हुआ।''

    मई, 2023 में अकोला में हुआ सांप्रदायिक दंगा

    मई, 2023 में अकोला के पुराने शहर इलाके में सांप्रदायिक दंगा हुआ था। इस घटना में विलास महादेवराव गायकवाड़ नामक व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी और इस मामले में याचिकाकर्ता मोहम्मद अफजल मोहम्मद शरीफ सहित आठ लोग घायल हो गए थे। शरीफ के अनुसार, चार लोगों ने गायकवाड़ पर तलवार, लोहे के पाइप और अन्य वस्तुओं से हमला किया। याचिकाकर्ता ने कहा कि चारों हमलावरों ने उनके वाहन को भी क्षतिग्रस्त कर दिया और अपने हथियारों से उनके सिर और गर्दन पर वार किया। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया और पुलिस ने उनका बयान दर्ज किया, लेकिन कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई।

    FIR न दर्ज होने पर किया कोर्ट का रुख

    शरीफ ने अपने पिता के माध्यम से पुलिस अधिकारियों द्वारा प्राथमिकी दर्ज न करने के खिलाफ बांबे हाईकोर्ट का रुख किया। मगर, हाईकोर्ट ने शरीफ की 'ईमानदारी पर संदेह' करते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी। दूसरी ओर, महाराष्ट्र पुलिस ने दलील दी कि जांच के दौरान शरीफ के प्रत्यक्षदर्शी होने के दावे की कभी पुष्टि नहीं हुई। यह दावा किया गया कि अस्पताल में उनके भर्ती होने की सूचना मिली थी। लेकिन, जब एक अधिकारी वहां गया तो याचिकाकर्ता बोलने की स्थिति में नहीं था।

    दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश

    पुलिस अधिकारियों पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सचिव को निर्देश दिया कि वे अपने कर्तव्यों का पालन न करने के लिए सभी दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करें। पीठ ने कहा, ''पुलिस विभाग के सभी अधिकारियों को यह निर्देश देने और संवेदनशील बनाने के लिए भी कदम उठाए जाएंगे कि कानून उनसे अपने कर्तव्यों के निर्वहन में क्या अपेक्षा करता है। इस कोर्ट के निर्देशानुसार गठित होने वाली एसआइटी की जांच रिपोर्ट आज से तीन महीने के भीतर इस कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।''

    (समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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