बेटे के लिए इच्छा-मृत्यु की मांग करने सुप्रीम कोर्ट पहुंचे माता-पिता, टॉप कोर्ट ने दिया ये निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा के अस्पताल को 100% दिव्यांग युवक के लिए इच्छा-मृत्यु की संभावनाओं की जांच करने का निर्देश दिया है, क्योंकि वह एक दशक से अधिक समय से वेजिटेटिव स्थिति में है। अदालत ने अस्पताल से दो सप्ताह के भीतर रिपोर्ट पेश करने को कहा है। यह दूसरी बार है जब माता-पिता ने बेटे के लिए इच्छा-मृत्यु की मांग की है।
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सुप्रीम कोर्ट का इच्छा-मृत्यु पर निर्देश।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नोएडा जिला अस्पताल को निर्देश दिया कि वह एक प्राथमिक बोर्ड का गठन करे ताकि 100 प्रतिशत दिव्यांगता वाले 31 वर्षीय युवक के लिए इच्छा-मृत्यु (पैसिव यूथानेशिया) की संभावनाओं की जांच की जा सके।
अदालत ने कहा कि मरीज एक दशक से अधिक समय से वेजिटेटिव स्थिति में है जिसके स्वास्थ्य की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। पैसिव यूथानेशिया का अर्थ है जानबूझकर किसी मरीज के जीवन समर्थन या उपचार को रोककर मरने देना जो जीवन बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है।
सुप्रीम कोर्ट का इच्छा-मृत्यु पर निर्देश
जस्टिस जेबी पार्डीवाला और केवी विश्वनाथन की पीठ ने नोएडा के सेक्टर-39 स्थित जिला अस्पताल से कहा कि वह 31 वर्षीय हरीश राणा के पिता द्वारा दायर आवेदन पर दो सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करे, जिसमें पैसिव यूथानेशिया की मांग की गई है।
पीठ ने निर्देश दिया, 'हम चाहते हैं कि प्राथमिक बोर्ड हमें यह रिपोर्ट दे कि जीवन-रक्षक उपचार को रोका जा सकता है। प्राथमिक बोर्ड अपनी रिपोर्ट जल्द से जल्द प्रस्तुत करे, और जब यह हमारे सामने होगी, तो हम आगे के आदेश पारित करेंगे। यह प्रक्रिया दो सप्ताह के भीतर पूरी की जाए।'
नोएडा अस्पताल को जांच का आदेश
यह दूसरी बार है जब मरीज के माता-पिता ने अपने बेटे के लिए इच्छा-मृत्यु की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। पिछले वर्ष 8 नवंबर को शीर्ष अदालत ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट का संज्ञान लिया था, जिसमें सुझाव दिया गया था कि मरीज को उत्तर प्रदेश सरकार की सहायता से घर पर देखभाल की जाएगी और डाक्टरों और फिजियोथेरेपिस्ट की नियमित जांच होगी।
अपर न्यायालय ने कहा था कि यदि घर पर देखभाल संभव नहीं है, तो लड़के को उचित चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित करने के लिए नोएडा के जिला अस्पताल में स्थानांतरित किया जाएगा।मरीज के पिता की ओर से पेश हुईं वकील रश्मि नंदकुमार ने कहा कि सभी प्रयास किए गए हैं और वे राज्य सरकार द्वारा प्रदान की गई सहायता के लिए आभारी हैं, लेकिन कुछ भी काम नहीं कर रहा है। इस अदालत के 2018 के फैसले के अनुसार उनके मामले को प्राथमिक बोर्ड के पास भेजा जाए।
दिव्यांग युवक की दयनीय स्थिति
जस्टिस पार्डीवाला ने रिपोर्टों की समीक्षा करते हुए कहा, 'बस लड़के की स्थिति पर नजर डालें। यह दयनीय है।' पीठ ने रजिस्ट्रार को आदेश की प्रति नोएडा के अस्पताल और अतिरिक्त सालिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के कार्यालय को भेजने का निर्देश दिया।
पिछले वर्ष 20 अगस्त को इस मामले को बहुत कठिन बताते हुए शीर्ष अदालत ने राणा के माता-पिता की याचिका पर केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी थी, जो पंजाब विश्वविद्यालय के छात्र थे और 2013 में अपने किराए के कमरे की चौथी मंजिल से गिरने के बाद सिर की चोटों का सामना कर चुके थे। वह पूरी तरह से बिस्तर पर थे और 2013 से 12 वर्षों तक लाइफ सर्पोट सिस्टम पर थे।

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