'कमजोर वर्ग को उत्पीड़न से बचाने के लिए है SC/ST कानून', SC ने की बड़ी टिप्पणी; बॉम्बे HC के आदेश को किया खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि इस अधिनियम का उद्देश्य कमजोर वर्ग की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है। अदालत ने जातिगत अत्याचार के आरोपों का सामना कर रहे एक आरोपित को अग्रिम जमानत देने के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक आरोपित को गिरफ्तारी से पहले जमानत देते हुए कहा कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम को कमजोर वर्ग की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से बनाया गया है।
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन तथा न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने जातिगत अत्याचार के आरोपों का सामना कर रहे एक आरोपित को अग्रिम जमानत देने के बांबे हाई कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए उपर्युक्त टिप्पणी की।
कौन-से कानून का दिया हवाला?
पीठ ने एससी-एसटी कानून की धारा 18 का हवाला दिया और कहा कि यह स्पष्ट रूप से आइपीसी की धारा 438 (अग्रिम जमानत देने की) को लागू करने से रोकता है। इस कानून में ये विचार अंतर्निहित है कि कमजोर वर्ग को उनके सामाजिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है और उन्हें अमानवीयता, अपमान और उत्पीड़न से बचाया जाना चाहिए।
पीठ ने क्या कहा?
पीठ ने कहा कि ये एक सख्त प्रविधान है और समाज के अन्य वर्गों के समान ही एससी-एसटी समुदाय के लोगों को भी बराबरी का दर्जा दिलाने के संवैधानिक विचार को प्रदर्शित करता है।
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