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    सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को चलाने वाले अधिकारियों में हो सुरक्षित खेलने की प्रवृत्ति, सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

    Updated: Tue, 04 Nov 2025 11:30 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के अधिकारियों को डर के माहौल में काम नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने एंग्लो अमेरिकन मेटलर्जिकल कोल के पक्ष में 650 करोड़ रुपये के फैसले को बरकरार रखा और एमएमटीसी की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए, ताकि नीतिगत पक्षाघात से बचा जा सके।

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    सार्वजनिक उपक्रमों में डर का माहौल

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी क्षेत्र की कंपनियों को चलाने वाले उच्च अधिकारी इस डर से जकड़े रहेंगे कि उनके फैसलों को बाद में नफरत भरी निगाहों से देखा जाएगा और उन्हें और उनकी कंपनियों को मुकदमेबाजी में उलझाया जाएगा, तो सुरक्षित खेलने की प्रवृत्ति पैदा होगी, जिससे नीतिगत पक्षाघात हो सकता है।

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    ये टिप्पणियां शीर्ष न्यायालय द्वारा सोमवार को दिए गए एक फैसले में की गईं, जिसमें एंग्लो अमेरिकन मेटलर्जिकल कोल प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में 78.72 मिलियन अमेरिकी डालर (लगभग 650 करोड़ रुपये) के मध्यस्थता पुरस्कार के नियम को बरकरार रखा गया।

    सरकारी कंपनी एमएमटीसी लिमिटेड की चुनौती को खारिज कर दिया गया और कहा गया कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी अपने वरिष्ठ प्रबंधन द्वारा भरोसा तोड़ने का प्रथम दृष्टया मामला भी स्थापित करने में विफल रही।

    सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

    जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने एमएमटीसी की उस अपील पर फैसला सुनाया, जो दिल्ली हाई कोर्ट के 2025 के फैसले के खिलाफ थी। हाई कोर्ट ने सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 47 के तहत उसकी आपत्तियों को खारिज कर दिया गया था और एंग्लो अमेरिकन कोल प्राइवेट लिमिटेड को जमा की गई राशि ब्याज सहित निकालने की अनुमति दी गई थी।

    सार्वजनिक उपक्रमों में डर का माहौल

    जस्टिस विश्वनाथन ने पीठ के लिए 82 पृष्ठों का फैसला लिखते हुए हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। उन्होंने एमएमटीसी की याचिका खारिज करते हुए कहा कि हाई कोर्ट के फैसले के प्रवर्तन में हस्तक्षेप करने का कोई ठोस आधार नहीं है। फैसले में जस्टिस विश्वनाथन ने लिखा कि चाहे सरकार हो, सार्वजनिक क्षेत्र के निगम हों या निजी क्षेत्र, किसी भी संस्था की प्रेरक शक्ति वे लोग होते हैं जो उनका प्रशासन करते हैं।

    उनके दैनिक कामकाज के लिए एक निश्चित गति होना अपरिहार्य है। फैसले में कहा गया कि अगर उन्हें इस डर से जकड़ा जाए कि उनके दैनिक प्रशासन में लिए गए फैसलों को वर्षों बाद पीछे मुड़कर देखने पर, नकारात्मक नजर से देखा जा सकता है, तो यह उन पर एक भयावह प्रभाव डालेगा।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)