फांसी या लीथल इंजेक्शन? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा- "क्यों नहीं बदलते वक्त के साथ"; SC में बहस तेज
सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पाए कैदियों को 'लीथल इंजेक्शन' का विकल्प देने के मामले में केंद्र सरकार के रुख पर सख्त टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने फांसी की जगह इंजेक्शन को मानवीय विकल्प बताया। अदालत ने सरकार से पूछा कि वह समय के साथ क्यों नहीं बदलना चाहती, जबकि फांसी एक पुरानी प्रक्रिया है। मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी। याचिका में सम्मानजनक मृत्यु को जीवन के अधिकार का हिस्सा बताया गया है।
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अदालत ने सुनवाई 11 नवंबर तक टाल दी (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के उस रुख पर सख्त टिप्पणी की है, जिसमें उसने मौत की सजा पाए कैदियों को 'लीथल इंजेक्शन' का विकल्प देने का विरोध किया था। यह मामला एक जनहित याचिका का है, जिसमें पारंपरिक फांसी की जगह लीथल इंजेक्शन या अन्य विकल्प देने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ऋषि मल्होत्रा ने कहा, "कम से कम कैदी को यह विकल्प दिया जाए कि वह फांसी से या इंजेक्शन से मरना चाहता है। इंजेक्शन से मौत जल्दी और मानवीय तरीके से होती है, जबकि फांसी क्रूर और लंबी प्रक्रिया है।" वकील ने यह भी बताया कि सेना में यह विकल्प पहले से मौजूद है।
केंद्र सरकार ने क्या कहा था?
केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि ऐसा विकल्प देना व्यावहारिक नहीं है। इस पर न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं है।
पीठ ने कहा, "समस्या यही है कि सरकार पुराने तरीकों से बाहर नहीं निकलना चाहती। फांसी बहुत पुरानी प्रक्रिया है, समय के साथ चीजें बदल चुकी हैं।" सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सोनिया माथुर ने कहा कि इस तरह का विकल्प देना नीतिगत निर्णय विषय है। अदालत ने फिलहाल सुनवाई 11 नवंबर तक टाल दी।
क्यों अन्य विकल्प की है जरूरत?
याचिकाकर्ता ने कहा कि फांसी के जरिए मौत आने में 40 मिनट तक लग सकते हैं, जिससे कैदी को अत्यधिक दर्द और पीड़ा होती है। इसके बजाय इंजेक्शन, गोली मारना, इलेक्ट्रिक चेयर या गैस चैम्बर जैसे तरीके अधिक तेज और कम पीड़ादायक हैं।
अमेरिका में होता है लीथल इंजेक्शन का इस्तेमाल
याचिका में कहा गया कि अमेरिका के 50 में से 49 राज्यों में लीथल इंजेक्शन का इस्तेमाल होता है। साथ ही, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 354(5) को भेदभावपूर्ण और अनुच्छेद 21 के खिलाफ बताया गया। याचिका में यह भी कहा गया कि सम्मानजनक तरीके से मरने का अधिकार भी जीवन के अधिकार का हिस्सा होना चाहिए।
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