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    Hijab Row: सुप्रीम कोर्ट की महत्‍वपूर्ण टिप्‍पणी- हिजाब से नहीं की जा सकती सिखों के पगड़ी और कृपाण धारण करने की तुलना

    By Krishna Bihari SinghEdited By:
    Updated: Thu, 08 Sep 2022 06:51 PM (IST)

    Supreme Court on Hijab Ban सर्वोच्‍च अदालत ने कहा कि सिखों के कृपाण और पगड़ी पहनने की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती है क्योंकि शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय पीठ के मुताबिक सिखों को पगड़ी और कृपाण धारण की अनुमति है।

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    सुप्रीम कोर्ट में हिजाब विवाद को लेकर गुरुवार को भी सुनवाई जारी रही।

    नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट में हिजाब विवाद को लेकर गुरुवार को भी सुनवाई जारी रही। सर्वोच्‍च अदालत ने कहा कि सिखों के कृपाण और पगड़ी पहनने की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती है क्योंकि शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि सिखों को पगड़ी और कृपाण पहनने की अनुमति है। मालूम हो कि न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखने वाले कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

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    गुरुवार को एक याचिकाकर्ता छात्रा की ओर से पेश वकील निजामुद्दीन पाशा ने कृपाण और पगड़ी धारण करने को हिजाब के साथ तुलना करने की कोशिश की। निजामुद्दीन पाशा (Advocate Nizamuddin Pasha) ने कहा कि हिजाब मुस्लिम लड़कियों की धार्मिक प्रथा का हिस्सा है। पाशा ने सवाल किया कि क्या लड़कियों को हिजाब पहनकर स्कूल आने पर रोक लगाई जा सकती है। उन्होंने तर्क दिया कि सिख छात्र भी पगड़ी पहनते हैं। पाशा ने कहा कि देश में सांस्कृतिक प्रथाओं की रक्षा की जानी चाहिए।

    पाशा ने फ्रांस जैसे मुल्‍कों का उदाहरण देने की कोशिश की। पाशा की इन दलीलों पर न्यायमूर्ति गुप्ता (Justices Hemant Gupta) ने कहा कि हिजाब पहनने की तुलना सिखों के पगड़ी और कृपाण धारण करने के साथ नहीं की जा सकती है। स‍िखों को कृपाण ले जाने की मान्यता संविधान द्वारा प्राप्त है इसलिए दोनों प्रथाओं की तुलना न करें। न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि पगड़ी पर वैधानिक अपेक्षाएं हैं और ये सभी प्रथाएं देश की संस्कृति में अच्छी तरह से स्थापित हैं।

    समाचार एजेंसी एएनआइ की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हम फ्रांस या ऑस्ट्रिया के मुताबिक नहीं बनना चाहते। हम भारतीय हैं और भारत में रहना चाहते हैं। पाशा ने अपनी दलीलों में कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं की सुरक्षा करता है। कर्नाटक हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष कि हिजाब एक सांस्कृतिक प्रथा है, धारणा पर आधारित है। उन्होंने (Advocate Nizamuddin Pasha) अपनी दलीलों का समर्थन करने के लिए विभिन्न धार्मिक पुस्तकों का भी हवाला दिया।

    पाशा ने यह भी दलील दी कि यह फुटनोट की गलत व्याख्या थी कि हाईकोर्ट ने माना है कि हिजाब एक संस्‍तुति है अनिवार्यता नहीं है। वहीं एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि हर धार्मिक प्रथा जरूरी नहीं है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि राज्य इस पर रोक लगा दे। उन्‍होंने अदालत को बताया कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है या नहीं, इस पर कर्नाटक, केरल और मद्रास उच्च न्यायालय के फैसलों में अलग-अलग विचार रखे गए हैं। कामत ने कहा कि मद्रास और केरल की अदालतों ने हिजाब को एक आवश्यक धार्मिक प्रथा के रूप में माना है, लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख अलग है।

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