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    SC On Caste Census: जाति जनगणना पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्या कह दिया, जो वापस लेनी पड़ी याचिका?

    By Agency Edited By: Sachin Pandey
    Updated: Tue, 03 Sep 2024 12:36 AM (IST)

    Supreme Court on Caste Census सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी जिसमें सामाजिक-आर्थिक आधार पर जाति जनगणना कराने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने कहा था कि जाति जनगणना वंचित समूहों की पहचान करने समान संसाधन वितरण सुनिश्चित करने और लक्षित नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी करने में मदद करेगी। हालांकि कोर्ट की टिप्पणी के बाद याचिका वापस ले ली गई।

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    कोर्ट ने कहा कि यह नीतिगत मामला है। (File Image)

    पीटीआई, नई दिल्ली। जातिगत गणना मामले में दखल देने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मामला सरकार के दायरे में आता है और नीतिगत मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक-आर्थिक आधार पर जाति जनगणना कराने की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से मना कर दिया।

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    हालांकि, अदालत की अनुमति के बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। जस्टिस ऋषिकेश राय और एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने सोमवार को सुनवाई कर याचिकाकर्ता पी. प्रसाद नायडू को अपनी याचिका वापस लेने का अवसर दिया। इस याचिका में केंद्र सरकार को जातीय जनगणना कराने का आदेश देने की मांग की गई थी।

    कोर्ट ने पूछा- इस पर क्या किया जा सकता है?

    खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार करते हुए याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर जंडियाल और अधिवक्ता श्रवण कुमार करनम से कहा कि इस बारे में क्या किया जा सकता है? यह मुद्दा सुशासन और सरकार का है। यह नीतिगत मामला है। अधिवक्ता जंडियाल ने कहा कि कई देश जातीय जनगणना करा चुके हैं, लेकिन भारत में यह अभी तक नहीं हो सका है।

    उन्होंने कहा, '1992 के इंद्रा साहनी फैसले में कहा गया है कि यह जनगणना समय-समय पर की जानी चाहिए।' पीठ ने कहा कि वह याचिका खारिज कर रही है, क्योंकि अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। अदालत के मूड को भांपते हुए वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया।

    याचिका में की गई थी मांग

    नायडू ने अपनी याचिका में कहा था कि केंद्र और उसकी एजेंसियां 2021 की जनगणना को बार-बार स्थगित कर रही हैं। याचिका में कहा गया कि सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना वंचित समूहों की पहचान करने, समान संसाधन वितरण सुनिश्चित करने और लक्षित नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी करने में मदद करेगी। 1931 का अंतिम जाति-वार डाटा पुराना हो चुका है।

    याचिकाकर्ता का कहना था कि जनगणना और सामाजिक-आर्थिक एवं जाति जनगणना से सटीक डाटा केंद्र सरकार के लिए सामाजिक न्याय और संवैधानिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है। स्वतंत्रता के बाद पहली बार 2011 में आयोजित एसईसीसी का उद्देश्य जाति संबंधी जानकारी सहित सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर व्यापक डाटा एकत्र करना था।