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    जमानत याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख, दो महीने में निपटारे का आदेश

    Updated: Fri, 12 Sep 2025 11:27 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नियमित और अग्रिम जमानत याचिकाओं के निपटारे में देरी न्याय से इनकार करने के समान है। अदालत ने उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया कि वे जमानत आवेदनों पर दो महीने के भीतर फैसला करें। जस्टिस जेबी पार्डीवाला और आर महादेवन की पीठ ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े आवेदन वर्षों तक लंबित नहीं रखे जा सकते।

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    जमानत याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि नियमित और अग्रिम जमानत याचिकाओं के निपटारे में लंबे समय की देरी न्याय से इन्कार के समान है। साथ ही इसने हाई कोर्टों को निर्देश दिया कि याचिका दायर होने की तारीख से दो महीने के भीतर ऐसे आवेदनों पर फैसला करें।

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    जस्टिस जेबी पार्डीवाला और आर महादेवन की पीठ ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित आवेदनों को वर्षों तक लंबित नहीं रखा जा सकता, जबकि आवेदक पर अनिश्चितता के बादल छाए रहते हैं।

    अदालत ने क्या कहा?

    शीर्ष अदालत ने कहा कि नियमित और अग्रिम जमानत आवेदनों को अनिश्चितकाल तक लंबित रखे बिना गुण-दोष के आधार पर शीघ्रता से निपटाया जाना चाहिए। याचिकाओं के निपटारे में देरी न केवल आपराधिक प्रक्रिया संहिता के उद्देश्य को विफल करती है, बल्कि अनुच्छेद 14 और 21 में निहित संवैधानिक मूल्यों के विपरीत यह न्याय से वंचित करने के समान है।

    पीठ ने कहा, हाई कोर्ट यह सुनिश्चित करें कि उनके समक्ष या उनके अधिकार क्षेत्र के अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित जमानत और अग्रिम जमानत के आवेदनों को शीघ्रता से निपटाया जाए। आम तौर पर याचिका दाखिल होने की तिथि से दो महीने की अवधि के भीतर निपटारा जो जाना चाहिए, सिवाय उन मामलों के जहां देरी स्वयं पक्षकारों के कारण हो।

    हाई कोर्ट जिला न्यायालयों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों को प्राथमिकता देने और अनिश्चितकालीन स्थगन से बचने के लिए आवश्यक निर्देश जारी करें। जांच एजेंसियों से भी अपेक्षा की जाती है कि वे लंबे समय से लंबित मामलों की जांच शीघ्रता से पूरी करें, ताकि अनावश्यक देरी के कारण न तो शिकायतकर्ता और न ही आरोपित को कोई नुकसान हो।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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