'गिरफ्तारी को लेकर संवैधानिक अधिकार...', सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गिरफ्तारी के आधार मजिस्ट्रेट के सामने पेशी से दो घंटे पहले देना जरूरी है, ताकि गिरफ्तार व्यक्ति अपने संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल कर सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर गिरफ्तारी के आधार लिखित में नहीं दिए जाते, तो गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी और व्यक्ति को रिहा होने का अधिकार होगा। ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट को एक सप्ताह के भीतर फैसला लेना होगा।

गिरफ्तारी से पहले आधार बताना जरूरी
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी से दो घंटे पहले गिरफ्तारी का आधार दिए जाने की समय सीमा इस व्यावहारिकता पर आधारित है कि गिरफ्तार व्यक्ति को संविधान के तहत प्राप्त अधिकारों की प्रभावी रूप से रक्षा की जा सके।
यह अवधि सुनिश्चित करेगी कि अभियुक्त के वकील के पास बचाव के समय गिरफ्तारी के आधार की जांच करने और रिमांड का विरोध करने के लिए प्रासंगिक सामग्री एकत्र करने का पर्याप्त समय हो। इससे कम समय ऐसी तैयारी के लिए अपर्याप्त होगा, जिसके परिणामस्वरूप संवैधानिक और वैधानिक आदेश का पालन नहीं हो सकता।
गिरफ्तारी से पहले आधार बताना जरूरी
इस तरह रिमांड के लिए पेशी से दो घंटे पहले की सीमा अनुच्छेद 22(1) के तहत गिरफ्तार व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा और आपराधिक जांच के बीच एक विवेकपूर्ण संतुलन बनाती है।
शीर्ष अदालत ने भविष्य के लिए कानूनी व्यवस्था तय करते हुए कहा है कि गिरफ्तारी से पहले या गिरफ्तारी के तुरंत बाद आधारों की लिखित जानकारी न देना गिरफ्तारी को अमान्य नहीं करेगा, बशर्ते कि उक्त आधारों की लिखित जानकारी तर्कसंगत समय के भीतर और किसी भी स्थिति में गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने से दो घंटे पहले दी जाए।
संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का उद्देश्य
कोर्ट ने फैसले में कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि यदि गिरफ्तारी के आधारों को लिखित रूप में देने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है, तो गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी और गिरफ्तार व्यक्ति को रिहा होने का अधिकार होगा। ऐसी रिहाई पर यदि आवश्यक हो, तो रिमांड या हिरासत के लिए आवेदन दिया जा सकता है, जिसमें इसके कारणों और आवश्यकता के साथ गिरफ्तारी के आधारों को लिखित रूप से दिया जाएगा।
यह भी स्पष्टीकरण दिया जाएगा कि पहले प्रक्रिया का पालन क्यों नहीं किया गया। ऐसा आवेदन मिलने पर मजिस्ट्रेट नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए जल्दी से एक सप्ताह के भीतर उस पर निर्णय लेंगे।

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