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    भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से हटाने को याचिका, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को जारी किया नोटिस

    By Krishna Bihari SinghEdited By:
    Updated: Wed, 10 Feb 2021 10:48 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर केंद्र और कुछ राज्यों से जवाब मांगा है जिसमें भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखने वाले प्रविधानों को निरस्त किए जाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। जानें इस याचिका में क्‍या दी गई हैं दलीलें...

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    सुप्रीम कोर्ट से भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में से निरस्त किए जाने की गुहार लगाई गई है।

    नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर केंद्र और कुछ राज्यों से जवाब मांगा है जिसमें भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखने वाले प्रविधानों को निरस्त किए जाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। याचिका में कहा गया कि इन प्रविधानों के चलते लोगों के पास भीख मांगकर अपराध करने या भूखा मरने का 'अनुचित विकल्प' ही बचेगा। जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आरएस रेड्डी की पीठ ने नोटिस जारी करते हुए केंद्र के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा और बिहार से याचिका पर जवाब मांगा है।

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    संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन

    याचिका में दावा किया गया है कि भीख मांगने को अपराध बनाने संबंधी धाराएं संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हैं। पीठ ने मेरठ निवासी विशाल पाठक द्वारा दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि जारी किए गए नोटिसों पर छह सप्ताह में जवाब देने को कहा गया है। अधिवक्ता एचके चतुर्वेदी के माध्यम से दाखिल याचिका में दिल्ली हाई कोर्ट के अगस्त 2018 के उस फैसले का जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया था राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगना अब अपराध नहीं होगा।

    भीख मांगने को मान गया अपराध

    इसमें कहा गया है कि बंबई भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम, 1959 के प्रविधान, जिनमें भीख मांगने को एक अपराध के रूप में माना गया है, संवैधानिक रूप से नहीं टिक सकते है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में 2011 की जनगणना का उल्लेख करते हुए कहा गया कि भारत में भिखारियों की कुल संख्या 4,13,670 है। पिछली जनगणना के बाद से यह संख्या बढ़ी है।