सभी तरह के अपराधों में लिखकर बताना होगा गिरफ्तारी का आधार, सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैलसा
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अब सभी तरह के अपराधों में गिरफ्तारी का आधार लिखित में बताना अनिवार्य होगा। यह जानकारी आरोपी को उसकी भाषा में देनी होगी, और मजिस्ट्रेट के सामने पेशी से पहले देनी होगी। ऐसा न करने पर गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी, और आरोपी को रिहा किया जा सकता है। यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत अधिकारों को सुनिश्चित करता है।

गिरफ्तारी का आधार लिखित में देना होगा: सुप्रीम कोर्ट
माला दीक्षित, जागरण नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकारों पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने आरोपित की गिरफ्तारी पर लिखित में आधार बताने की अनिवार्यता को सभी अपराधों तक विस्तारित कर दिया है। अब सिर्फ पीएमएलए या यूएपीए जैसे विशेष कानून में ही नहीं, बल्कि सभी तरह के अपराधों में गिरफ्तारी पर पुलिस आरोपित को उसकी भाषा में लिखित रूप से गिरफ्तारी के आधार बताएगी।
हर गिरफ्तारी में इसका पालन करना अनिवार्य है। सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक और कानूनी प्रविधानों की व्याख्या करते हुए अपने फैसले में कहा है कि सभी अपराधों में गिरफ्तारी पर आरोपित को लिखित में गिरफ्तारी के आधार बताए जाएंगे।
गिरफ्तारी का आधार लिखित में देना होगा
यह आरोपित को समझ में आने वाली भाषा में होनी चाहिए।गिरफ्तारी पर या उसके बाद जल्द से जल्द लिखित में आधार बताए जाएंगे। लेकिन, अगर तत्काल ऐसा संभव नहीं है, तो अभियुक्त की मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी से दो घंटे पूर्व उसे गिरफ्तारी के लिखित आधार देने ही होंगे।
ऐसा नहीं होने पर गिरफ्तारी और उसके बाद दी गई रिमांड अवैध हो जाएगी और उस व्यक्ति को मुक्त होने का अधिकार होगा। गिरफ्तारी के संबंध में इस प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाना चाहिए।
यह फैसला प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस आगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने गुरुवार को महाराष्ट्र के एक सड़क दुर्घटना मामले में कानूनी व्यवस्था तय करते हुए सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 22(1) में अभियुक्त को गिरफ्तारी का आधार बताने की आवश्यकता महज औपचारिकता नहीं है।
सभी अपराधों पर लागू होगा नियम
यह अनिवार्य बाध्यकारी संवैधानिक सुरक्षा है, जिसे संविधान के भाग तीन, मौलिक अधिकारों के अंतर्गत शामिल किया गया है। कोर्ट ने 52 पेज के विस्तृत आदेश में गिरफ्तारी से व्यक्ति पर पड़ने वाले शारीरिक और मानसिक प्रभाव, प्रतिष्ठा की हानि आदि के अलावा कानूनी प्रविधानों की चर्चा की है।
कोर्ट ने फैसले में कहा है कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी का आधार बताने की संवैधानिक अनिवार्यता सभी कानूनों और सभी अपराधों पर लागू होगी। इनमें आइपीसी (अब बीएनएस) भी शामिल है। कोर्ट ने कहा है कि आरोपित को गिरफ्तारी के आधार लिखित में दिए जाएंगे और उसे समझ आने वाली भाषा में बताए जाएंगे।
अगर गिरफ्तार करने वाला अधिकारी गिरफ्तारी के समय या उसके तत्काल बाद आधार बताने में असमर्थ है, तो वह उस समय मौखिक तौर पर आधार बताएगा। इसके बाद आरोपित को तर्कसंगत समय के भीतर लिखित में गिरफ्तारी के आधार दिए जाएंगे। मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी से कम से कम दो घंटे पहले अभियुक्त को लिखित में गिरफ्तारी के आधार दिए जाएंगे, ताकि वह कोर्ट में अपना बचाव करने में सक्षम हो।
मजिस्ट्रेट के सामने पेशी से पहले जानकारी
कोर्ट ने कहा है कि वैसे सीआरपीसी की धारा 50 और बीएनएसएस 2023 की धारा 47 में गिरफ्तारी के आधार बताने की कोई तय समयसीमा या तरीका नहीं बताया गया है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने प्रबीर पुरकायास्थ के फैसले में कहा है कि सभी अपराधों में आरोपित को जल्दी से जल्दी गिरफ्तारी के आधार लिखित में दिए जाने चाहिए।
मौजूदा फैसले में कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब है कि आधार गिरफ्तारी के वक्त देने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन सभी कानूनों और अपराधों में यह तर्कसंगत समय के भीतर दिया जाना चाहिए। इस आदेश से गिरफ्तार व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 22 में मिला अधिकार प्रभावी होगाकोर्ट ने फैसले में कहा है कि वह इस बात से अवगत है कि सभी अपराधों के लिए गिरफ्तारी के आधारों की लिखित सूचना अनिवार्य करने वाली कोई बाध्यकारी आवश्यकता नहीं थी।
लेकिन उसका विचार है कि इस फैसले से गिरफ्तार व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत प्रदत्त संवैधानिक अधिकारों का प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन सुनिश्चित होगा। दायित्वों को लेकर इस तरह की स्पष्टता से आपराधिक न्याय प्रशासन में अनिश्चितता खतम होगी। इसलिए निष्पक्षता और न्यायिक अनुशासन का उद्देश्य यह मांग करता है कि अब से गिरफ्तारियों पर उपरोक्त प्रक्रिया तत्काल प्रभाव से लागू हो।

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