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    सुप्रीम कोर्ट का फैसला- एनजीटी के अधिकार सीमित, मनी लांड्रिंग मामलों में ईडी पर मुकदमा चलाने का अधिकार नहीं

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एनजीटी को मनी लांड्रिंग विरोधी कानून के तहत ईडी को मुकदमा चलाने का निर्देश देने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने हस्तशिल्प निर्माण व निर्यात कंपनी सीएल गुप्ता एक्सपोर्ट लिमिटेड के विरुद्ध ईडी जांच का एनजीटी का आदेश खारिज कर दिया। जस्टिस नागरत्ना ने जस्टिस विपुल मनुभाई पंचोली को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति देने की कालेजियम की सिफारिश पर असहमति जताई।

    By Digital Desk Edited By: Prince Gourh Updated: Tue, 26 Aug 2025 10:00 PM (IST)
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    सुप्रीम कोर्ट का फैसला एनजीटी के अधिकार सीमित (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कथित पर्यावरण उल्लंघनों के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को मनी लांड्रिंग विरोधी कानून के तहत ईडी को मुकदमा चलाने का निर्देश देने का अधिकार नहीं है।

    प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल एक्ट, 2010 के तहत एनजीटी के पास लोगों के विरुद्ध प्रिवेंशन आफ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत मुकदमा चलाने का निर्देश देने का अधिकार नहीं है।

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    पीठ ने क्या कहा?

    पीठ ने कहा, ''यह अधिकार पीएमएलए अदालत या संवैधानिक अदालतों के पास है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण और वनों के संरक्षण से संबंधित मामलों पर प्रभावी और शीघ्र सुनवाई के लिए गठित एनजीटी के पास इसका अधिकार नहीं है।''

    पीठ ने याचिकाकर्ता हस्तशिल्प निर्माण व निर्यात कंपनी 'सीएल गुप्ता एक्सपोर्ट लिमिटेड' के विरुद्ध ईडी जांच का एनजीटी का आदेश खारिज कर दिया। साथ ही स्पष्ट किया कि उसने कोई अपराध स्थापित होने या नहीं होने के बारे में कुछ नहीं कहा है क्योंकि यह फिलहाल उसकी जानकारी में नहीं है।

    SC ने क्या फैसला सुनाया?

    पीठ ने कहा कि उक्त किसी अपराध के लिए कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई थी, न ही पीएमएलए के तहत निर्धारित विभिन्न पर्यावरण संरक्षण कानूनों के तहत ऐसे अपराधों की शिकायत दर्ज की गई थी।

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में अवैध भूजल निकासी और गंगा की एक सहायक नदी में अपशिष्ट बहाने सहित कथित उल्लंघनों के लिए एनजीटी द्वारा याचिकाकर्ता कंपनी पर लगाए गए 50 करोड़ रुपये के पर्यावरण मुआवजे को भी रद कर दिया।

    पीठ ने कहा कि कंपनी के राजस्व के आधार पर जुर्माने की गणना करने के एनजीटी के तरीके में पर्यावरणीय क्षति के साथ कोई तार्किक संबंध नहीं था। साथ ही यह शीर्ष अदालत के पूर्व फैसलों में निर्धारित कानूनी सिद्धांतों के अनुसार भी नहीं था।

    NGT के निर्देश को रखा बरकरार

    शीर्ष अदालत ने कहा, ''एनजीटी द्वारा जुर्माना लगाने के लिए अपनाई गई पद्धति कानून के किसी भी सिद्धांत के अनुरूप नहीं थी। कानून किसी भी राज्य या उसकी एजेंसियों को पर्यावरणीय मामलों में भी अनुचित जुर्माना लगाने की अनुमति नहीं देता।'' हालांकि शीर्ष कोर्ट ने प्रदूषण-मुक्त अनुपालन व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण उपायों की निरंतर निगरानी और आडिट की अनुमति देने वाले एनजीटी के निर्देशों को बरकरार रखा।

    जस्टिस नागरत्ना ने कोलेजियम के फैसले पर जताई असहमति

    सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपुल मनुभाई पंचोली को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति देने की कालेजियम की सिफारिश पर कड़ी असहमति जताई थी। उन्होंने कहा कि यह नियुक्ति न्याय के लिए विपरीत प्रभाव डालने वाली होगी।

    उन्होंने जस्टिस पंचोली की वरिष्ठता पर भी सवाल उठाया। हाई कोर्ट के जजों की वरिष्ठता की रैंक में वे देशभर के सभी हाई कोर्ट के न्यायाधीशों में अभी 57वें स्थान पर हैं। जस्टिस नागरत्ना ने सुप्रीम कोर्ट में क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के मुद्दे को भी उठाया।

    कोलेजियम में कौन-कौन थे शामिल?

    कोलेजियम ने 25 अगस्त को बैठक की और केंद्र को न्यायमूर्ति पंचोली के नाम की सिफारिश की 4-1 के बहुमत से की थी। इस कोलेजियम में चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस जेके महेश्वरी के अलावा जस्टिस नागरत्ना शामिल रहीं।

    यदि न्यायमूर्ति पंचोली सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनते हैं तो वे अक्टूबर 2031 में न्यायमूर्ति जायमाल्या बागची के सेवानिवृत्त होने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में होंगे। सुप्रीम कोर्ट की एकमात्र महिला न्यायमूर्ति नागरत्ना ने अपनी असहमति में कई कारण प्रस्तुत किए।

    उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति पंचोली की पदोन्नति उनकी कम वरिष्ठता और गुजरात हाई कोर्ट से पटना हाई कोर्ट में स्थानांतरण की परिस्थितियों के बावजूद न्यायपालिका के लिए विपरीत प्रभाव डालने वाली होगी।

    सूत्रों के अनुसार, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने यह भी उल्लेख किया कि उनकी नियुक्ति को आगे बढ़ाना कोलेजियम प्रणाली की विश्वसनीयता को कमजोर कर सकता है। उन्होंने न्यायमूर्ति पंचोली के जुलाई 2023 में स्थानांतरण को एक सावधानीपूर्वक विचारित कदम बताया।

    मानकों का बताया उल्लंघन

    जस्टिस नागरत्ना ने सुप्रीम कोर्ट में क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के मुद्दों को भी उठाया। बता दें कि करीब तीन माह पहले ही गुजरात हाई कोर्ट के एक और जज जस्टिस एनवी अंजारिया भी सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत हुए हैं।

    गैर सरकारी संगठन न्यायिक जवाबदेही और सुधारों के लिए अभियान (सीजेएआर) ने भी इस मुद्दे पर बयान जारी किया है, जिसमें कोलेजियम के निर्णय को पारदर्शिता के मानकों का उल्लंघन बताया गया है। सीजेएआर ने जस्टिस नागरत्ना की असहमति का जिक्र करते हुए कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि कोलेजियम को न्यायमूर्ति पंचोली की सिफारिश करने में क्या प्रभावित किया।

    (समाचार एजेंसी IANS के इनुपट के साथ)