सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं, एफआईआर पर आदेश का मामला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत हर मामले में प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है। कोर्ट ने इस मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए एफआईआर को रद करने के आदेश को गलत बताया। अदालत का कहना है कि स्त्रोत सूचना रिपोर्ट से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है तो प्रारंभिक जांच की आवश्यकता नहीं होती।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत दर्ज हर मामले में प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है और यह आरोपित का अधिकार भी नहीं है।
अदालत ने कहा कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों समेत कुछ श्रेणी के मामलों में प्रारंभिक जांच वांछित होती है, लेकिन आपराधिक मामला दर्ज करने की यह पूर्व शर्त नहीं है। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने 17 फरवरी के अपने फैसले में कहा कि प्रारंभिक जांच का उद्देश्य प्राप्त जानकारियों की सत्यता को प्रमाणित करना नहीं, बल्कि सिर्फ यह पता लगाना है कि क्या उक्त जानकारी से कोई संज्ञेय अपराध होने का पता चलता है।
पीठ ने कहा, "यदि किसी वरिष्ठ अधिकारी के पास स्त्रोत सूचना रिपोर्ट है जो विस्तृत और तर्कपूर्ण है और अगर किसी विवेकशील व्यक्ति की यह राय पहली दृष्टि में संज्ञेय अपराध होने को उजागर करती हो तो प्रारंभिक जांच से बचा जा सकता है।"
हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती
शीर्ष अदालत ने यह फैसला कर्नाटक सरकार की अपील पर सुनाया जिसमें प्रदेश हाई कोर्ट के मार्च, 2024 के फैसले को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत कथित अपराधों के लिए एक अधिकारी के विरुद्ध कर्नाटक लोकायुक्त पुलिस स्टेशन द्वारा दर्ज एफआइआर को रद कर दिया था। उक्त अधिकारी पर आय के ज्ञात स्त्रोतों से अधिक संपत्तियां अर्जित करने का आरोप था।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सवाल था कि क्या मामले के तथ्यों के मद्देजनर भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य है या फिर स्त्रोत सूचना रिपोर्ट को प्रारंभिक जांच का विकल्प माना जाना चाहिए। पीठ ने शीर्ष कोर्ट के पूर्व फैसलों का हवाला देकर अपना फैसला सुनाया और कहा कि प्रारंभिक जांच आवश्यक है या नहीं, इसका फैसला हर मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग होगा।
भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धारा-17 का हवाला
पीठ ने कहा, हाई कोर्ट ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने में गलती की कि प्रारंभिक जांच नहीं करने के कारण एफआइआर निरस्त कर दी जाए।शीर्ष अदालत ने भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धारा-17 का भी हवाला दिया जो जांच के लिए अधिकृत व्यक्तियों से संबंधित है। पीठ ने कहा कि इस मामले में एसपी ने स्त्रोत सूचना रिपोर्ट के आधार पर संज्ञेय अपराध होने के बारे में अपनी राय बनाने के बाद डीएसपी को आरोपित के विरुद्ध एफआइआर दर्ज करने का निर्देश दिया और जांच के लिए अधिकृत किया।
इसके साथ ही कहा, 'भ्रष्टाचार के मामले में जांच एजेंसी पर प्रशासनिक बाधाओं का ढांचा तैयार करके अनावश्यक बंदिशें लगाकर हाई कोर्ट ने गंभीर गलती की जिससे कानूनी एजेंसियों के अक्षम हो जाने की संभावना है।'
शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून बनाने के पीछे विधायी मंशा भ्रष्टाचार से संबंधित अपराधों की जांच के लिए मजबूत तंत्र बनाना और भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने वाली प्रक्रियागत बाधाओं के निर्माण से बचना था।
लिहाजा, ऐसे प्रक्रियागत कानूनों की व्याख्या करते समय ध्यान रखा जाना चाहिए कि संभावित आपराधिक गतिविधियों, खासकर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के मामलों में व्याख्या जांच को सुविधाजनक बनाए, न कि हतोत्साहित करे।
यह भी पढ़ें: बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका, CAA की समय सीमा बढ़ाने की मांग
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।