'दुष्कर्म पीड़िताओं के लिए मुआवजे के जारी करें निर्देश, सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने सत्र अदालतों एवं पोक्सो अदालतों को उचित मामलों में दुष्कर्म एवं यौन उत्पीड़न के पीड़िताओं को कानून के तहत मुआवजा देने के निर्देश जारी करने के लिए कहा है। कोर्ट ने एक याचिका पर केंद्र सरकार और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) से जवाब तलब किया है।

'दुष्कर्म पीड़िताओं के लिए मुआवजे के जारी करें निर्देश, सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को दिया आदेश (फोटो- पीटीआई)
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सत्र अदालतों एवं पोक्सो अदालतों को उचित मामलों में दुष्कर्म एवं यौन उत्पीड़न के पीड़िताओं को कानून के तहत मुआवजा देने के निर्देश जारी करने के लिए कहा है। कोर्ट ने एक याचिका पर केंद्र सरकार और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) से जवाब तलब किया है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि प्रशासनिक लापरवाही और अधिकारियों की व्यवस्था गत उपेक्षा के कारण दुष्कर्म पीड़ितों को सही मुआवजा प्रदान करने से लगातार इन्कार किया जा रहा है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल के जरिये ज्योति प्रवीण खंडापासोले की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में महाराष्ट्र के अमरावती जिले की 25 वर्षीय मानसिक रूप से दिव्यांग दुष्कर्म पीड़िता के मामले पर प्रकाश डाला गया, जिसे सरकारी अधिकारियों की लगातार विफलता के कारण सीआरपीसी की धारा-357ए और मनोधैर्य योजना के तहत सही मुआवजा नहीं दिया गया था।
पीठ ने तीन नवंबर के आदेश में कहा कि मुआवजा देने में एक बाधा विशेष अदालतों या सत्र अदालतों द्वारा अपराध के पीड़िताओं को मुआवजा देने के निर्देश का अभाव है। नतीजतन पीड़िताओं को राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण में आवेदन करके अथवा अन्य कानूनी माध्यम से खुद ही मुआवजा मांगना पड़ता है।
इस संबंध में जागरूकता की भी कमी है। इन परिस्थितियों में हम निर्देश देते हैं कि संबंधित विशेष अदालतों या सत्र अदालतों को उचित मामलों में पीडि़ता को मुआवजे के भुगतान के संबंध में उचित निर्देश जारी करने चाहिए, ताकि संबंधित विशेष अदालतों या सत्र अदालतों के उक्त निर्देशों का कार्यान्वयन राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) या तालुक कानूनी सेवा प्राधिकरण के जरिये आसानी से किया जा सके।
पीठ ने रजिस्ट्री को आदेश की प्रतियां सभी हाई कोर्टों के रजिस्ट्रार जनरल को भेजने का निर्देश दिया ताकि वे संबंधित विशेष अदालतों को सूचित करने के लिए प्रधान जिला न्यायाधीशों को भेज सकें।
खंडपासोले ने याचिका में कहा कि अपराधी को दोषी ठहराए जाने और मुआवजे को सुनिश्चित करने के लिए ट्रायल कोर्ट से स्पष्ट न्यायिक निर्देशों के बावजूद अमरावती में डीएलएसए द्वारा दिखाई गई संस्थागत उदासीनता के कारण अपूरणीय क्षति हुई।
उन्होंने बताया कि 10 मई, 2024 को दुष्कर्म पीडि़ता की मां की मृत्यु के बाद (उसकी एकमात्र देखभाल करने वाली) डीएलएसए ने मार्च और मई, 2025 में उसे दो किस्तों में आंशिक मुआवजा दिया, जो बेहद देर से दी गई अपर्याप्त राहत थी।
दु:खद यह है कि 11 अगस्त को दुष्कर्म पीड़िता की भी मृत्यु हो गई और उसे कभी पूरा मुआवजा नहीं मिला। जो संविधान के अनुच्छेद 14, 15(3) और 21 के तहत समानता, गरिमा और जीवन की संवैधानिक गारंटी को बनाए रखने की राज्य की विनाशकारी विफलता को दर्शाता है।

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