'व्यक्ति के अधिकार हमेशा राष्ट्र के हित के अधीन होते हैं' सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति के अधिकार हमेशा राष्ट्रहित के अधीन होते हैं। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अधिकारों की रक्षा पर जोर दिया। कोर ...और पढ़ें

व्यक्ति के अधिकार राष्ट्रहित के अधीन: सुप्रीम कोर्ट
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि किसी व्यक्ति के अधिकार हमेशा राष्ट्र के हित के अधीन होते हैं। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों की हमेशा रक्षा की जानी चाहिए।
लेकिन, ऐसे मामलों में जहां देश की सुरक्षा या अखंडता पर सवाल उठता है तो यह जमानत देने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिश्वर ¨सह की पीठ ने ये टिप्पणियां सीबीआइ की अपील पर सुनवाई के दौरान कीं।
यह अपील बंगाल के पश्चिम मिदनापुर जिले में 2010 में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के पटरी से उतरने के मामले में कुछ आरोपितो को दी गई जमानत के खिलाफ दायर की गई थी। मुंबई जा रही ट्रेन झाड़ग्राम के पास पटरी से उतर गई थी और फिर सामने से आ रही एक मालगाड़ी इससे टकरा गई, जिससे 148 यात्रियों की मौत हो गई थी।
अधिकारियों ने कहा था कि 28 मई, 2010 को रात लगभग एक बजे हुई यह दुर्घटना माओवादियों द्वारा कथित तोड़फोड़ का परिणाम थी। यह दुर्घटना भाकपा (माओवादी) द्वारा बुलाए गए चार दिवसीय बंद के लागू होने के तुरंत बाद हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस स्तर पर आरोपितों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करना, विशेषकर तब जब उनके खिलाफ कोई अन्य सबूत न हो, उचित नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि सीबीआइ उसके संज्ञान में ऐसा कोई घटनाक्रम नहीं ला सकी जिससे यह हस्तक्षेप किसी भी तरह से सार्थक सिद्ध हो सके।
पीठ ने कहा, 'इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अनुच्छेद 21 के अधिकार सर्वोच्च महत्व रखते हैं, और यह उचित भी है। हालांकि, साथ ही, व्यक्ति हमेशा ध्यान का केंद्र नहीं हो सकता। कुछ मामले, जैसे कि यह मामला, अपनी प्रकृति और प्रभाव के कारण यह मांग करते हैं कि प्रस्तुत मुद्दे को व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए, अर्थात् राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में।
इसलिए हम यह पाते हैं कि अनुच्छेद 21 के अधिकारों की रक्षा तो सर्वथा की जानी चाहिए, लेकिन ऐसे मामलों में जहां राष्ट्र की सुरक्षा या अखंडता पर सवाल उठता है, तो उसे जमानत का एकमात्र आधार नहीं बनाया जा सकता।' कई निर्देश जारी करते हुए पीठ ने ट्रयल कोर्ट से मामले का जायजा लेने और अपने आदेश में मुकदमे की स्थिति और वर्षों से लंबित रहने के कारणों को दर्ज करने को कहा।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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