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OROP को लेकर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को अहम निर्देश, पेंशनरों का बकाया फरवरी 2024 तक देने को कहा

OROP Arrears Supreme Court Order सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत केंद्र को 30 अप्रैल 2023 तक वन रैंक वन पेंशन योजना के तहत योग्य पारिवारिक पेंशनरों और सशस्त्र बलों के वीरता विजेताओं को बकाया राशि देने को कहा गया है।

By AgencyEdited By: Mahen KhannaPublished: Mon, 20 Mar 2023 12:30 PM (IST)Updated: Mon, 20 Mar 2023 12:56 PM (IST)
OROP को लेकर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को अहम निर्देश, पेंशनरों का बकाया फरवरी 2024 तक देने को कहा
OROP Arrears Supreme Court Order सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्देश।

नई दिल्ली, एजेंसी। OROP Arrears Supreme Court Order वन रैंक वन पेंशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र को एक अहम निर्देश दिया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से दी गई लिफाफा बंद रिपोर्ट पर नाराजगी जताते हुए पूर्व सैन्य कर्मियों का बकाया पेंशन भुगतान करने का नया फॉर्मूला दिया है। कोर्ट ने पेंशनरों का सभी बकाया फरवरी 2024 तक देने को कहा है। 

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OROP के सभी पेंशनरों को मिलेगा बकाया

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत केंद्र को 30 अप्रैल 2023 तक वन रैंक वन पेंशन योजना के तहत योग्य पारिवारिक पेंशनरों और सशस्त्र बलों के वीरता विजेताओं को बकाया राशि देने को कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ केंद्र को निर्देश दिया कि 30 जून 2023 तक 70 वर्ष से अधिक के योग्य पेंशनरों को बकाया दिया जाना चाहिए। शीर्ष न्यायालय ने शेष पात्र पेंशनरों को 30 अगस्त 2023, 30 नवंबर 2023 और 28 फरवरी 2024 समान किस्तों में या उससे पहले बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया।

OROP पर SC ने केंद्र को दिया यह निर्देश

  • 6 लाख फैमिली पेंशन+वीरता पुरस्कार वाले पेंशनरों को 30 अप्रैल 2023 तक बकाया दिया जाए।
  • 70 साल से अधिक उम्र वाले 4 लाख लोगों को 30 जून 2023 तक बकाया दें।
  • 11 लाख के लगभग बाकी लोगों को 3 बराबर किश्त में 30 अगस्त 2023, 30 नवंबर 2023 और 28 फरवरी 2024 तक भुगतान किया जाए।

सीलबंद कवर नोट देने पर नाराजगी जताई

उच्चतम न्यायालय ने पूर्व सैन्य कर्मियों को वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) के बकाया भुगतान पर केन्द्र के विचारों के बारे में केंद्र के सीलबंद कवर नोट को स्वीकार करने से सोमवार को इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि हमें सर्वोच्च न्यायालय में इस सील बंद कवर प्रथा को समाप्त करने की आवश्यकता है, यह निष्पक्ष न्याय की बुनियादी प्रक्रिया के विपरीत है।


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