शरजील इमाम के भाषण से लेकर संजीव भट्ट की जमानत याचिका तक, SC में कई मामलों की हुई अहम सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कई अहम मामलों पर सुनवाई की। जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम के विवादित भाषण मामले में कोर्ट ने सवाल किया कि क्या एक भाषण के लिए विभिन्न राज्यों में मुकदमा चलाया जा सकता है? निठारीकांड में कोली को बरी करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 30 जुलाई को सुनवाई होगी। पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की जमानत याचिका खारिज की गई।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम के विवादित भाषण, निठारीकांड, संजीव भट्ट की जमानत याचिका सहित कई मामलों पर सुनवाई की। वहीं, कोर्ट ने दोषी व्यक्तियों को राजनीतिक दल बनाने और उनमें पद ग्रहण करने से रोकने संबंधी याचिका पर सुनवाई 11 अगस्त तक टाल दी। आइए सिलसिलेवार तरीके से पढ़ें कि आज सुप्रीम कोर्ट में किन अहम मामलों पर चर्चा हुई।
सबसे पहले बात की जाए जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम द्वारा साल 2020 में दी गई भड़काई भाषण से जुड़े मामले की। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पूछा कि क्या जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम पर एक भाषण के लिए राजद्रोह समेत अन्य अपराधों के लिए विभिन्न राज्यों में मुकदमा चलाया जा सकता है?
शीर्ष अदालत इमाम की 2020 की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें नागरिकता संशोधन विधेयक के विरुद्ध कथित भड़काऊ भाषण के लिए चार राज्यों उत्तर प्रदेश, असम, मणिपुर एवं अरुणाचल प्रदेश में दर्ज विभिन्न एफआइआर को एक साथ संलग्न करने की मांग की गई थी।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना एवं जस्टिस संजय कुमार की पीठ से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि एक भाषण के लिए देशभर में विभिन्न मुकदमे नहीं चलाए जा सकते। दिल्ली पुलिस की ओर से एएसजी एसवी राजू ने कहा कि इमाम ने बिहार, उत्तर प्रदेश व दिल्ली में भीड़ को उकसाया था। अपराध अलग-अलग हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'लेकिन भाषण एक है। अगर भाषण यू-ट्यूब इत्यादि पर है और देशभर में सुना जा सकता है तो असर एकजैसा होगा।'
उन्होंने कहा कि मामले दिल्ली स्थानांतरित किए जाने चाहिए। राजू की आपत्ति के बाद पीठ ने सुनवाई दो हफ्तों के लिए स्थगित कर दी।
निठारीकांड में कोली को बरी करने पर 30 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के निठारी कांड की सीरियल कि¨लग के मामले में सुरेंद्र कोली को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 30 जुलाई को सुनवाई का फैसला लिया है।जस्टिस बीआर गवई और आगस्टीन जार्ज मसीह की खंडपीठ के समक्ष सुरेंद्र कोली को बरी किए जाने के खिलाफ अपील संबंधी कई याचिकाएं आई हैं।
याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील ने सुनवाई के लिए अपनी दलील में कहा कि नोएडा के एक नाले से कई बच्चों के कंकाल मिलने का यह सबसे निर्मम मामला था। इधर, कोली की ओर से पेश वकील ने कहा कि यह मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य का है जिसमें एक भी गवाह नहीं है। वकीलों के बीच जिरह के दौरान खंडपीठ ने पाया कि मामले में बहस एक दिन में पूरी नहीं होगी। इसलिए उन्होंने मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को सुनिश्चित कर दी है।
उल्लेखनीय है कि कोली को शेष 16 मामलों में से तीन में बरी कर दिया गया तथा एक मामले में उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया। यह हत्या का मामला 29 दिसंबर 2006 को राष्ट्रीय राजधानी से सटे नोएडा के निठारी में पंधेर के घर के पीछे एक नाले से आठ बच्चों के कंकाल मिलने के बाद प्रकाश में आया था।
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की संजीव भट्ट की जमानत याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने 1990 में हिरासत में मौत के मामले में दोषी करार दिए गए पूर्व आइपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की जमानत याचिका खारिज कर दी। इस मामले में संजीव भट्ट उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि मामले में जमानत या सजा के निलंबन की उनकी याचिका में कोई दम नहीं है। जस्टिस विक्रम नाथ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हम संजीव भट्ट को जमानत देने के इच्छुक नहीं हैं। जमानत की याचिका खारिज की जाती है।
संजीव भट्ट की उम्रकैद की सजा के खिलाफ दायर अपील SC में लंबित
अपील की सुनवाई इससे प्रभावित नहीं होगी। अपील की सुनवाई में तेजी लाई जाएगी। संजीव भट्ट की दोषसिद्धि और उम्रकैद की सजा के खिलाफ दायर अपील इस समय सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। भट्ट ने 2024 में गुजरात हाई कोर्ट के नौ जनवरी 2024 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उनकी अपील खारिज कर दी गई थी।
गुजरात हाई कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत भट्ट और सह आरोपी प्रवीण सिंह जाला की दोषसिद्धि को भी बरकरार रखा था। 30 अक्टूबर 1990 को तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक संजीव भट्ट ने जामजोधपुर शहर में एक साम्प्रदायिक दंगे के बाद करीब 150 लोगों को हिरासत में लिया था। यह घटना भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को रोकने के खिलाफ बंद के दौरान हुआ था। हिरासत में लिए गए व्यक्तियों में से एक, प्रभुदास वैष्णानी की रिहाई के बाद अस्पताल में मृत्यु हो
शैक्षणिक मामलों को विशेषज्ञों पर छोड़ दें: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने विधि महाविद्यालयों के शैक्षणिक मामलों में हस्तक्षेप करने को लेकर बार काउंसिल आफ इंडिया (बीसीआइ) से मंगलवार को सवाल किया। कहा कि शैक्षणिक मामलों को विशेषज्ञों पर छोड़ देना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिस्वर ¨सह की पीठ ने देश में एक वर्षीय एलएलएम पाठ्यक्रम रद करने और विदेशी एलएलएम की मान्यता रद करने के बीसीआइ के 2021 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
पीठ ने कहा, आप अकादमिक मामलों में हस्तक्षेप क्यों कर रहे हैं? विधि महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम आदि बीसीआइ को क्यों तय करने चाहिए। किसी अकादमिक विशेषज्ञ को इन चीजों की जिम्मेदारी संभालनी चाहिए। आप (बीसीआइ) अपनी जिम्मेदारी संभालें। देश में लगभग 10 लाख वकील हैं। आपको विधि महाविद्यालयों का निरीक्षण करने के बजाय उन्हें प्रशिक्षित करने पर ध्यान देना चाहिए। आप मसौदा तैयार करने की कला, कानूनों को समझने आदि पर प्रशिक्षण दे सकते हैं। यह आपकी वैधानिक जिम्मेदारी का हिस्सा होना चाहिए। पाठ्यक्रम की जिम्मेदारी को शिक्षाविदों को सौंपा जाना चाहिए।
जब बीसीआइ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा ने कहा कि यह मौजूदा व्यवस्था है तो पीठ ने कहा, आपने (बीसीआइ) खुद को थोपा है और दावा कर रहे हैं कि आप इस देश में एकमात्र प्राधिकारी हैं। शीर्ष अदालत ने मौजूदा कानूनी शिक्षा प्रणाली के तहत जमीनी स्तर पर शामिल किए जा रहे न्यायिक अधिकारियों की गुणवत्ता पर असंतोष जताया।पीठ ने कहा, ज्हमें किस तरह के अधिकारी मिल रहे हैं? क्या उनमें करुणा है। क्या वे जमीनी हकीकत को समझते हैं या सिर्फ मशीन की तरह निर्णय देते हैं? शिक्षाविद मुद्दों की समीक्षा कर सकते हैं।'
कंर्सोटियम आफ नेशनल ला यूनिवर्सिटीज' की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि बीसीआइ न केवल एलएलएम, बल्कि पीएचडी एवं डिप्लोमा में भी हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहा है।शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर केंद्र एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से जवाब मांगा और अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से मामले में सहायता करने का अनुरोध किया। माले की अगली सुनवाई जुलाई में होगी।
राजनीतिक दल बनाने से दोषियों को रोकने संबंधी याचिका कोर्ट ने टाली
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दोषी व्यक्तियों को राजनीतिक दल बनाने और उनमें पद ग्रहण करने से रोकने संबंधी याचिका पर सुनवाई 11 अगस्त तक टाल दी। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका पर अंतिम सुनवाई से इन्कार कर दिया।
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उन्होंने कहा, ''मैं अब और फैसला सुरक्षित नहीं रखना चाहता।'' इसके बाद पीठ ने मामले की अंतिम सुनवाई 11 अगस्त के लिए टाल दी और पक्षों को लिखित दलीलें दाखिल करने की अनुमति दी।
गौरतलब है कि 2017 में दायर जनहित याचिका में दोषियों को अयोग्य ठहराए जाने की अवधि के दौरान राजनीतिक दल बनाने और पदाधिकारी बनने से रोकने की मांग की गई थी। पीठ ने पहले आश्चर्य जताया था कि चुनाव लड़ने के लिए प्रतिबंधित दोषी व्यक्ति चुनाव में उम्मीदवार कैसे तय कर सकते हैं और सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी बनाए रख सकते हैं। पीठ ने पूछा था, ''एक व्यक्ति जो दोषी है और चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य है, वह चुनाव के लिए उम्मीदवारों को कैसे तय कर सकता है? लोकतंत्र की शुचिता कैसे बनाए रखी जा सकती है?''
बहरहाल, याचिका में दावा किया गया है कि 40 प्रतिशत विधायक या तो दोषी हैं या मुकदमे का सामना कर रहे हैं। पीठ ने कहा, ''इसलिए विरोध हो रहा है। वे ईमानदारी नहीं चाहते हैं।''
सुप्रीम कोर्ट ने एक दिसंबर, 2017 को जनहित याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 ए की संवैधानिक वैधता की जांच करने पर सहमति व्यक्त की थी, जो एक राजनीतिक दल को पंजीकृत करने के लिए चुनाव आयोग की शक्ति से संबंधित है।
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