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    सुप्रीम कोर्ट का बड़ा सवाल, राष्ट्रपति-राज्यपाल ने तय समय सीमा का पालन नहीं किया, तब क्या होगा

    By Agency Edited By: Jeet Kumar
    Updated: Wed, 03 Sep 2025 12:22 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने प्रेसिडेंशियल रिफरेंस के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए अपनी ही शक्तियों पर संदेह व्यक्त किया। विधेयकों पर निर्णय के बारे में समय सीमा तय करने और तय समय में निर्णय न लेने पर कोर्ट द्वारा स्वत मंजूरी (डीम्ड एसेंट) पर भी सवाल किए। सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ आजकल प्रेसिडेंशियल रिफरेंस पर सुनवाई कर रही है।

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    सुप्रीम कोर्ट ने प्रेसिडेंशियल रिफरेंस के मुद्दे पर सुनवाई की (सांकेतिक तस्वीर)

     जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने प्रेसिडेंशियल रिफरेंस के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए अपनी ही शक्तियों पर संदेह व्यक्त किया। विधेयकों पर निर्णय के बारे में समय सीमा तय करने और तय समय में निर्णय न लेने पर कोर्ट द्वारा स्वत: मंजूरी (डीम्ड एसेंट) पर भी सवाल किए।

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    सुप्रीम कोर्ट ने किया सवाल

    मंगलवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने विधेयक पर निर्णय लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय करने का समर्थन कर रहे तमिलनाडु की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी से सवाल किया कि अगर समय सीमा का पालन नहीं किया जाता है तो क्या होगा।

    साथ ही कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि वह प्रेसिडेंशियल रिफरेंस में सिर्फ संवैधानिक प्रश्नों की व्याख्या करेगा, व्यक्तिगत प्रकरणों पर नहीं जाएगा। बहस बुधवार को भी जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ आजकल प्रेसिडेंशियल रिफरेंस पर सुनवाई कर रही है।

    मंगलवार को जब तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय करने और उस अवधि में निर्णय न लेने पर डीम्ड एसेंट को सही ठहराया तो कोर्ट ने अपनी ही शक्ति पर संदेह जताते हुए उनसे कई सवाल पूछे।

    कोर्ट ने सिंघवी से पूछा कि अगर टाइम लाइन का पालन नहीं किया जाता तो क्या होगा। अगर विधेयकों पर कोई कार्रवाई नहीं होती तो क्या कोर्ट डीम्ड एसेंट दे सकता है। क्या कोर्ट को अनुच्छेद 142 के तहत ऐसा आदेश देने का अधिकार है।

    न्यायमूर्ति विक्रमनाथ ने पूछा कि क्या कोर्ट राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में जाकर उपर्युक्त तीनों विकल्पों विचार कर सकता है। सिंघवी ने कोर्ट द्वारा समय सीमा तय करने को जायज ठहराते हुए कहा कि जहां संविधान मौन है वहां कोर्ट शून्यता भर सकता है और आदेश दे सकता है। उन्होंने इस संबंध में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के बारे में दिए गए कोर्ट के फैसले का उदाहरण दिया।

    सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयकों को नहीं रोक सकते अगर ऐसा होगा तो विधेयक मर जाएगा। राज्यपाल सुपर चीफ मिनिस्टर नहीं हो सकते। विधेयक को समाप्त करने की शक्ति सिर्फ कैबिनेट के पास होती है। राज्यपाल ऐसा नहीं कर सकते। अगर बहुमत से कोई गलत बिल भी पास होता है तो कोर्ट उस पर विचार कर सकता है। यही शक्तियों का बंटवारा है।

    जब सिंघवी ने टाइम लाइन तय करने का समर्थन किया तो चीफ जस्टिस ने कहा कि मामलों पर अलग तथ्यों के हिसाब से विचार हो सकता है। सभी बिलों के लिए समान समय सीमा कैसे हो सकती है।

    सिंघवी ने कहा कि हर केस के अनुसार तय होने पर समस्या हल नहीं होगी। राज्य हर बार राज्यपाल के मंजूरी रोकने पर कोर्ट आते रहेंगे। पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी कहा कि राज्यपाल के पास विधेयकों के बारे में विवेकाधिकार नहीं है।

    किसी भी मामले की न्यायिक समीक्षा सुप्रीम कोर्ट का अधिकार

    प्रेट्र के मुताबिक इस मसले पर केंद्र सरकार ने सवाल उठाया कि किसी भी तरह की न्यायिक समीक्षा से संवैधानिक असंतुलन पैदा हो सकता है और ये शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत के खिलाफ माना जाएगा।

    इस पर मिनर्वा मिल्स के मामले पर शीर्ष अदालत के आदेश का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि न्यायिक समीक्षा संविधान के मूलभूत ढांचे का हिस्सा है। भले ही विवाद राजनीतिक हो, लेकिन जब तक उसमें संवैधानिक सवाल निहित है, अदालत उसका जवाब देने से इनकार नहीं कर सकती।

    संविधान का अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को अपने समक्ष किसी भी मामले में पूर्ण न्याय प्राप्त करने के लिए आवश्यक कोई भी आदेश पारित करने की असाधारण शक्ति प्रदान करता है, भले ही इसमें मौजूदा कानूनों को रद करना या उनमें मौजूद खामियों को दूर करना शामिल हो।

    क्या है प्रेसिडेंशियल रिफरेंस का मुद्दा

    राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सुप्रीम कोर्ट को 14 संवैधानिक सवाल भेजकर राय मांगी है। इसे ही प्रेसिडेंशियल रिफरेंस कहा जा रहा है। राष्ट्रपति ने पूछा है कि जब संविधान में विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है तो क्या कोर्ट समय सीमा तय कर सकता है।

    मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने तमिलनाडु के मामले में गत आठ अप्रैल को दिए फैसले में राज्य विधानसभा से पास विधेयकों पर निर्णय लेने के संबंध में राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए समय सीमा तय की है।

    तमिलनाडु विधानसभा से पारित दस विधेयक लटके

    इसके साथ ही कोर्ट ने तमिलनाडु विधानसभा से पारित दस विधेयक, जो लंबे समय से राज्यपाल की मंजूरी के इंतजार में लटके हुए थे, उन्हें भी अपने आदेश से मंजूर घोषित कर दिया था।

    प्रश्नों पर कोर्ट से राय मांगी गई

    सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद ही राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस भेज कर 14 संवैधानिक सवालों पर राय मांगी है। रिफरेंस में सीधे तौर पर तो गत आठ अप्रैल के आदेश का जिक्र नहीं किया गया है लेकिन जिन प्रश्नों पर कोर्ट से राय मांगी गई है वे सभी सवाल आठ अप्रैल के फैसले में दी गई व्यवस्था के इर्द-गिर्द घूमते हैं।