सुप्रीम कोर्ट ने तलाक मामले में दिया ये फैसला, बोला- अब कोई गुंजाइश नहीं...
सुप्रीम कोर्ट ने पति-पत्नी के बीच टूट चुके संबंधों को देखते हुए अनुच्छेद 142 के तहत तलाक देने का फैसला सुनाया। कोर्ट ने पति को पत्नी को 25 लाख रुपये स्थायी भरण-पोषण देने का आदेश दिया। साथ ही कोर्ट ने दोनों के खिलाफ दायर आपराधिक और दीवानी मुकदमे रद्द कर दिए और पति का पासपोर्ट जब्त करने की कार्रवाई को भी खारिज किया।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने पूरी तरह टूट चुकी शादी और संबंधों में सुधार की कोई गुंजाइश न देखते हुए संविधान के अनुच्छेद 142(1) के तहत मिली विशेष शक्तियों का इस्तेमाल कर पूर्ण न्याय करते हुए पति की तलाक की अर्जी स्वीकार कर ली है और पति- पत्नी के बीच विवाह विच्छेद घोषित कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने पति को 25 लाख रुपये स्थाई भरण पोषण के तौर पर पत्नी को देने का आदेश दिया है।
इतना ही नहीं शीर्ष अदालत ने दोनों पक्षों यानी पति-पत्नी द्वारा एक दूसरे के खिलाफ विभिन्न अदालतों में दाखिल किये गए आपराधिक और दीवानी सभी मुकदमे रद कर दिए हैं। इसके अलावा कोर्ट ने सुनवाई का मौका दिए बगैर पति का पासपोर्ट जब्त करने को गलत ठहराया है और उसके खिलाफ अमेरिका से भारत प्रत्यर्पण की कार्यवाही भी की रद कर दी है। संबंधित अथारिटी को एक सप्ताह के भीतर पासपोर्ट छोड़ने का आदेश दिया है।
टूट चुकने के आधार पर मांगा था तलाक
ये आदेश न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और संदीप मेहता की पीठ ने वैवाहिक विवाद के मामले में पति की याचिका पर दिये। पति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल कर पासपोर्ट जब्त करने और अदालत के नोटिस पर घरेलू हिंसा के मामले में पेश न होने पर प्रत्यार्पण की कार्रवाई शुरू करने के हावड़ा (पश्चिम बंगाल) के ज्युडिशियल मजिस्ट्रेट और कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। इसके अलावा पति ने अर्जी दाखिल कर कोर्ट से अनुच्छेद 142 की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए शादी पूरी तरह टूट चुकने के आधार पर तलाक मांगा था।
कोर्ट ने इस बारे में पूर्व फैसलों का जिक्र करते हुए विवाह समाप्त होने का फैसला सुनाया है। ज्ञातव्य हो कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश दे सकता है।
शादी से नहीं है कोई संतान
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने शिल्पा शैलेष केस में व्यवस्था दी थी कि कोर्ट को पूरी तरह टूट चुकी शादी के मामले में अनुच्छेद 142(1) में विवाह विच्छेद का आदेश देने का विवेकाधिकार है। इसके बाद कई फैसले आये जिसमें यह दोहराया गया। पीठ ने मौजूदा मामले का आंकलन करते हुए कहा कि पति-पत्नी विवाह के बाद सिर्फ 80 दिन साथ रहे। पति पांच वर्षों से अलग अमेरिका में रह रहा है और पत्नी भारत में है। शादी से दोनों के कोई संतान नहीं है।
दोनों पक्षों ने एक दूसरे के खिलाफ बहुत से आपराधिक, घरेलू हिंसा कानून और दीवानी मुकदमे दर्ज करा रखे हैं। पक्षकारों के बीच सुलह की कोई गुंजाइश नहीं दिखती। मध्यस्थता के प्रयास नाकाम रहे हैं। ऐसे में यह शादी पूरी तरह टूट चुकी है। शादी जारी रखने से कोई मकसद पूरा होता नहीं दिखता। दोनों के कोई बच्चा नहीं है ऐसे में तलाक का असर पक्षकारों पर पड़ेगा, कोई बच्चा प्रभावित नहीं होगा। यह केस अनुच्छेद 142(1) का विवेकाधिकार इस्तेमाल करने का सही मामला है।
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