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    'पद या आजादी, एक चुन लीजिए' तमिलनाडु के मंत्री को सुप्रीम कोर्ट ने दिया अल्टीमेटम; जानिए क्या है पूरा मामला

    पीठ ने इस बात की आशंका भी व्यक्त की कि राजनेता मनी लांड्रिंग के मामलों में अदालत द्वारा बनाई गई उदार जमानत न्याय व्यवस्था का दुरुपयोग कर रहे हैं। अदालत के साथ इस तरह का व्यवहार उचित नहीं है। बाद में यह दोष मत दीजिएगा कि यह अदालत जमानत देने में उदार नहीं है। आपको पता है कि पीएमएल के तहत जमानत पाना कितना कठिन होता है।

    By Agency Edited By: Swaraj Srivastava Updated: Wed, 23 Apr 2025 09:06 PM (IST)
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    नकदी के बदले नौकरी घोटाले से जुड़े मनी लांड्रिंग केस का है मामला (फोटो: पीटीआई)

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को द्रमुक नेता वी. सेंथिल बालाजी से कहा कि वह पद या आजादी में से किसी एक को चुन लें। साथ ही चेतावनी दी कि अगर उन्होंने तमिलनाडु सरकार में मंत्री पद नहीं छोड़ा तो वह उनकी जमानत रद कर देगा।

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    जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस बात पर आपत्ति व्यक्त की कि नकदी के बदले नौकरी घोटाले से जुड़े मनी लांड्रिंग केस में जमानत मिलने के कुछ दिनों बाद ही बालाजी को तमिलनाडु में कैबिनेट मंत्री के तौर पर बहाल कर दिया गया था।

    गवाहों को प्रभावित करने का आरोप

    पीठ ने कहा, 'इस बात की गंभीर आशंका है कि आप हस्तक्षेप करेंगे और गवाहों को प्रभावित करेंगे। आपको पद (मंत्री) और आजादी में से किसी को चुनना होगा। आप जो भी चुने, हमें बता दीजिए।' शीर्ष अदालत ने पूर्व फैसले का हवाला दिया जिसमें दर्ज किया गया था कि उन्होंने लोगों को अपने विरुद्ध शिकायतें वापस लेने के लिए मजबूर किया।

    साथ ही कहा कि जमानत देने का मतलब गवाहों को प्रभावित करना नहीं था। अतीत में भी आपने गवाहों को प्रभावित किया था। इसलिए आपको दोनों विकल्पों में से एक चुनना होगा। मंत्री के तौर पर आपके विरुद्ध ऐसे कठोर निष्कर्ष दर्ज किए गए हैं। शीर्ष अदालत मामले के गवाहों को प्रभावित करने के आधार पर बालाजी की जमानत रद करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

    मुकुल रोहतगी ने की पैरवी

    • शीर्ष अदालत ने उनके पूर्व के आचरण के आधार पर पहली नजर में मामला सही पाया कि उन्होंने हस्तक्षेप किया और गवाहों को प्रभावित किया था। पीठ ने कहा, 'अब आप उसी पद पर पहुंच गए हैं जहां आप मंत्री के तौर पर प्रभावित कर सकेंगे। हमने आपको बिल्कुल ही अलग आधार पर जमानत प्रदान की थी। आप एक चीज याद रखें। आपको मेरिट के आधार पर जमानत नहीं दी गई थी। आपको संविधान के अनुच्छेद-21 के संभावित उल्लंघन पर जमानत दी गई थी। आपके मंत्री पद संभालने से हम क्या संकेत दे रहे हैं?'
    • बालाजी के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि उनके मुवक्किल के विरुद्ध सीधे तौर पर कोई निष्कर्ष नहीं है। तमिलनाडु सरकार के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर गवाहों को प्रभावित किए जाने की संभावना है तो मुकदमे को राज्य से बाहर स्थानांतरित किया जा सकता है। अदालत ने असहमति जताते हुए कहा कि इससे कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
    • ईडी की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपने हलफनामे का जिक्र किया जिसमें आरोप लगाया गया है कि बालाजी ने गवाहों को प्रभावित किया। इस पर जस्टिस ओका ने कहा, 'हम इसे अपने आदेश में दर्ज करेंगे कि हमने आपके विरुद्ध फैसलों को नजरअंदाज करके गलती की है. क्योंकि पूरी कार्यवाही इस आधार पर आगे बढ़ी थी कि अब वह मंत्री नहीं हैं। हम अपनी गलती स्वीकार करेंगे।'

    28 अप्रैल के लिए स्थगित सुनवाई

    जब सिब्बल ने कहा कि बालाजी की ओर से गवाहों को प्रभावित करने की कोई संभावना नहीं है तो कोर्ट ने टिप्पणी की, 'आप गवाहों को आने से रोक रहे हैं।' हालांकि बाद में कोर्ट ने सिब्बल के अनुरोध पर कुछ समय प्रदान कर दिया और सुनवाई 28 अप्रैल के लिए स्थगित कर दी।

    गौरतलब है कि 15 महीने से अधिक जेल में बिताने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 26 सितंबर, 2024 को यह कहते हुए बालाजी को जमानत दी थी कि निकट भविष्य में मुकदमा पूरा होने की कोई संभावना नहीं है। जमानत मिलने के बाद 29 सितंबर को ही बालाजी को पुन: मंत्री बना दिया गया था।

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