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    सुप्रीम कोर्ट ने दी सीख, अन्य धर्मों पर लगाए आरोपों को संयत और नियंत्रित करें

    By Jagran NewsEdited By: Ashisha Singh Rajput
    Updated: Mon, 12 Dec 2022 09:34 PM (IST)

    वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे द्वारा याचिका में अन्य धर्मों के खिलाफ गंभीर और दुखद आरोप लगाए जाने की बात करते हुए उन्हें हटाने की मांग पर कही। दवे ने कहा कि याचिका में कुछ धर्मों के खिलाफ गंभीर और घृणित आरोप लगाए गए हैं जो कि ठीक नहीं है।

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    सुप्रीम कोर्ट ने सालिसिटर जनरल के उपलब्ध न होने पर मामले की सुनवाई 9 जनवरी तक टाली

    नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। धोखा, लालच और दबाव में जबरन मतांतरण को रोकने की मांग करने वाले याचिकाकर्ता के वकील से सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे याचिका में अन्य धर्मों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को देखें और उसे संयत व नियंत्रित करें। कोर्ट ने यह बात याचिका का विरोध कर रहे वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे द्वारा याचिका में अन्य धर्मों के खिलाफ गंभीर और दुखद आरोप लगाए जाने की बात करते हुए उन्हें हटाने की मांग पर कही।

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    कोर्ट ने सुनवाई 9 जनवरी तक टाली

    दवे ने कहा कि याचिका में कुछ धर्मों के खिलाफ गंभीर और घृणित आरोप लगाए गए हैं जो कि ठीक नहीं है। दवे ने कहा कि कोर्ट उन्हें मामले में पक्षकार बनाए और पक्ष रखने की इजाजत दे। लेकिन कोर्ट ने उनकी मांग पर अगली सुनवाई पर विचार करने की बात कहते हुए सुनवाई 9 जनवरी तक टाल दी क्योंकि केंद्र सरकार का पक्ष रखने के लिए सालिसिटर जनरल मौजूद नहीं थे। वकील अश्वनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर मतांतरण रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की मांग की है।

    अर्जियों में जनहित याचिका का किया गया विरोध

    इस मामले में ईसाई संगठनों और मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा हिंद ने हस्तक्षेप अर्जी दाखिल कर कोर्ट से मामले में पक्षकार बनाए जाने और उनका पक्ष सुने जाने की इजाजत मांगी है। इन अर्जियों में जनहित याचिका का विरोध किया गया है। कोर्ट ने जबरन मतांतरण के मामले को गंभीर बताते हुए पिछली सुनवाई पर कहा था कि चैरिटी के नाम पर मतांतरण नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने जबरन मतांतरण को संविधान के खिलाफ बताते हुए यह भी कहा था कि यह राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

    केंद्र सरकार ने इस मामले में हलफमाना दाखिल कर कहा था कि धार्मिक स्वतंत्रता में जबरन मतांतरण शामिल नहीं है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में राज्यों का पक्ष एकत्र करके कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर सूचना देने को कहा था। सोमवार को न्यायमूर्ति एमआर शाह और एस रविन्द्र भट की पीठ के समक्ष जब मामला सुनवाई के लिए आया तो कोर्ट को बताया गया कि सालिसिटर जनरल तुषार मेहता उपलब्ध नहीं है वे किसी और कोर्ट में व्यस्त हैं जिसके चलते कोर्ट ने मामले की सुनवाई 9 जनवरी तक टाल दी।

    तभी एक हस्तक्षेप अर्जीकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि याचिका में अन्य धर्मों पर अनर्गल गंभीर आरोप लगाए गए हैं। कुछ धर्मों पर दुष्कर्म और हत्या के आरोप लगाये गये हैं। ऐसे घृणित आरोप नहीं लगाए जाने चाहिए। ये अल्पसंख्यक समुदायों के लिए गलत संकेत है। कोर्ट को उन्हें हटाने का आदेश देना चाहिए। इस पर पीठ ने उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद दत्तार से कहा कि वह दवे की ओर से लगाए जा रहे आरोपों को देखें। वे याचिका में अन्य धर्मों के बारे में लगाए गए आरोपों को देखें उन्हें संयत और नियंत्रित करें।

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