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    एसिड अटैक पीड़ितों और नेत्रहीन लोगों के लिए KYC प्रकिया हो आसान, सुप्रीम कोर्ट ने दिए अहम निर्देश; जानिए और क्या कहा

    Updated: Wed, 30 Apr 2025 09:08 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल पहुंच को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार बताया है। कोर्ट ने कहा है कि सरकार को सभी के लिए समावेशी डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र बनाना चाहिए। विशेष रूप से दृष्टिबाधित और एसिड हमले के पीड़ितों के लिए डिजिटल पहुंच आसान होनी चाहिए। कोर्ट ने डिजिटल केवाईसी ईकेवाईसी और वीडियो केवाईसी के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं।

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    डिजिटल पहुंच जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का अंतर्निहित घटक।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज के समय में डिजिटल पहुंच को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा है कि यह जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का अंतर्निहित घटक है इसके लिए सरकार को सक्रिय रूप से समावेशी डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र डिजाइन करना चाहिए।

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    शीर्ष अदालत ने विशेषकर दृष्टिबाधित और एसिड हमले के पीडितों तक इसकी पहुंच आसान बनाने के लिए विस्तृत दिशा निर्देश जारी किये हैं।यह महत्वपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति जेबी पार्डीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने उस मामले में दिया जिसमें एसिड अटैक पीड़ित का चेहरा हमले के कारण खराब हो गया है और आंखों गंभीर रूप से जल गईं थी।

    KYC के नियमों को लेकर दायर की गई थी याचिका

    जबकि दूसरा याचिकाकर्ता पूरी तरह दृष्टिबाधित था। दोनों याचिकाओं में उनकी शारीरिक अक्षमता के चलते डिजिटल केवाइसी की प्रक्रिया में आने वाली दिक्कतों का मुद्दा उठाया गया था और कोर्ट से डिजिटल केवाइसी, ईकेवाइसी और वीडियो केवाइसी के बारे में उचित दिशानिर्देश तय करने की मांग की गई थी।

    सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि डिजिटल पहुंच सभी तक, जिसमें दिव्यांग और हाशिए पर रहने वाले समूह भी शामिल हैं, आसान बनाने के लिए नागरिकों की विभिन्न जरूरतों को ध्यान में रखते हुए समावेशी टेक्नालोजिकल एडवांसमेंट की जरूरत है। ऐसा वातावरण तैयार हो जिसमें कोई पीछे न छूटे। शीर्ष अदालत ने जो लोग दृष्टिबाधित हैं या जिन्हें कम दिखाई देता है उन्हें डिजिटल केवाइसी में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा बायोमैट्रिक वैरीफिकेशन जैसे फेशियल रिकग्नाइजेशन में भी दृष्टिबाधित लोग बाहर रह जाते हैं।

    सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी कई मायनों में खास

    कोर्ट ने कहा कि ये बाधाएं दिव्यांग लोगों के काम करने या समाज में शामिल होने के संबंध में महत्वपूर्ण हैं और इससे उन्हें कानून और यूएनसीआरपीडी के तहत मिले बराबरी के मौके और पूर्ण भागीदारी के अधिकार का उल्लंघन होता है। कोर्ट ने कहा है कि इस भेदभाव को दूर करने के लिए सरकार और निजी संस्थाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि डिजिटल सेवाएं वेब कंटेंट एक्सेसिबिलिटी गाइडलाइन्स (डब्लूसीएजी) और एक्सेसिबिलिटी मानकों का अनुपालन करें।

    कोई दिव्यांग डिजिटल सेवा से ना रहे वंचित

    इसके अलावा डिजिटल समावेशन के लिए कानूनी फ्रेमवर्क लागू करना चाहिए। ताकि ये सुनिश्चित हो कि कोई भी व्यक्ति दिव्यांगता के कारण जरूरी सेवाओं से वंचित न रहे। इन तकनीकी वास्तविकताओं की रोशनी में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार की पुनव्र्याख्या की जानी चाहिए।