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    'आप हाईकोर्ट जाइए', सुप्रीम कोर्ट का असम में निर्वासन पर याचिका पर विचार से इनकार; जानें क्या कहा?

    Updated: Mon, 02 Jun 2025 11:30 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार के घुसपैठियों को निर्वासित करने के अभियान के खिलाफ याचिका खारिज कर दी। याचिका में राष्ट्रीयता सत्यापन के बिना निर्वासन का आरोप लगाया गया था। जस्टिस करोल और शर्मा की पीठ ने याचिकाकर्ता को गुवाहाटी हाई कोर्ट जाने को कहा। याचिका में पुश बैक नीति को गैर-संवैधानिक बताया गया क्योंकि यह उचित प्रक्रिया के बिना निर्वासन करती है।

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    असम में घुसपैठियों के देश से निकालने के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज। (फाइल फोटो)

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार के घुसपैठियों के देश से निर्वासित करने के अभियान के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि असम सरकार ने बिना राष्ट्रीयता सत्यापन या कानूनी उपायों के थकावट के विदेशी संदिग्धों को हिरासत में लेने और निर्वासित करने के लिए एक व्यापक अभियान शुरू किया है।

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    जस्टिस संजय करोल और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सोमवार को याचिकाकर्ता को इस मामले में गुवाहाटी हाई कोर्ट जाने के लिए कहा। पीठ ने याचिकाकर्ता आल बीटीसी माइनारिटी स्टूडेंट्स यूनियन के लिए पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े से पूछा कि आप गुवाहाटी हाई कोर्ट क्यों नहीं जा रहे हैं? पीठ ने कहा कि कृपया गुवाहाटी हाई कोर्ट जाएं।

    घोषित विदेशी नागरिकों को राज्य से बाहर भेज रही असम सरकार

    अधिवक्ता अदील अहमद के जरिये दायर याचिका ने सुप्रीम कोर्ट के चार फरवरी के आदेश का उल्लेख किया। इसमें असम को 63 घोषित विदेशी नागरिकों के निर्वासन की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया गया था। याचिका में दावा किया गया कि असम ने विदेशी ट्रिब्यूनल के निर्णय, राष्ट्रीयता सत्यापन या कानूनी उपायों के थकावट के बिना विदेशी संदिग्धों को हिरासत में लेने और निर्वासित करने का मनमाना अभियान शुरू किया है।

    याचिका में पुश बैक नीति को बताया गया गैरसंवैधानिक

    याचिका में समाचार रिपोर्टों का उल्लेख था जिसमें एक सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक को बांग्लादेश वापस भेज दिया गया था। याचिका में कहा गया कि लागू 'पुश बैक' नीति संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करती है, क्योंकि यह व्यक्तियों को उचित प्रक्रिया के बिना निर्वासित करती है।

    याचिका में दावा किया कि असम की ''पुश बैक'' नीति संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) व 21 (स्वतंत्रता के संरक्षण) का उल्लंघन करती है और बाध्यकारी न्यायिक पूर्ववर्तियों के खिलाफ है।

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