सुप्रीम कोर्ट का UGC को कड़े निर्देश, उच्च शिक्षा में भेदभाव रोकने के लिए कदम उठाने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी को उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों की आत्महत्या रोकने के लिए रैगिंग यौन उत्पीड़न और भेदभाव से निपटने के सुझावों पर विचार करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने दो महीने की समयसीमा दी है। यह निर्देश रोहित वेमुला और पायल तडवी की माताओं की याचिकाओं पर आया जिन्होंने जातिगत भेदभाव के चलते आत्महत्या कर ली थी।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यूजीसी को निर्देश दिया कि मसौदा नियम तैयार करते समय उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों की आत्महत्या रोकने के लिए रैगिंग, यौन उत्पीड़न और जाति, लिंग, विकलांगता और अन्य पूर्वाग्रहों के आधार पर भेदभाव से निपटने के सुझावों पर विचार करे।
कोर्ट ने इसके लिए दो महीने की समयसीमा निर्धारित की है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जोयमाल्या बागची की पीठ ने रोहित वेमुला और पायल तडवी की माताओं का पक्ष भी सुना, जिन्होंने जातिगत भेदभाव के चलते अपने-अपने संस्थान परिसर में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी।
केंद्र ने क्या कहा?
केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मसौदा नियमावली प्रकाशित की जा चुकी है और एक विशेषज्ञ समिति ने करीब 300 आपत्तियों का अध्ययन भी कर लिया है। समिति ने यूजीसी से मसौदा नियमावली में संशोधन के लिए कहा भी है। अभी यूजीसी उन अनुशंसाओं को परख रही है। वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंग ने माताओं की तरफ से कहा कि वे केवल इतना चाहती हैं कि अब और जानें न जाने पाएं।
पीठ की तरफ से दर्ज किए गए सुझावों में भेदभावपूर्ण प्रथाओं को रोकना और अलगाववादी उपायों, जैसे शैक्षिक प्रदर्शन के आधार पर छात्रावास, कक्षाएं या लैब बैच आवंटित न करना, परिसर में योग्यता सूची या रैंक आधारित अलगाव के सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक और 'बडी सिस्टम' को अनुमति न देना शामिल है।
किसे माना जाएगा उत्पीड़न
इसके अलावा एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों को छात्रवृत्ति वितरण में देरी को भी उत्पीड़न माना है। साथ ही आंतरिक शिकायत निवारण, शिकायतों का संरक्षण, लापरवाही के लिए व्यक्तिगत दायित्व, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श, जाति भेदभाव पर दिशानिर्देश, समान शिक्षण सहायता, आंतरिक मूल्यांकन आदि सुझाव भी शामिल हैं।
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