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    'बिना आवेदन भी दोषियों को माफी दें राज्य', SOP मामले में SC ने सुनाया अहम फैसला; दो महीने का दिया समय

    सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को माफी देने के बारे में कई दिशा निर्देश जारी किए हैं। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जवल भुइयां की पीठ ने मंगलवार को जमानत देने की नीति के संबंध में स्वत सुनवाई कर फैसला सुनाया है कि किसी अपराध में सजा काट रहे दोषी माफी पाने के पात्र हो जाएं तो राज्य सरकारों का दायित्व है कि वह माफी अर्जी पर विचार करें।

    By Jagran News Edited By: Swaraj Srivastava Updated: Tue, 18 Feb 2025 11:36 PM (IST)
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    अर्जी खारिज करने पर संक्षिप्त कारण बताना जरूरी होगा (फोटो: पीटीआई)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न अपराधों में उम्रकैद और अन्य समयाविधि का कारावास काट रहे दोषियों की पूरी सजा माफ करने या सजा का कुछ हिस्सा माफ करके जेल से स्थाई तौर पर छोड़े जाने के राज्य सरकारों के अधिकार पर अहम फैसला सुनाया है।

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    शीर्ष अदालत ने कहा है कि जब भी किसी अपराध में सजा काट रहे दोषी राज्य की लागू नीति के मुताबिक माफी पाने के पात्र हो जाएं, तो राज्य सरकारों का दायित्व है कि वह पात्रता रखने वाले सभी दोषियों की माफी अर्जी पर विचार करें। ऐसे मामलों में जरूरी नहीं है कि दोषी या उसका रिश्तेदार माफी का आवेदन दे।

    दो महीने में नीति बनाने का आदेश

    अदालत ने कहा कि अगर जेल मैनुअल या सरकार द्वारा घोषित की गई नीति के तहत कोई विभागीय निर्देश इस संबंध में जारी हुए हैं, तो वे निर्देश ही लागू होंगे। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि जिन राज्यों ने अभी तक सीआरपीसी की धारा 432 और बीएनएसएस की धारा 473 के तहत दोषी कैदियों को माफी देने के बारे में कोई नीति नहीं बनाई है, तो वे सभी राज्य दो महीने में नीति बनाएं।

    सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को माफी देने के बारे में और भी कई दिशा निर्देश जारी किए हैं, जैसे कि माफी अर्जी स्वीकार करने या खारिज करने का आदेश में संक्षिप्त कारण बताना जरूरी होगा। माफी देते समय सरकार तर्कसंगत शर्तें लगा सकती है, लेकिन माफी निरस्त करने से पहले दोषी को कारण सूचित करना होगा और सुनवाई का मौका देना होगा।

    दो जजों की पीठ ने सुनाया फैसला

    • ये अहम फैसला जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जवल भुइयां की पीठ ने मंगलवार को जमानत देने की नीति के संबंध में स्वत: सुनवाई के मामले में सुनाया है। कोर्ट के समक्ष राज्य सरकारों की दोषियों को माफी देने की शक्ति का कानूनी मामला विचारणीय था। इसमें कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 432 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 473 में सरकार को मिली दोषियों की सजा कम करने या पूरी माफी देने की शक्ति पर विचार किया था।
    • कुल चार मुद्दे विचारणीय थे। पहला कि क्या दोषी द्वारा आवेदन न करने के बावजूद सरकार पात्र होने पर उसकी सजा माफ कर सकती है। दूसरा सजा माफ करके छोड़ते वक्त क्या तर्कसंगत शर्तें लगाई जा सकती हैं। तीसरा क्या दोषी द्वारा लगाई गई शर्तों का उल्लंघन करने पर स्वत: माफी निरस्त हो जाएगी और चौथा क्या दोषी की स्थाई माफी की अर्जी खारिज करते वक्त कारण बताना जरूरी है?
    • कोर्ट ने कहा कि कई राज्यों ने अपने यहां दोषियों की समय पूर्व रिहाई के संबंध में नीतियां बनाई हैं और कई राज्यों में जेल मैनुअल में इसका प्रविधान है। इसके अलावा नालसा ने भी समयपूर्व रिहाई के बारे में समग्र स्टैंडर्ड प्रोसीजर जारी किया है, जिसे लागू किए जाने की जरूरत है।

    माफी अर्जी पर विचार करने को कहा

    कोर्ट ने आदेश में कहा है कि जहां भी राज्य सरकारों ने कानून के मुताबिक इस संबंध में नीति और दिशा निर्देश लागू किए हैं, वहां राज्य सरकारों का दायित्व है कि वे पात्रता रखने वाले सभी कैदियों की माफी अर्जी पर नीति के मुताबिक विचार करें। जिन राज्यों ने अभी तक नीति नहीं बनाई है, वे दो महीने में नीति बनाएं।

    कोर्ट ने कहा है कि सजा माफ करके रिहाई देते वक्त तर्कसंगत शर्तें लगाई जा सकती है। शर्तों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना हो कि दोषी की आपराधिक प्रवृति पर निगाह रहे और दोषी स्वयं को समाज में पुनर्वासित कर सके। लेकिन ऐसी शर्तें नहीं होनी चाहिए जिससे कि दोषी स्थाई माफी के आदेश का लाभ न ले सके।

    एसओपी सही मायने में लागू करने को कहा

    कोर्ट ने कहा है कि माफी अर्जी स्वीकार करने या खारिज करने के आदेश में संक्षिप्त में कारण बताए जाने चाहिए और दोषी को आदेश की जानकारी दी जानी चाहिए। यह भी बताया जाना चाहिए कि वह आदेश को चुनौती दे सकता है।

    कोर्ट ने कहा है कि दोषी को दी गई स्थाई माफी का आदेश निरस्त करने या वापस लेने से पहले उसे सुनवाई का मौका दिया जाएगा। नालसा की एसओपी सही मायने में लागू की जाएं। जिला विधि सेवा प्राधिकरण इस आदेश के अनुपालन की निगरानी करेंगी।

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