SC ने झारखंड हाई कोर्ट के दिए निर्देश, कहा- न्यायिक अधिकारियों के अभिभावक की तरह काम करें
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि एकल अभिभावक महिला एडीजे को उनके बेटे की 12वीं की आगामी परीक्षा के मद्देनजर मार्च-अप्रैल तक हजारीबाग में ही बने रहने की अनुमति दे या बोकारो स्थानांतरित कर दे। कोर्ट ने टिप्पणी की कि हाई कोर्टों को अपने न्यायिक अधिकारियों के लिए अभिभावक की तरह काम करना चाहिए।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को झारखंड हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि वह एकल अभिभावक महिला अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (ADJ) को उनके बेटे की 12वीं की आगामी परीक्षा के मद्देनजर मार्च-अप्रैल तक हजारीबाग में ही बने रहने की अनुमति दे या बोकारो स्थानांतरित कर दे।
साथ ही टिप्पणी की कि हाई कोर्टों को अपने न्यायिक अधिकारियों के लिए अभिभावक की तरह काम करना चाहिए। अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित महिला एडीजे ने जून से दिसंबर तक छह महीने की चाइल्ड केयर लीव का आवेदन किया था। लेकिन उन्हें तीन महीने की छुट्टी दी गई थी।
क्या दिया था तर्क?
आवेदन अस्वीकार किए जाने को उन्होंने शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। नियमों के अनुसार एडीजे अपने कार्यकाल में 730 दिनों की चाइल्ड केयर लीव की हकदार हैं। बाद में उनका स्थानांतरण दुमका कर दिया गया था।
जिस पर उन्होंने हाई कोर्ट में एक आवेदन दिया था जिसमें उन्हें हजारीबाग में ही सेवा जारी रखने या फिर रांची या बोकारो स्थानांतरित करने की मांग की थी। उनका कहना था कि दुमका में सीबीएसई के अच्छे स्कूल नहीं हैं।
CJI ने लिया संज्ञान
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने एडीजे की याचिका पर संज्ञान लेते हुए कहा, "हाई कोर्टों को अपने न्यायिक अधिकारियों की समस्याओं के प्रति सजग रहना होगा।"
CJI ने क्या कहा?
जस्टिस गवई ने कहा, "हाई कोर्टों को अपने न्यायिक अधिकारियों के प्रति अभिभावक जैसा व्यवहार करना चाहिए और ऐसे मुद्दों को अहंकार का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए।"
पीठ ने हाई कोर्ट को निर्देशों का पालन करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। इससे पहले मई में शीर्ष अदालत ने एडीजे की याचिका पर झारखंड सरकार और हाई कोर्ट रजिस्ट्री से जवाब तलब किया था।
(समाचार एजेंसी PTI के इनुपट के साथ)
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