EWS Reservation: SC के फैसले से भविष्य में बदल सकता है आरक्षण का गणित, नए वर्ग और नए आयाम के खुले रास्ते
सुप्रीम कोर्ट का सोमवार का फैसला आरक्षण की दिशा और दशा बदलने वाला है। फैसले से भविष्य में आरक्षण का गणित भी बदल सकता है। इससे न सिर्फ लंबे समय से चली आ रही आर्थिक आधार पर आरक्षण की बहस को बल मिला है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट का सोमवार का फैसला आरक्षण की दिशा और दशा बदलने वाला है। फैसले से भविष्य में आरक्षण का गणित भी बदल सकता है। इससे न सिर्फ लंबे समय से चली आ रही आर्थिक आधार पर आरक्षण की बहस को बल मिला है बल्कि इसका व्यापक राजनैतिक और सामाजिक असर होगा। अभी तक जातियों तक सीमित रहे आरक्षण में नये वर्ग और नये आयाम जुड़ने के रास्ते खुलते नजर आ रहे हैं। अगर फैसले को गहराई से देखा जाए तो सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण पर मुहर लगाने वाले फैसले में न्यायाधीशों ने सरकार को आरक्षण को लेकर आगे की नीति पर सोचने विचारने की नसीहत दी है।
आर्थिक आधार पर आरक्षण को SC ने ठहराया सही
यह पहला मौका है जबकि आर्थिक आधार पर आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है। अभी तक यही अवधारणा थी कि आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं हो सकता। आरक्षण का आधार सिर्फ सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन ही हो सकता है और कोर्ट से आरक्षण को संवैधानिक ठहराने के लिए हर तरह के आरक्षण को पिछड़ेपन के इसी दायरे में फिट बैठाना पड़ता था लेकिन आज के बाद व्यवस्था बदल गई है। जस्टिस महेश्वरी ने ईडब्लूएस आरक्षण को सही ठहराते हुए फैसले में जो पंक्ति लिखी है उसे भविष्य में अन्य वर्गों को जोड़ने का रास्ता बनता नजर आता है।
बराबरी पर लाने के लिए है आरक्षण
जस्टिस महेश्वरी ने कहा है कि आरक्षण गैर बराबरी को बराबरी पर लाने का लक्ष्य हासिल करने का एक उपकरण है। इसके जरिए न सिर्फ सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग को समाज की मुख्य धारा में शामिल किया जा सकता है बल्कि किसी और कमजोर वर्ग या क्लास को भी शामिल किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ही अपने पूर्व के फैसलों में कह चुका है कि सरकार को आरक्षण के लिए समाज के अन्य कमजोर वर्गों की पहचान करनी चाहिए। इस दिशा में कोर्ट ने किन्नरों को आरक्षण पर विचार करने की भी बात कही थी। कुछ राज्य जैसे बिहार ने अपने यहां पुलिस सेवा में किन्नरों को आरक्षण दे रखा है।
जस्टिस बेला ने आर्थिक आधार पर आरक्षण को ठहराया सही
आरक्षण की दिशा दशा पर सोमवार को जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने भी नसीहत दी है। जस्टिस बेला ने आर्थिक आधार पर आरक्षण को सही ठहराते हुए कहा है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को एक अलग वर्ग की तरह माना जाना एक तर्कसंगत वर्गीकरण है और इसे अतार्किक व अन्यायपूर्ण वर्गीकरण नहीं कहा जा सकता। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देने का संविधान संशोधन एससी एसटी और ओबीसी के लिए बने विशेष प्रविधानों को प्रभावित किये बगैर ईडब्लूएस का एक अलग वर्ग सृजित करता है। इसलिए एससी एसटी और ओबीसी को नये सृजित ईडब्लूएस आरक्षण से बाहर रखना भेदभाव नहीं है।
लगातार चले आ रहे आरक्षण पर सवाल
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने लगातार चले आ रहे आरक्षण पर भी सवाल खड़ा किया और कहा कि अभी हाल में संसद में एंग्लो इंडियन के लिए आरक्षण खत्म किया गया है। इस आलोक में सभी वर्गों के आरक्षण के लिए समय सीमा तय होगी तभी समतावादी समाज का निर्माण हो सकेगा। समाज के व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए आरक्षण नीति पर पुनर्विचार की जरूरत बताई है ताकि बदलाव की ओर बढ़ें। जस्टिस जेबी पार्डीवाला ने भी अपने फैसले में टिप्पणियां की हैं। उन्होंने आरक्षण का लाभ पाकर एक स्तर तक पहुंच गए पिछड़ों को बाहर करने की बात कही है ताकि उस वर्ग को लाभ मिल सके जिसे वास्तव में मदद की जरूरत है। जस्टिस पार्डीवाला ने कहा कि बाबा साहब अंबेडकर सामाजिक सौहार्द के लिए आरक्षण सिर्फ दस वर्ष के लिए लाए थे लेकिन ये आज सात दशक बीतने के बाद भी लागू है।